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    गेहूं की बुआई के लिए कृषि विज्ञानियों ने की एडवाइजरी जारी

  • November 17, 2021

    • 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक अगेती बुआई का समय होता है जो निकल चुका है

    भोपाल। प्रदेश में इस समय गेहूं की बुआई चल रही है। ऐसे समय गेहूं की बुआई करने वाले किसानों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इंदौर स्थित क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र के कृषि विज्ञानियों ने एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी के अनुसार 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक अगेती बुआई का समय होता है जो निकल चुका है, लेकिन फिलहाल 10 से 25 नवंबर तक समय से बुआई की अवधि चल रही है। कृषि विज्ञानियों की ओर से जारी एडवाइजरी के अनुसार क्षेत्र के लिए अनुशंसित प्रजातियों का प्रमाणित या आधार बीज जो उचित स्रोत से मिले और गुणवत्तायुक्त हो, ऐसे बीज का चयन करना चाहिए। गेहूं की खेती की तैयारी और सिंचाई जल उपयोगिता बढ़ाने के लिए खरीफ फसल कटते ही एक सप्ताह के अंदर जुताई करना चाहिए।



    सूखे खेत में ही आवश्यकता के अनुसार उर्वरक डालकर उथली बुआई कर सिंचाई करें। सूखे में बुआई करने के बाद ऊपर से दिया गया पानी गेहूं की फसल में अधिक समय तक काम आता है। खेत में नत्रजन, स्फुर और पोटाश संतुलित मात्रा अर्थात 4:2:1 के अनुपात में डालें। ऊंचे कद की (कम सिंचाई वाली) प्रजातियों में नत्रजन, स्फुर और पोटाश की मात्रा 80:40:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई से पहले ही देना चाहिए। गेहूं की बोवनी शरबती किस्मों को नत्रजन, स्फुर और पोटाश की मात्रा 120:60:30 तथा मालवी किस्मों को 140:70:35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। पूर्ण सिंचित प्रजातियों में नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुआई के पहले खेत में बोना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा प्रथम और द्वितीय सिंचाई के बाद दो बार खेत में जब खेत में पैर धंसना बंद हो जाए तब छिड़काव कर दें। सल्फर की कमी वाले खेतों में फास्फोरस का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट द्वारा दें ताकि सल्फर की स्वत: आपूर्ति हो सके। मृदा की उर्वरता और जल धारण क्षमता को बनाए रखने के लिए अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर या मुर्गी की खाद 2.5 टन प्रति हेक्टेयर या हरी खाद (जैसे सनई या ढेंचा) का उपयोग हर तीन वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए।

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