वाराणसी/नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Dham) पर हुये मुगल आक्रमण का जिक्र करते हुये कहा कि अगर यहां कोई औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं! कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का उद्घाटन (Inauguration) करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, वह सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। काशी तो काशी है! काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किये, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किया। औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की! लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं! अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। और अंग्रेजों के दौर में भी हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, यह तो काशी के लोग जानते ही हैं।
उन्होंने कहा कि काशी शब्दों का विषय नहीं है, संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वह है- जहां जागृति ही जीवन है! काशी वह है- जहां मृत्यु भी मंगल है! काशी वह है- जहां सत्य ही संस्कार है! काशी वह है- जहां प्रेम ही परंपरा है।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि बनारस वह नगर है, जहां से जगद्गुरु शंकराचार्य को श्रीडोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली, उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। यह वो जगह है, जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की।
प्रधानमंत्री ने कह कि यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाज सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहां प्रकट हुये। समाज को जोड़ने की जरूरत थी, तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी यही काशी बनी।
उन्होंने कहा कि काशी अहिंसा, तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य,रामानन्द जी के ज्ञान तक चैतन्य महाप्रभु,समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदनमोहन मालवीय तक कितने ही ऋषियों,आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के चरण यहां पड़े थे। रानीलक्ष्मी बाई से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद तक, कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद,पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभाएं इस स्मरण को कहां तक ले जाया जाये।
आगे उन्होंने कहा कि आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है। यहां काशी में तो माता अन्नपूर्णा खुद विराजती हैं। मुझे खुशी है कि काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा एक शताब्दी के इंतजार के बाद अब फिर से काशी में स्थापित की जा चुकी है।
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