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    हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत के बाद इजरायल और फिलिस्तीन पर टिकी दुनिया की नजरें

  • October 05, 2024

    येरुशलम। हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह (Hezbollah Chief Hassan Nasrallah) की मौत के बाद पूरी दुनिया की निगाहें अब इजरायल (Israel) और फिलिस्तीन (Palestine) पर लगी हैं. क्या इजरायल (Israel) अब लेबनान (Lebanon) पर जमीनी हमला करेगा? क्या ईरान इजरायल पर पलट वार करेगा? और क्या इस बीच सारी दुनिया दो हिस्सों में बंट जाएगी? दरअसल, ये मसला ही कुछ ऐसा है कि इसे सुलझाना आसान नहीं है. क्योंकि इस मसले की जड़ में 35 एकड़ जमीन का एक टुकड़ा है।


    35 एकड़ जमीन के लिए जंग
    ये पूरी दुनिया कुल 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ जमीन पर बसी है. जिस पर दुनिया भर के लगभग 8 अरब इंसान बसते हैं. इस 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ जमीन में से सिर्फ 35 एकड़ जमीन का एक ऐसा टुकड़ा है, जिसके लिए बरसों से जंग लड़ी जा रही है. जिस जंग में हजारों जानें जा चुकी हैं. लेकिन आज भी दुनिया की कुल 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ जमीन में से इस 35 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया. हमास का हमला और उसके जवाब में इजरायल की जोरदार बमबारी. जी हां, आप माने या ना मानें लेकिन सिर्फ 35 एकड़ जमीन के एक टुकड़े की वजह से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बरसों से ये जंग जारी है।

    संयुक्त राष्ट्र के अधीन है पूरी जगह
    इस जंग को समझने के लिए पहले 35 एकड़ इस जमीन की पूरी सच्चाई को समझना जरूरी है. येरुशलम में 35 एकड़ जमीन के टुकड़े पर एक ऐसी जगह है, जिसका ताल्लुक तीन-तीन धर्मों से है. इस जगह को यहूदी हर-हवाइयत या फिर टेंपल माउंट कहते हैं. जबकि मुस्लिम इसे हरम-अल-शरीफ बुलाते हैं. कभी इस जगह पर फिलिस्तीन का कब्जा हुआ करता था. बाद में इजरायल ने इसे अपने कब्जे में लिया. लेकिन इसके बावजूद आज की सच्चाई ये है कि 35 एकड़ जमीन पर बसे टेंपल माउंट या हरम अल शरीफ ना तो इजरायल के कब्जे में है और ना ही फिलिस्तीन के. बल्कि ये पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के अधीन है।

    761 सालों तक था मुस्लिम पक्ष का कब्जा
    35 एकड़ जमीन का ये वो टुकड़ा है, जिस पर सैकड़ों साल पहले ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था. लेकिन 1187 में यहां मुसलमानों का कब्जा हुआ और तब से लेकर 1948 तक मुसलमानों का ही कब्जा था. लेकिन फिर 1948 में इजरायल का जन्म हुआ और उसके बाद से ही जमीन के इस टुकड़े को लेकर जब-तब झगड़ा शुरू हो गया. आईए जान लेते हैं कि आखिर 35 एकड़ जमीन के इस टुकड़े पर ऐसा क्या है, जिसके लिए सदियों से यहूदी, ईसाई और मुस्लिम लड़ते रहे हैं।

    मुस्लिमों का दावा
    मुस्लिम मान्यताओं के मुताबिक मक्का और मदीना के बाद हरम-अल-शरीफ उनके लिए तीसरी सबसे पाक जगह है. मुस्लिम धर्म ग्रंथ कुरान के मुताबिक आखिरी पैगंबर मोहम्मद मक्का से उड़ते हुए घोड़े पर सवार होकर हरम अल शरीफ पहुंचे थे. और यहीं से वो जन्नत गए. इसी मान्यता के मुताबिक तब येरुशलम में मौजूद उसी हरम अल शरीफ पर एक मजसिद बनी थी. जिसका नाम अल अक्सा मस्जिद है. मान्यता है कि ये मस्जिद ठीक उसी जगह पर बनी है, जहां येरुशलम पहुंचने के बाद पैगंबर मोहम्मद ने अपने पांव रखे थे. अल अक्सा मस्जिद के करीब ही एक सुनहरे गुंबद वाली इमारत है. इसे डोम ऑफ द रॉक कहा जाता है. मुस्लिम मान्यता के मुताबिक ये वही जगह है, जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत गए थे. जाहिर है इसी वजह से अल अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र जगह है. इसीलिए वो इस जगह पर अपना दावा ठोंकते हैं।

