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लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद अब बिहार में जल्द चुनाव क्यों चाहते हैं नीतीश?

पटना. जेडीयू (JDU) ने विधानसभा चुनाव (assembly elections) के लिए अपनी लाइन-लेंथ तय कर ली है. राज्यसभा के सदस्य संजय झा (sanjay jha) को कार्यकारी अध्यक्ष (Executive Chairman) बना कर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने संगठन को नया स्वरूप भी दे दिया है. आरजेडी (RJD) के सीएम फेस और पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव (Former Deputy CM Tejashwi Yadav) जिन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाते, उसे नीतीश ने एक झटके में पहले ही फुस्स कर दिया है. भाजपा के राज्य स्तर के नेता भी नीतीश कुमार के साथ खड़े दिखते हैं. अगर एनडीए की एकता विधानसभा चुनाव तक बनी रही तो आरजेडी के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक की राह बिहार में और कठिन हो जाएगी.



लोकसभा चुनाव में एनडीए का बिहार में परफारमेंस संतोषजनक नहीं रहा, इसमें किसी को संदेह नहीं. लेकिन सुकून की सबसे बड़ी बात यह है कि जितने विधानसभा क्षेत्रों में उसे बढ़त मिली है, वह उसके लिए काफी उत्साहजनक है. हालांकि विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है, पर तैयारी ऐसी है कि समय से पहले चुनाव हो जाए तो कोई परेशानी न हो. नीतीश कुमार समय से पहले चुनाव कराना चाहते हैं. ऐसी सूचनाएं मीडिया रिपोर्ट्स में आती रही हैं.

तेजस्वी 15 अगस्त से बिहार के दौरे पर

बिहार में इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने वाले आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर बिहार भ्रमण की योजना बनाई है. उनकी यात्रा 15 अगस्त से शुरू होगी. बिहार में बड़े पैमाने पर नौकरियों का क्रेडिट अपने खाते में बताने वाले तेजस्वी यादव अपनी यात्रा में मुफ्त की रेवड़ियों और लुभावने वादों के अलावा सबसे बड़ा चुनावी अस्त्र आरक्षण को बनाने की तैयारी में हैं.

पटना हाईकोर्ट ने महागठबंधन सरकार के कर्यकाल में जातीय सर्वेक्षण के बाद 65 प्रतिशत तक बढ़ाई गई आरक्षण की सीमा को रद्द कर दिया है. तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर फैसला आने के बद से ही मुखर रहे हैं. आरजेडी ने तो यहां तक घोषणा कर दी है कि बिहार की मौजूदा एनडीए सरकार अगर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करती है तो यह काम वह खुद करेगा.

तेजस्वी ने तो नीतीश पर तंज भी कसना शुरू कर दिया है कि राज्य सरकार के आग्रह के बावजूद नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में भी बढ़े हुए आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया. अब तो नीतीश के 12 सांसदों की बैशाखी पर नरेंद्र मोदी की सरकार टिकी है. ऐसे में उन्हें केंद्र पर दबाव डाल कर इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करा लेना चाहिए, जिससे यह मामला न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए.

आरक्षण पर JDU ने स्टैंड साफ कर दिया

कार्यकारिणी की बैठक में जेडीयू ने स्पष्ट कर दिया कि आरक्षण की बढ़ी सीमा रद्द किए जाने के फैसले को सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. यानी जिस मुद्दे को लेकर विधानसभा चुनाव में तेजस्वी अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में थे, उस पर नीतीश कुमार ने पानी फेर दिया है. सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी, सुनवाई में वक्त लगेगा और फैसला आने तक बिहार के लोगों का संदेह भी दूर हो जाएगा कि नीतीश के नेतृत्व वाली बिहार की एनडीए सरकार आरक्षण के मुद्दे पर सजग और सक्रिय है. यानी तेजस्वी के हथियार की धार कुंद करने का नीतीश ने पहले ही पक्का बंदोबस्त कर लिया है. दरअसल आरक्षण के सवाल पर ही 2015 में बिहार में महागठबंधन को मुकम्मल जीत मिली थी. हुआ यह कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने बिहार दौरे में असेंबली चुनाव के दौरान आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी.

