इंदौर। नगरीय निकाय चुनाव (urban body elections) को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ( state election commission) ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सितम्बर तक इन चुनावों (election) को करवा लिया जाएगा, लेकिन ये चुनाव (election) तब तक संभव नहीं हैं जब तक कोर्ट में लगी याचिका (petition) पर फैसला न आ जाए और आरक्षण प्रक्रिया (election process) पर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिल जाएं। हालांकि अभी सरकार की ओर से कोर्ट में अपना जवाब भी दिया जाना है, इसलिए इतनी जल्दी चुनाव (election) होने पर संशय ही नजर आ रहा है।
जानकारों का कहना है कि निर्वाचन प्रक्रिया (election process) को पूरा करना राज्य निर्वाचन आयोग ( state election commission) का काम है और वह अपनी तैयारियां समय पर करता है। पिछले साल भी राज्य निर्वाचन आयोग ( state election commission) ने अपनी तैयारियां कर ली थीं, लेकिन अगस्त और सितम्बर में कोरोना (corona) फिर से बढऩे के बाद चुनाव टाल दिए गए थे और इस बार फिर कोरोना की दूसरी लहर में आयोग ने अपनी तैयारियां नहीं की। अब चूंकि कोरोना (corona) नियंत्रण में है और प्रदेश में टीकाकरण भी अच्छा चल रहा है, इसलिए आयोग ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हंै। हालांकि चुनाव (election) कराने में अभी एक बड़ा पेंच कोर्ट के फैसले का है, जिसमें दो नगर निगम सहित अन्य 79 अन्य नगरीय निकायों के महापौर (mayor) और अध्यक्ष के आरक्षण को लेकर स्टे है। हालांकि अभी सरकार की ओर से किसी प्रकार का जवाब कोर्ट (court) में पेश नहीं किया गया है। अगर सरकार अपनी ओर से जवाब पेश भी करती है तो इस पर फैसला होने में समय लग सकता है और जब तक कोर्ट (court) फैसला नहीं देगी तब तक चुनाव होना संभव नहीं है।
ये है याचिका
ग्वालियर हाईकोर्ट ( gwalior high court) में लगाई गई याचिका ( petition) में कहा गया था कि सरकार ने नगरीय निकाय चुनाव (urban body elections) के लिए जो आरक्षण किया है, उसमें इंदौर और मुरैना नगर निगम के साथ अन्य 79 निकायों में आरक्षण की रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उन्हीं वर्ग को यह सीट आरक्षित कर दी है जो पहले से उसी वर्ग के लिए आरक्षित थी। इससे दूसरे वर्ग चुनाव लडऩे से वंचित हो गए। अगर कोर्ट इसमें संशोधन या फिर से आरक्षण करने का फैसला सुनाती है तो एक बार फिर सभी निकायों के लिए आरक्षण होगा और इसमें समय भी लगेगा।
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष को लेकर फैसला बाकी
महापौर ( mayor) और अध्यक्ष का चुनाव कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला दिया था। शिवराज सरकार ने उस फैसले को पलट तो दिया, लेकिन उसे विधेयक के रूप में पास नहीं करवा सकी। चूंकि अध्यादेश को कानून बनाना है और हो सकता है कि राज्य सरकार अगले माह मानसून सत्र में इस विधेयक को पास करवा ले, ताकि महापौर एवं अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हो सके। वैसे अभी भी भाजपा का पूरा जोर यह चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने पर है।
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