– अर्चना राजहंस
डबल इंजन सरकार के नाम पर जहां अन्य प्रदेश सरकारें हांफने लगती हैं वहीं धामी खुलकर बोलते हैं कि हां, उत्तराखंड में मोदी-धामी की डबल इंजन सरकार काम करती है। कहते हैं कैलाश में शिव अपने अराध्य नारायण और लक्ष्मी के साथ में विराजमान हैं जिन्हें बद्री विशाल के नाम से जाना जाता है। बद्री विशाल यानी पांडव अर्जुन, यानी ईश्वर का वो मूर्तिमान रूप जो चारों युगों में यहां विराजमान है। इसने सृष्टि को कई बार बनते बिगड़ते देखा है। 2013 में केदारनाथ में हुए हादसे के बाद ऐसा लगा था मानों अब केदार को फिर से बसा पाना संभव नहीं हो पाएगा, लेकिन हरि और शिव जहां स्वयं विराजमान हों वहां कैसा रुदन? केदार को संवारने जैसे दोनों स्वयं आ गए हों, मोदी और धामी के रूप में।
कहते हैं उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार है। सच कहें तो यहां प्राकृतिक रूप से डबल इंजन सरकार है। इस पूरे प्रदेश को बद्री और केदार, शिव और हरि गार्ड करते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है। और वर्तमान में देखें तो उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार है। मोदी और धामी मिलकर भी गार्ड का काम ही करते हैं। कहते हैं कि आपदा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, एक सॉलिड आदमी आपके साथ होना चाहिए। फिर आपदा-वापदा कुछ एक्जिस्ट नहीं करता। उत्तराखंड के लिए पुष्कर सिंह धामी वही सॉलिड आदमी है। इसलिए लाख विपत्तियों के बावजूद ये प्रदेश खड़ा है और मुस्कुरा रहा है। अब तो इस प्रदेश से तरक्की की खुशबू भी आने लगी है। इस सॉलिड आदमी के साथ एक और बहुत सॉलिड आदमी खड़ा है। जैसे कि शिव के साथ हरि। नाम तो जानते ही होंगे। जी हां, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।
ये जोड़ी जय और वीरू की जोड़ी नहीं है। ये जोड़ी शिव और हरि की जोड़ी है। इन दोनों ने मिलकर इस प्रदेश को सबसे पहली चीज जो दी है वो है स्थिरता। राजनीति और पत्रकारिता की बात छोड़ भी दें तो ये बात आम लोगों को भी पता है कि उत्तराखंड के आरंभ से ही यहां की सबसे बड़ी कमी रही अस्थिर सरकार। बार-बार सरकार का गिरना इस प्रदेश के लिए घातक साबित होता रहा। एक समय ऐसा आया कि यहां के आला अफसर तक ये कहने लगे कि यहां तो पूर्व मुख्यमंत्री इतने हो गए हैं कि उतना इस प्रदेश को अस्तित्व में आए हुए नहीं हुआ। सोचिए, ये बात क्या हलके में ली जा सकती है। नहीं। अपने आप में यह बात भीतर तक हिला देने वाला है। एक प्रदेश अपने विकास और प्रगति के बारे में क्या सोच पाएगा अगर वहां की सरकार ही टिकाऊ नहीं है।
ऐसे आलोचकों की कमी नहीं है, जो धामी की भरपूर निंदा करते हैं। कुछ नहीं तो केदारनाथ धाम के नाम पर ही लपेट लिया जाता है। लेकिन, आपको बता दें कि पिछले 24 सालों में जितने मुख्यमंत्री इस प्रदेश के नाम दर्ज हुए और उन सब ने जनता से जुड़ने के लिए, उन्हें मदद पहुंचाने के लिए जितनी उड़ानें भरी और यात्राएं की धामी अकेले पिछले 3 सालों में उतनी यात्राएं कर चुके हैं और उतने लोगों से मिलकर उनकी समस्या सुलझा चुके हैं।
दरअसल, आलोचना और समालोचना में फर्क होता है। एक व्यक्ति की खिंचाई तभी तक हो सकती है जबतक वह व्यक्ति अयोग्य है और दिए गए कार्य में उसकी कोई रुचि नहीं है। अफसरशाही का मारा है। लेकिन, कई बार क्लास के उस बच्चे की तारीफ भी कर दी जानी चाहिए जो बड़े लगन से बेहतर करने का लगातार प्रयास कर रहा है।
कुछ नहीं तो कम से कम पुष्कर सिंह धामी ने इस जुमले को तो बदला कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री उतनी ही तेजी से बदलते हैं जितनी तेजी से यहां के मौसम बदलते हैं। पिछले कई सालों से पहाड़ ने सिर्फ अपना मौसम बदला है अपना मुख्यमंत्री नहीं। धामी का झंडा बुलंद है। धामी ने नई सरकार में तीन साल पूरे कर लिए हैं। डबल इंजन सरकार का तमगा अपने साथ लेकर चलने वाले धामी की दिक्कत क्या है ये तो आलोचक ही बता सकते हैं लेकिन जब एक राज्य कई स्तर पर पिछड़ रहा हो तो उसे किसी का सहारा ले लेना चाहिए और इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। धामी ने केंद्र की मोदी सरकार से हर मामले में मदद ली। चाहे वो ऑल वेदर रोड का मामला हो, चाहे इनवेस्टर समिट करके राज्य के टूरिज्म को बढ़ावा देने का मामला हो या फिर बेरोजगारी का, यहां तक कि छोटे-मोटे हादसे और आपदा में भी धामी बिना किसी देरी के केंद्र से मदद मांग लेते हैं। शायद इसलिए कि उनकी प्राथमिकता कुछ और है। कुछ और मतलब पहले राज्य की जनता और राज्य में आए हुए टूरिस्ट और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा। आलोचकों से धामी सिर्फ इतना कहते हैं, मैं अपना काम कर रहा हूं और उन्हें ये कबूलने में भी झिझक नहीं होती कि उनके हां डबल इंजन की सरकार है।
(लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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