उज्जैन। इस साल 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में उज्जैन को स्वच्छता में पहला नंबर मिला है। इसके बावजूद शहर प्रदूषण से लड़ाई लड़ रहा है। प्रदूषण का स्तर दीपावली पर काफी बढ़ गया था लेकिन पिछले 50 दिनों से इसमें स्थिति नियंत्रण में आई है और अभी भी प्रदूषण का स्तर 100 से नीचे नहीं आया है। प्रदूषण खराब होने पर सांस के मरीजों की संख्या बढ़ सकती है। शहर में वायु प्रदूषण को देखते हुए प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक कई नई योजनाएं बना रहे हैं, लेकिन पिछले दिनों में दर्ज प्रदूषण के आंकड़े बताते हैं कि इन योजनाओं का कोई असर नहीं हो रहा है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा शहर में हर पल वायु प्रदूषण की गणना की जाती है। इसके आधार पर रोज का औसत प्रदूषण स्तर एयर क्वालिटी इंडेक्स के रूप में निकाला जाता है। प्रदूषण विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक दीपावली के दौरान शहर में प्रदूषण का स्तर 237 तक चला गया था लेकिन अब यह नियंत्रण में आ रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक ए.डी. संत ने बताया कि अभी भी स्तर 100 के पार है लेकिन यह नियंत्रण में है।
प्रशासन कर रहा कई प्रयास – पुराने डीजल वाहन से अधिक प्रदूषणड्ड
शहर में वायु प्रदूषण कम करने के लिए जिला प्रशासन नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, परिवहन विभाग और जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर कई प्रयास कर रहा है। इसके तहत पिछले दिनों बड़े उद्योगों में लकड़ी और कोयले के बजाय गैस आधारित बायलर चलाने के आदेश दिए गए हैं। वहीं होटलों में भी लकड़ी या कोयले की भ_ी के बजाय गैस की भ_ी के उपयोग के आदेश दिए हैं। दूसरी ओर शहर में चलने वाली बसों को भी सीएनजी बसों के साथ बदलने की तैयारी की जा रही है। इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
प्रदूषण बढऩे के ये प्रमुख कारण
वरिष्ठ वैज्ञानिक ए.डी. संत ने बताया कि शहर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ा हुआ है। प्रदूषण का स्तर बढऩे के अभी प्रमुख तीन कारण हैं। पहला हवा की गति कम होना, दूसरा शहर में पिछले दो साल से सीवरेज की खुदाई और तोडफ़ोड़ का काम होना है। तीसरा कारण अभी भी कई वाहन जहरीला धुआं छोड़ रहे हैं।
शहर में बढ़ रहे सांस के मरीज
आरएमओ डॉ. जितेन्द्र शर्मा के मुताबिक शहर में पिछले कुछ समय से लगातार प्रदूषण बढऩे के कारण सांस के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। जिन लोगों को पहले से अस्थमा जैसी बीमारियां हैं उनकी स्थिति ज्यादा खराब है। सामान्य सर्दी-खांसी से लेकर लोग निमोनिया की स्थिति तक पहुंच रहे हैं। यह काफी चिंताजनक है।
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