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अग्निबाण ब्रेकअप – अब तक 414 फर्जी बिलों के जरिए 102 करोड़ का भुगतान ठगोरी फर्मों ने किया हासिल

  • March 27, 2025

    • मात्र 148 बिल ही जांच में सही पाए गए, 130 अभी प्रक्रिया में शासन की हाई पॉवर कमेटी भी बोगस साबित

    इंदौर। निगम के बहुचर्चित फर्जी बिल महाघोटाले को लेकर अग्निबाण ने लगातार तथ्यात्मक खबरों का प्रकाशन गत वर्ष किया, जिसके आधार पर पुलिस जांच में भी मदद मिली। वहीं शासन ने जो हाई पॉवर कमेटी बनाई वह भी बोगस साबित हुई। सिर्फ एक बार ही कमेटी के सदस्य इंदौर निगम आए और ढेर सारी फाइलों के साथ बाद में जो रिकॉर्ड भिजवाए उसे ठंडे बस्ते में पटक दिया और अभी तक कोई परिणाम सामने नहीं आया।

    दूसरी तरफ निगम की लेखा शाखा ने 692 बिलों की जांच विभागों के जरिए शुरू करवाई, जिसमें से अभी तक 414 फर्जी बिल पाए गए, जिनके जरिए 102 करोड़ का भुगतान ठगोरी फर्मों ने निगम खजाने से हासिल कर लिया। अभी 130 बिल और जांच-पड़ताल से बचे हैं। अभी जो 11 करोड़ का फर्जीवाड़ा सामने आया वह इन्हीं बोगस बिलों में शामिल है, जिसके लिए पुलिस ने अलग से एफआईआर दर्ज कर ली। जबकि फर्म और आरोपी पुराने ही हैं। कुछ आरोपियों को जमानतें मिल गई, कुछ अभी जेल में बंद हैं। सिर्फ 148 बिल ही सही पाए गए हैं।


    सडक़, ड्रैनेज, पानी के टैंकरों, ट्रेंचिंग ग्राउंड सहित अन्य विभागों में हुए कागजी कामों के एवज में फर्जी बिल बनाकर यह महाघोटाला सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया। इनमें लिप्त फर्मों के खिलाफ भी निगम ने पिछले साल एफआईआर दर्ज करवाई और अभी ड्रेनेज विभाग के ही वर्ष 2012 से 19 के बीच हुए फर्जी भुगतान के मामले में पुलिस ने नींव कंस्ट्रक्शन के कर्ताधर्ता मोहम्मद साजिद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। निगमायुक्त शिवम वर्मा का कहना है कि यह उन पुराने मामलों में ही शामिल है, जिसकी जांच चल रही है और कुल 692 बिल संबंधित विभागों को जांच के लिए भेजे गए। अभी पिछले दिनों ड्रैनेज विभाग का प्रतिवेदन मिला, जिसमें यह पता चला कि जिन बिलों के जरिए भुगतान हासिल किया वे कार्य मौके पर हुए ही नहीं। ड्रेनेज विभाग के ही सबसे अधिक 186 बिलों की जांच करवाई गई, जिसमें 169 बिल ऐसे पाए गए जिनका भौतिक सत्यापन जिनमें कोई मैदानी कार्य होना नहीं पाया गया।

    निगम के लेखा विभाग का कहना है कि अभी 130 बिल और जांच के शेष हैं और जो 692 बिल जांच के दायरे में लिए गए उनमें सिर्फ 148 ही अभी तक सही पाए गए और 414 फर्जी निकले हैं, जिनके जरिए 102 करोड़ रुपए का भुगतान इन ठगोरी फर्मों ने हासिल कर लिया, उन सभी के खिलाफ निगम ने एफआईआर दर्ज करवा दी है। पिछले साल जब इस फर्जी बिल महाघोटाले का हल्ला मचा तब मुख्यमंत्री के निर्देश पर एक हाई पॉवर कमेटी का भी गठन किया गया, जो कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई और उसने निगम पहुंचकर इस मामले से जुड़े सबूत तो इक_े किए ही, बाद में लेखा शाखा से बैंक खातों के साथ-साथ इन सभी फर्मों को जारी किए गए वर्क ऑर्डर, टेंडर और भुगतान की गई राशि का विवरण मांगा, जो कि निगम ने महीनों पहले सौंप भी दिया।

    मगर ये हाई पॉवर कमेटी भी बोगस साबित हुई और अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि उसी वक्त निगमायुक्त शिवम वर्मा नेअपर आयुक्त सिद्धार्थ जैन के नेतृत्व में जो जांच कमेटी बनाई थी उसी की अंतरिम रिपोर्ट में लगभग 100 करोड़ रुपए की गड़बडिय़ां शुरुआत में ही पकड़ ली थी और फिर उसी आधार पर 692 बिलों की जांच शुरू कराई गई, जिसमें पहले तो 91 करोड़ का घोटाला प्रमाणित हुआ था और अब 11 करोड़ रुपए की राशि उसमें और शामिल हो गई है, जिसके चलते 102 करोड़ रुपए का फर्जी भुगतान इन ठेकेदारों ने हासिल कर लिया। दूसरी तरफ वास्तविक विकास कार्यों के लिए निगम के पास पैसा नहीं रहता। जो बोगस भुगतान इन ठगोरी फर्मों ने हासिल किया उसकी वसूली किस तरह होगी इसका फैसला तो हालांकि कोर्ट से किया जाना है। मगर इस पूरे मामले में ऑडिट विभाग की घनघोर लापरवाही और मिलीभगत उजागर हुई। हालांकि ऑडिट विभाग के अधिकारियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। दूसरी तरफ निगम ने ऑडिट विभाग का 2020 से लेकर अभी तक का भुगतान भी रोका और अब एक-एक फाइल की जांच करने और मौके की रिपोर्ट हासिल करने के बाद ही भुगतान किया जा रहा है।

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