नई दिल्ली: गेहूं के बाद अब चावल उत्पादन भी प्रभावित होने की संभावना है. खाद की बढ़ती कीमतों और ग्लोबल सप्लाई चेन में दिक्कतों की वजह से एशिया में चावल उत्पादन इस बार घटने का अनुमान है. वहीं, दूसरी तरफ मांग बढ़ने की संभावना है. लिहाजा फिर से फूड सिक्योरिटी और इंफ्लेशन के लिए जोखिम बढ़ेगा.
कासिकोर्न बैंक पीसीएल की एक रिसर्च इकाई के अनुसार, दुनिया के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक थाईलैंड में फसल की पैदावार में गिरावट आ सकती है. इसकी मुख्य वजह खाद और दूसरे फसल पोषक तत्वों की कीमतों में वृद्धि है. वहीं, चावल का दूसरा सबसे आयातक फिलीपींस में बुआई घटने की वजह से उसके द्वारा खरीद बढ़ेगी. चीन कीटों से होने वाले नुकसान की वजह से चिंतित है, जबकि भारत का उत्पादन अच्छे मानसून पर निर्भर करता है.
एशिया के लिए चावल महत्वपूर्ण
दुनिया का अधिकांश चावल एशिया में उगाया और खाया जाता है. लिहाजा यह इस क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद गेहूं और मकई की कीमतों में उछाल के विपरीत, चावल का रेट कम हुआ है. लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह ऐसा ही रहेगा. ऐसे ही हालात में 2008 की शुरुआत में, आपूर्ति को लेकर घबराहट के बीच कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर चढ़ गईं थीं, जो अब के स्तर से दोगुने से भी अधिक हैं.
कृषि उत्पादन मौसम पर निर्भर
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, गेहूं, मक्का और खाना पकाने के तेल की कीमतों की सारी बढ़त इस साल के अन्त में खत्म हो गई क्योंकि आपूर्ति के लिए बेहतर दृष्टिकोण बन गया. कृषि उत्पादन अंततः मौसम पर निर्भर है, जो जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिक अनिश्चित होता जा रहा है. गेहूं और मकई की लागत में कोई भी ताजा उछाल अनिवार्य रूप से भोजन और पशुओं के चारे के लिए चावल की मांग को फिर से बढ़ा देगी.
भारत चावल का बड़ा निर्यातक
द राइस ट्रेडर के उपाध्यक्ष, वी. सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत में चावल की फसल पर बहुत कुछ निर्भर करता है, जो दुनिया के निर्यात का लगभग 40% निर्यात करता है. वैश्विक आपूर्ति जोखिम में है, लेकिन अभी के लिए हमारे पास अभी भी बड़े पैमाने पर भारतीय उपलब्धता है जो कीमतों पर लगाम लगा रही है. हालांकि देश में मानसून की वजह से चावल की बुआई प्रभावित हो रही है. भारत में केंद्र सरकार राज्यों को जो गेहूं देती है उसमें कटौती करके चावल ज्यादा दे रही है. लिहाजा चावल की डिमांड और बढ़ेगी. ऐसी स्थिति में वैश्विक और घरेलू परिस्थितयां चावल के निर्यात को इस साल प्रभावित कर सकती हैं.
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