अहमदाबाद। गुजरात (Gujarat) के अहमदाबाद (Ahmedabad) में साल 2008 के सिलसिलेवार धमाकों (2008 serial blasts Case) में जान गंवाने वाले 56 लोगों और 200 से ज्यादा घायलों को लंबे समय बाद आखिरकार न्याय मिल गया है । विशेष अदालत ने 38 आरोपियों को फांसी की सजा (mastermind safdar nagori) सुनाई है वहीं, 11 को उम्रकैद मिली है। दूसरी तरफ इस फैसले के बाद अब दोषियों में से दो के परिजनों ने अदालत के फैसले की टाइमिंग पर सवाल खड़े किये हैं और आशंका जताई है कि फैसला राजनीति से प्रेरित हो सकता है।
मौत की सजा पाए संजरपुर निवासी मोहम्मद सैफ के पिता शादाब अहमद का कहनार है कि निचली अदालत के फैसले से हम संतुष्ट नहीं हैं। अब हम अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे, जबकि मौत की सजा पाए संजरपुर निवासी आरिफ के भाई अमीर हमजा ने कहा ‘पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। हम उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे,’ हालांकि सजा पाए बाकी लोगों के परिजन इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोग अहमदाबाद बम धमाकों के मामले में फैसले की टाइमिंग पर सवाल जरूर उठा रहे हैं।
एक खबर के अनुसार, क्राइम ब्रांच में सहायक पुलिस आयुक्त और मामले की जांच में शामिल रहे जीतेंद्र यादव तत्कालीन उपायुक्त अभय चूडासमा का जिक्र करते हुए बताते हैं, ‘हम धमाके के बाद 5 दिनों तक सो नहीं पाए वह बहुत ही चुनौती भरा समय था। लोग हमारे सामने मर रहे थे और कोई लीड नहीं थी। पांचवे दिन (अभय) चूडासमा को बड़ी जानकारी मिली कि आतंकियों का बेस बरूच के पास था.’ पुलिस की टीम भरूच पहुंची, हालांकि, इस दौरान हमलावर भाग गए थे, लेकिन टीम को इलाके से कुछ मोबाइल नंबर मिले, जो लीड हासिल करने में सहायक साबित हुए।
यादव ने कहा कि धमाके हमारे देश के खिलाफ साजिश का हिस्सा थे। जयपुर, दिल्ली में ब्लास्ट हुए और इसी तरह की कोशिशें सूरत में भी हुईं। सिमी के सदस्य इंडियन मुजाहिदीन के रूप में एक बार फिर तैयार होने की कोशिश कर रहे थे। कोई भी अपराधी फरार नहीं हुआ है। आज देश में IM खत्म हो चुकी है.’ उस दौरान अहमदाबाद पुलिस ने मुंबई, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के समकक्षों के साथ संपर्क किया। खुफिया जानकारी साझा करने के बाद अहमदाबाद, वडोजरा और जयपुर में हमले को अंजाम देने के लिए आयोजित हुई बैठकों की जानकारी मिली।
उन्होंने कहा कि हमें पता चला कि अहमदाबाद में ब्लास्ट से पहले दो ट्रेनिंग कैंप आयोजित किए गए थे। ये कैंप हलोल के पास जंगली इलाके में आयोजित हुए थे. हमें पता चला कि इस तरह के ट्रेनिंग सेशन दक्षिण केरल और कर्नाटक में भी हुए थे और हमने वहां लोगों से पूछताछ शुरू की।’ मामले में मौत की सजा पाने वाले तब सिमी के प्रमुख रहे सफदर नागौरी और कमरुद्दीन नागौरी का नाम भी शामिल है। कहा जाता है कि इन दोनों ने केरल के जंगल में करीब 50 लोगों को धमाके की ट्रेनिंग दिलाई थी।
यादव ने कहा कि अब्दुल और यासीन भटकल मामले के मुख्य साजिशकर्ता थे, वे पुणे में थे, जहां से हमने उन्हें पकड़ा था. वे पाकिस्तान में ISI से निर्देश हासिल कर रहे थे. बाटला हाउस एनकाउंटर अहमदाबाद धमाकों की जांच का नतीजा था.’ जांच के दौरान फील्ड ऑपरेशन और टेक्निकल टीम की अगुवाई करने वाले यादव बताते हैं कि धमाके के 15 दिनों के बाद पहली गिरफ्तारी हुई और 15 नवंबर 2008 तक गुजरात पुलिस ने लगभग सभी दोषियों को पकड़ लिया था।
एजेंसी के अनुसार, यह पहली बार है, जब इतने दोषियों को किसी अदालत ने एक बार में मौत की सजा सुनाई है। जनवरी 1998 में तमिलनाडु की एक टाडा अदालत ने 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।
न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों के करीब 14 साल बाद मामले में सजा सुनायी है। अदालत ने आठ फरवरी को मामले में 49 लोगों को दोषी ठहराया था और 28 अन्य को बरी कर दिया था। अदालत ने 48 दोषियों में से प्रत्येक पर 2.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और एक अन्य पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. घायलों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये तथा मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया।
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