    यहूदियों का दावा
    यहूदियों की मान्यता है येरुशलम में 35 एकड़ की उसी जमीन पर उनका टेंपल माउंट है. यानी वो जगह जहां उनके ईश्वर ने मिट्टी रखी थी. जिससे आदम का जन्म हुआ था. यहूदियों की मान्यता है कि ये वही जगह है, जहां अब्राहम से खुदा ने कुर्बानी मांगी थी. अब्राहम के दो बेटे थे. एक इस्माइल और दूसरा इसहाक. अब्राहम ने खुदा की राय में इसहाक को कुर्बान करने का फैसला किया. लेकिन यहूदी मान्यताओं के मुताबिक तभी फरिश्ते ने इसहाक की जगह एक भेड़ को रख दिया था. जिस जगह पर ये घटना हुई, उसका नाम टेंपल माउंट है. यहूदियों के धार्मिक ग्रंथ हिबू बाइबल में इसका जिक्र है. बाद में इसहाक को एक बेटा हुआ. जिसका नाम जैकब था. जैकब का एक और नाम था इसरायल. इसहाक के बेटे इसरायल के बाद में 12 बेटे हुए. उनके नाम थे टुवेल्व ट्राइब्स ऑफ इजरायल. यहूदियों की मान्यता के मुताबिक, इन्हीं कबीलों की पीढ़ियों ने आगे चल कर यहूदी देश बनाया. शुरुआत में उसका नाम लैंड ऑफ इजरायल रखा. 1948 में इजरायल की दावेदारी का आधार यही लैंड ऑफ इजरायल बना।

    ईसाइयों का दावा
    ईसाइयों की मान्यता है कि ईसा मसीह ने इसी 35 एकड़ की जमीन से उपदेश दिया. इसी जमीन से वो सूली पर चढे. फिर दोबारा जी उठे. और अब जब वो एक बार फिर जिंदा होकर लौटेंगे, तो भी इस जगह की एक अहम भूमिका होगी. जाहिर है ऐसे में ये जगह ईसाइयों के लिए भी उतनी ही पवित्र है, जितनी मुस्लिमों या यहूदियों के लिए।

    अब किसका कब्जा?
    अब सवाल ये है कि 35 एकड़ की जमीन का ये टुकड़ा जब तीन-तीन धर्मों के लिए इतना अहम है, तो फिर फिलहाल इस पर कब्जा किसका है? इन धार्मिक स्थलों की रखरखाव की जिम्मेदारी किसके पास है? और इसके लिए खास तौर पर यहूदी और मुस्लिम आपस में लड़ते क्यों रहते हैं?

    संयुक्त राष्ट्र ने निकाला ये रास्ता
    मगर यरूशलम को लेकर लड़ाई अब भी जारी थी. क्योंकि इजराइल और फिलिस्तीन दोनों यरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहते थे. फिर धार्मिक लिहाज़ से भी यरूशलम ना सिर्फ मुस्लिम और यहूदी बल्कि ईसायों के लिए भी बेहद ख़ास था. तब ऐसे में संयुक्त राष्ट्र बीच में आया और उसने एक तरह से फ़िलिस्तीन के एक और टुकड़े किए. अब यरूशलम का आठ फ़ीसदी हिस्सा संयुक्त राष्ट्र के कंट्रोल में आ गया. जबकि 48 फ़ीसदी ज़मीन का टुकड़ा फिलिस्तीन और 44 फ़ीसदी टुकड़ा इजराल के हिस्से में रह गया. येरुशलम का वो आठ फीसदी हिस्सा जो 35 एकड़ जमीन पर बसा है, वही हरम अल शरीफ या फिर टेंपल माउंट है।

    दरअसल, आजाद देश बनने के बाद इजरायल येरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था. जबकि फिलिस्तीन येरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था. इसको लेकर जब तब झडपें होतीं. इसी का हल निकालने के लिए संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में ये फैसला हुआ कि 35 एकड़ जमीन के उस टुकड़े पर ना इजरायल का कब्जा रहेगा, ना फिलिस्तीन का, बल्कि वो सीधे संयुक्त राष्ट्र के अधीन रहेगा।

    तीसरे देश के पास है प्रबंधन की जिम्मेदारी
    पर इसके बावजूद एक मसला अब भी बचा हुआ था और वो ये कि हरम अल शरीफ या टेंपल माउंट के रख रखाव की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए? तो इसका भी हल निकाला गया. एक तीसरे देश जॉर्डन को हरम अल शरीफ या फिर टेंपल माउंट के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई. साथ ही ये भी समझौता हुआ कि मुस्लिम यहूदियों को बाहर से उस टेंपल माउंट के दर्शन की इजाजत देंगे. हालांकि वो पूजा पाठ नहीं करेंगे. यही सिलसिला अब भी चला आ रहा है. लेकिन होता ये है कि दोनों ही तरफ के कट्टरपंथी लोग इस समझौते को नहीं मानते. इसीलिए जब कोई यहूदी टेंपल माउंट के दर्शन के लिए आता है, तो अंदर से उस पर पथराव किया जाता है. जवाब में इजरायली भी उन पर पथराव करते हैं.

