– रमेश सर्राफ धमोरा
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद म्यूजिकल चेयर बन गया है। इसकी वजह यह है कि सभी नेता अध्यक्ष बनने से इनकार कर रहे हैं। कांग्रेस के हर बड़े नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ही इस ताज को पहनें। मगर राहुल अध्यक्ष बनने से लगातार इनकार कर रहे हैं। राहुल के इनकार के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक, वर्किंग कमेटी की सदस्य कुमारी शैलजा सहित कई नेता इस दौड़ में शामिल हो गए हैं।
सोनिया गांधी चाहती हैं कि अशोक गहलोत इस जिम्मेदारी को संभालें। उनका मानना है कि वह सब के साथ तालमेल बिठाकर काम कर सकते हैं। ठीक इसके उलट अशोक गहलोत विनम्रता से इसके लिए हाथ जोड़ चुके हैं। गहलोत का मानना है कि राहुल ही अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस को मजबूत कर सकते हैं। गहलोत 250 से अधिक बड़े नेताओं से समर्थन लेकर राहुल गांधी को मनाने का प्रयास कर रहे हैं। गहलोत का कहना है कि उन्हें राजस्थान की जिम्मेदारी मिली हुई है। उनका कार्यकाल बाकी है। वह फिलवक्त राजस्थान की जनता की सेवा करना चाहते हैं। गहलोत इस समय गुजरात में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं। उनका प्रयास है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर किया जा सके।
अशोक गहलोत की गिनती कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में होती है। वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। राष्ट्रीय संगठन महासचिव, सेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ ही गहलोत तीन बार राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके हैं। वह तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं। राजस्थान में गहलोत कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हैं। बहुमत नहीं मिलने पर भी जोड़-तोड़ कर वह दूसरी बार सरकार बनाकर सफलतापूर्वक चला रहे हैं। गहलोत को यह भी पता है कि यदि वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर जयपुर से दिल्ली जाते हैं तो उनके स्थान पर उनके कट्टर विरोधी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया सकता है। गहलोत किसी भी स्थिति में यह नहीं चाहते। गहलोत व सचिन के बीच छत्तीस का आंकड़ा किसी से छुपा हुआ नहीं है। दोनों नेताओं के मध्य सुलह करवाने की कोशिश भी विफल हो चुकी है।
गहलोत को पता है कि राजस्थान व दिल्ली की राजनीति में बड़ा फर्क है। राजस्थान की राजनीति को तो वह वर्षों से अपनी अंगुली पर नचा रहे हैं। मगर दिल्ली जाने के बाद ऐसा कर पाना संभव नहीं होगा। उनको पता है कि यदि वह अध्यक्ष बन भी जाते हैं तो पार्टी तो गांधी परिवार के नियंत्रण में ही रहेगी। ऐसे में वह मात्र कठपुतली बनकर रह जाएंगे। ऊपर से राजस्थान भी उनके हाथ से निकल जाएगा। अगले कुछ महीनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव होंगे। यदि इनके चुनाव नतीजे कांग्रेस के मनमाफिक नहीं रहते हैं तो पूरी जिम्मेदारी उनकी मानी जाएगी। तब विफलता का ठीकरा उनके सिर ही फूटेगा। संभवतः इसीलिए वह दिल्ली जाने के लिए आनाकानी कर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के वफादारों की अपनी-अपनी मंडली है। बहुत हद तक संभव है कि गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में इन वफादार नेताओं की बातों को अनसुना करते हैं तो उन्हें साजिश का शिकार होना पड़ सकता है। इसके बाद उनका दिल्ली की राजनीति में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। अभी गहलोत राजस्थान में जैसा चाहते हैं वैसा ही पार्टी करती है। राजस्थान के अधिकांश मंत्री व विधायक उनके वफादार हैं।
पिछले दिनों राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीट के चुनाव हुए थे। इनमें गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान की पसंद को तवज्जो देते हुए तीनों ही बाहरी लोगों को चुनाव जितवा कर भेजा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला व प्रमोद तिवारी राजस्थान से राज्यसभा सांसद है। यह सभी कांग्रेस की राजनीति में प्रभावी हैं। दिल्ली में गहलोत की खुलकर पैरवी करते हैं। दिल्ली में अपनी मजबूत लाबी के बल पर ही गहलोत, पायलट को हाशिये पर पहुंचा पाए हैं।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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