– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन का शांति व सौहार्द के साथ समाधान आवश्यक है। लेकिन इस अवधि ने वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार और पहले सत्ता में रह चुकी पार्टियों को अपने कृषि कार्यवृत्त पर चर्चा का अवसर भी दिया है। पंजाब में कृषि मंडियों से किसी ना किसी रूप में जुड़े लोगों की नाराजगी समझ में आती है, क्योंकि पंजाब और हरियाणा की अस्सी प्रतिशत कृषि उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाती है। जबकि देश में नौ प्रतिशत से भी कम किसानों का अनाज न्यूनतम समर्थन पर खरीदा जाता है। ऐसे में अन्य प्रदेशों में आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। यहां के किसानों को तो बेहतर विकल्प दिया गया है। उनके अधिकारों में वृद्धि की गई है।
इस तथ्य को इन राज्यों की गैर भाजपा सरकारें व विपक्षी दल समझने में असमर्थ रहे है। उन्होंने केवल इतना देखा कि आंदोलन केंद्र की मोदी सरकार के विरुद्ध है। फिर क्या था, इन्होंने भारत बंद और आंदोलन के समर्थन का ऐलान कर दिया। इन पार्टियों के नेता व कार्यकर्ता बन्द के समर्थन में सड़कों पर आ गए। इसमें किसानों की कितनी सहभागिता थी, इसपर मतभेद हो सकता है। किन्तु इनमें से किसी नेता ने यह नहीं बताया कि कृषि कानून से उनके प्रदेश के किसानों को क्या लाभ नुकसान होगा। कांग्रेस नेताओं ने पहले कहा था कि पूरी जमीन पर पूंजीपतियों के कब्जा हो जाएगा। यही अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी दोहराने लगी।
एकबार फिर नागरिकता संशोधन कानून जैसी स्थिति आ गई। तब कांग्रेस ने कहा कि वर्ग विशेष से कागज मांगे जाएंगे, कागज नहीं दिए तो सरकार नागरिकता समाप्त समझो। इसी जुमले के साथ कांग्रेस के दिग्गज नेता महिलाओं के धरना स्थलों पर समर्थन देने पहुंच गए। कांग्रेस आगे बढ़ी तो अन्य दावेदार पीछे कैसे रहते, वह भी नागरिकता समाप्त होने की आशंका जताने धरना स्थलों पर पहुंचने लगे।.तब किसी ने यह नहीं बताया था कि संशोधन कानून में नागरिकता समाप्ति जैसा कोई शब्द ही नहीं है। यह तो उत्पीड़ित बन्धुओं को नागरिकता देने का कानून है। इस तरह कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद हुई। कांग्रेस के पीछे चलने का नुकसान अन्य पार्टियों को उठाना पड़ा।
इसी प्रकार पंजाब के अलावा अन्य प्रदेश के क्षेत्रीय दल स्थिति का आकलन करने में विफल रहे। इसने भाजपा को अवसर प्रदान किया। उसने अपने कार्यकाल में हुए किसान कल्याण कार्यों का ब्योरा दिया। लेकिन सत्ता में रहे कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों के पास इसका कोई जवाब नहीं था। साढ़े छह करोड़ किसानों के क्रेडिट कार्ड हैं। तीन करोड़ किसानों को क्रेडिट कार्ड और दिया जाना है। खाद सब्सिडी के रूप में अस्सी हजार करोड़ रुपये का निवेश किया गया। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। छोटी अवधि के लिए किसानों को आठ लाख करोड़ का ऋण दिया गया है। इस पन्द्रह लाख करोड़ तक पहुंचाया जाएगा। नाबार्ड अब तक कृषि क्षेत्र में नब्बे हजार करोड़ रुपये खर्च करता था, अब उसके खर्च का बजट तीस हजार करोड़ और बढ़ा दिया गया है। गेहूं खरीद की मात्रा यूपीए सरकार के समय दस वर्ष पहले के मुकाबले वर्तमान वर्ष एक सौ सत्तर प्रतिशत तक हो गई। दस वर्ष पहले गेहूं खरीद करीब सवा दी सौ लाख मीट्रिक टन थी। इस वर्ष करीब तीन सौ निन्यानबे लाख मीट्रिक टन हो गया। यूपीए में गेहूं में अधिकतम पचास रुपए की बढ़ोतरी एमएसपी में की गई,जबकि मोदी सरकार ने वर्ष दो वर्ष पहले इससे दुगनी से अधिक की बढ़ोतरी की थी। यह पिछले आठ वर्षो का अधिकतम बढ़ोतरी का रिकॉर्ड था।
धन खरीद में दस वर्ष पहले यूपीए के मुकाबले डेढ़ सौ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। दालों की खरीद मोदी सरकार के समय शुरू हुई। पिछली सरकारों के समय न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित होता था। लेकिन एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी। किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज माफी के पैकेज घोषित किए जाते थे, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक यह पहुंचते ही नहीं थे। पहले सरकार खुद मानती थी कि एक रुपए में से सिर्फ पन्द्रह पैसे ही किसान तक पहुंचते हैं। अब एक-एक पाई किसानों तक पहुंच रही है। वर्तमान सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी रोकी। उसकी नीमकोटिंग की गई। इससे किसानों को यूरिया मिलने लगी। कृषि मंडी समाप्त करने की बात गलत है। यह सरकार तो मंडियों को आधुनिक बना रही है। नए कृषि सुधारों से विकल्प दिए गए हैं। मंडी से बाहर हुए लेन देन गैरकानूनी माना जाता था। इसपर छोटे किसान को लेकर विवाद होता था, क्योंकि वे मंडी पहुंच ही नहीं पाते थे। लेकिन अब छोटे से छोटे किसान को विकल्प दिए गए हैं।
अगर कोई पुराने सिस्टम से ही लेनदेन ठीक समझता है तो उसपर भी रोक लगाई नहीं लगाई गई है। स्वामीनाथन रिपोर्ट यूपीए के समय आ गई थी। लेकिन उसने इसे लागू नहीं किया। नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया है। अब गांवों में आधुनिक सड़कों के साथ भंडारण, कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्थाएं की जा रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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