    फिलिस्तीन के पास नहीं अपनी सेना
    इजरायल के जन्म के बाद से ही ये फैसला हो गया था कि फिलिस्तीन के पास अपनी कोई सेना नहीं होगी. लेकिन इजरायल की ज़रूर होगी. इसीलिए इजरायल जब भी फिलिस्तीनियों पर हमला करता है, तो फिलिस्तीनी उनका मुकबला पत्थरों से करते हैं. इसके बाद फिलिस्तीन के समर्थन में ईरान आया और फिर हमास और हिज्बुल्लाह जैसे संगठन उसके साथ खड़े दिखाई दिए.

    इजरायल के पास बड़ी फौज
    इज़रायल डिफेंस फॉर्सेस यानि IDF के पास एक लाख 70 हजार फौज के जवान और अधिकारी हैं जबकि उसके पास अस्थाई फौज के तौर पर तीस लाख से ज्यादा शहरी हमेशा फौज में अपनी सेवा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. ये आंकडे चौंका देने वाले हैं क्योंकि 90 लाख के देश में तीस लाख नागरिक ऐसे हैं जो फौज में सेवाएं देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इसकी वजह ये है कि इज़रायल के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए फौजी ट्रेनिंग जरुरी होती है.

    हमास के पास 80 हजार लड़ाके
    दूसरी तरफ फिलिस्तीन की हालत ये है कि वो खुद के हथियार के नाम पर कुछ रॉकेट्स ही बना पाता है, जिससे अक्सर इजराइल को निशाना बनाता है. हालांकि जानकारों की मानें तो इनमें से भी ज्यादातर रॉकेट वो या तो ईरान की मदद से बनाता है या फिर ईरान चोरी-छिपे इन रॉकेट्स की सप्लाई फिलिस्तीन को करता है. फिलिस्तीनियों के पास कोई स्थाई सेना तो नहीं है, लेकिन गाज़ा और वेस्ट बैंक में इज़राइलियों से लोहा लेने वाले हमास समेत कई लड़ाके गुट में और इनकी संख्या करीब 80 हज़ार के आसपास है.

    फिलिस्तीन के पास कभी नहीं थी फौज
    दरअसल, 150 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास कोई फौज नहीं थी क्योंकि तब वो ऑटोमन राज्य के तहत आता था. 100 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब फिलिस्तीन का एक देश के तौर पर कोई वजूद नहीं था और वो ब्रिटिश हुकूत के अधीन था. 60 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब वो जॉर्डन के हिस्से में आता था. 1988 में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने पहली बार फिलिस्तीन को एक आज़ाद मुल्क का नाम दिया, जिसे जॉर्डन और मिस्र ने अपनी रज़ामंदी दे दी. 1993 में इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच हुए ऑस्लो अकॉर्ड में इज़रायल ने फिलिस्तीन के फौज बनाने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद से ही फिलिस्तीन के पास अर्धसैनिक बल हैं तो जो वेस्ट बैंक इलाके में तैनात रहते हैं , लेकिन कोई स्थाई फ़ौज नहीं है. जबकि गाज़ा में सत्ता चलाने वाले हमास के पास लड़ाके हैं जो अक्सर इज़राइल को अपना निशाना बनाते रहते हैं.

    इजरायल का मुकाबला ऐसे करता है फिलिस्तीन
    वैसे तो इज़रायल और फिलिस्तीन सालों से एक दूसरे से टकराते रहे हैं. दोनों मुल्कों की इस जंग में अब तक हज़ारों लोगों की जानें भी जा चुकी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इज़ारयल बार-बार जिस फिलिस्तीन से लोहा लेता है, उस मुल्क यानी फिलिस्तीन के पास अपनी कोई सेना तक नहीं है? सवाल ये है कि अगर फिलिस्तीन के पास अपनी फ़ौज नहीं है, तो फिर फिलिस्तीन इजरायल का मुकाबला कैसे करता है.

    फिलिस्तीन का सबसे बड़ा दोस्त है ईरान
    तो यहीं से शुरु होती है फिलिस्तीन के दोस्तों की कहानी. लेकिन इनमें फिलिस्तीन का जो सबसे बड़ा दोस्त है वो कभी खुद सामने आकर इजरायल से नहीं लड़ता. बल्कि इसके लिए उसने हिज्बुल्लाह, हमास और हूती जैसे संगठनों को या तो खड़ा किया या फिर हथियार और पैसों से मदद देता रहा और ये दोस्त कोई और नहीं ईरान है.

    ईरान का पलटवार
    इस बार भी ईरान ने इजरायल पर जो 200 मिसाइल दागे हैं वो जंग के लिए नहीं बल्कि पलटवार के लिए थे. ईरान का कहना था कि हाल के वक्त में इजरायल ने जिस तरह हिज्बुल्लाह और हमास के नेताओं को निशाना बनाया ये उसका बदला था. यानि कायदे से अभी तक ना ईरान इजरायल से सीधी जंग लड़ रहा है और ना इजरायल ईरान से.

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