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने इसे भाजपा द्वारा आरक्षण खत्म करने की मंशा बताकर चुनाव के दौरान खूब प्रचारित किया. उनकी यह चाल कामयाब हो गई. बिहार में तब महागठबंधन की सरकार बन गई थी. इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान भी लालू ने इसी हथियार का प्रयोग किया. साथ में उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि नरेंद्र मोदी 400 पार का नारा इसलिए दे रहे हैं कि वे बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान को बदल सकें.

लालू का यह शिगूफा इंडिया ब्लॉक की पार्टियों ने भी खूब उड़ाया. भाजपा इसका सही ढंग से काउंटर नहीं कर पाई और वह लगातार दो लोकसभा चुनावों में मिली सीटों के मुकाबले काफी पीछे छूट गई. बिहार में भी भाजपा को नौ सीटों का नुकसान हो गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में 39 सीटें जीत ली थीं, लेकिन 2024 में उसे 30 सीटें ही आईं. अब आहिस्ता-आहिस्ता लोगों की समझ में आ चुका है कि यह न तो संभव है और न भाजपा के इरादे ही ऐसे हैं.

एनडीए का साथ नहीं छोड़ेंगे नीतीश कुमार

नीतीश कुमार ने कार्यकारिणी की बैठक में स्पष्ट कर दिया कि जेडीयू अब एनडीए का साथ कभी नहीं छोड़ेगा. उन्हें इसे दोहराने की जरूरत शायद इसलिए पड़ी कि लोकसभा चुनाव के चार-पांच महीने पहले इंडिया ब्लाक से अलग होकर जेडीयू के एनडीए में आने से लोगों को पक्का भरोसा नहीं हो पाया कि नीतीश कुमार सच में अब इधर-उधर नहीं होंगे.

अगर एनडीए को नौ सीटों का नुकसान हुआ तो इसकी मूल वजह यही रही. कम समय होने के कारण भाजपा और जेडीयू के समर्थकों के मन से यह भ्रम पूरी तरह मिट नहीं पाया. इसका नतीजा यह हुआ कि 2019 में 16 सीटों पर जीतने वाला जेडीयू इस बार चार सीटों पर पिछड़ गया. भाजपा को भी चार सीटों का नुकसान हुआ.

काराकाट में आरएलएम के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की हार के पीछे भी भ्रम की ही स्थिति रही. भाजपा में रहे भोजपुरी गायक पवन सिंह ने निर्दलीय बन कर राजपूतों के वोटों में सेंध लगा दी तो कुशवाहा वोट भी बंट गए. शाहाबाद इलाके की सभी पांच सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार हार गए. इसी वजह से नीतीश कुमार ने लोगों का भ्रम दूर करने के लिए एक बार फिर यह बात दोहरा दी है कि जेडीयू अब भाजपा का साथ कभी नहीं छोड़ेगा.

संसदीय चुनाव के आंकड़े NDA के पक्ष में

बिहार में लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण करने वाले वीरेंद्र यादव फाउंडेशन ट्रस्‍ट के आंकड़े लोकसभा चुनाव में नौ सीटों के नुकसान के बावजूद एनडीए के लिए उत्साहजनक संकेत देते हैं. फाउंडेशन के विश्लेषण के मुताबिक, बिहार में 174 विधानसभा क्षेत्रों में एनडीए आगे रहा. इंडिया ब्लॉक को सिर्फ 62 सीटों पर ही बढ़त मिली. अगर यह स्थिति विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रहती है तो एनडीए को बिहार में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक पाएगा. यह स्थिति तब रही, जब तमाम तरह के भ्रामक नरेटिव गढ़े और प्रचारित किए गए. भाजपा और जेडीयू के समर्थकों में सामंजस्य नहीं बन पाया.

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