नवरात्रि की 07 अक्टूबर से शुरुआत होने जा रही है। मां दुर्गा (Maa Durga) के विभिन्न रुपों की आराधना (worship) का ये बेहद विशेष समय है। कड़े नियमों का पालन कर इन दिनों में श्रद्धालू मां की कृपा के पात्र बन जाते हैं। मां हमेशा हमें शेर की सवारी करती नजर आती हैं। कई बार मन में ये सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्या वजह है कि मां की सवारी सिंह है। सवाल उठना लाजमी भी है क्योंकि हमारे धार्मिक ग्रंथों, चित्रों में विशेष रुप से हर दैवीय शक्ति के लिए कोई न कोई वाहन नियत किया गया है। जिस तरह शिवजी (Shiva) का वाहन नंदी, गणेश जी का वाहन मूषक है, उसी तरह मां दुर्गा ने भी अपना वाहन सिंह को बनाया है।
इस वजह से मां का वाहन हुआ सिंह
हम सब जानते हैं कि मां का एक नाम सिंहवाहिनी (lioness) भी है। दुर्गा मां को शेरावाली भी कहा जाता है। अब सवाल उठता है कि आखिर मां का वाहन सिंह कैसे बना? इसके पीछे के प्रसंग के बारे में हम आपको बताते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार महादेव ध्यान करने बैठे और अनंत काल के लिए समाधिस्थ हो गए। इस दौरान मां पार्वती उनकी काफी वक्त तक प्रतीक्षा करती रहीं, लेकिन भोलेनाथ (Bholenath) तपस्यारत ही रहे। तब मां पार्वती खुद भी कैलाश पर्वत को छोड़कर घने जंगल में तपस्या के लिए चली गईं। जिस वक्त माता पार्वती तपस्या में लीन थीं, उसी वक्त वहां एक सिंह आ गया।
सिंह कई दिनों से भूखा था। माता को देखकर उसने मां पर हमला करना चाहा, लेकिन तप के सुरक्षाचक्र का घेरा वह तोड़ नहीं सका। यह देखकर वह मां के पास में ही तपस्या पूरी होने का इंतजार करते हुए बैठ गया। उसने सोचा तपस्या से उठने के बाद वह शिकार कर भूख मिटाएगा। देवी मां की तपस्या की वजह से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें वापस कैलाश पर्वत पर ले जाने आ गए।
जब माता पार्वती (Mother Parvati) चलने के लिए उठीं तो उनकी निगाह उस सिंह पर पड़ी जो उनका शिकार करने का इंतजार कर रहा था। योग दृष्टि से उन्होंने जान लिया कि आखिर यह शेर क्या चाहता है। ममतामयी मां को उस सिंह पर दया आ गई और उन्होंने उसकी प्रतीक्षा को ही तपस्या मान लिया और उसे अपने साथ ले गईं। उसी दिन से सिंह दुर्गा मां का वाहन बन गया।
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