नई दिल्ली (New Delhi ) । इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह (republic day celebration) के मुख्य अतिथि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी हैं। यह पहली बार है कि मुस्लिम देश मिस्र के राष्ट्रपति को इस आयोजन के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। वैसे भारत और मिस्र के बीच संबंध ऐतिहासिक (Historical) हैं। यह संबंध देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru) के समय से हैं। जब दुनिया शीतयुद्ध यानी कोल्ड वॉर से जूझ रही थी तब 1950 के दशक के अंत में भारत और मिस्र (India and Egypt) सहित 5 देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शुरू किया था। इस लिहाज से भी भारत और मिस्र के संबंध ऐतिहासिक हैं।
क्यों ऐतिहासिक हैं भारत और मिस्र के संबंध?
द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग के लंबे इतिहास (history) के आधार पर भारत और मिस्र के बीच घनिष्ठ राजनीतिक संबंध हैं। राजदूत स्तर पर राजनयिक संबंधों (diplomatic relations) की स्थापना की संयुक्त घोषणा 18 अगस्त, 1947 को की गई थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर ने दोनों देशों के बीच मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने यूगोस्लाव के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1980 के दशक के बाद से, भारत की ओर से मिस्र में प्रधानमंत्री के चार दौरे हुए हैं: राजीव गांधी (1985); पी वी नरसिम्हा राव (1995); आईके गुजराल (1997); और डॉ. मनमोहन सिंह (2009, गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन)।
बेहद खास होता है भारत का मुख्य अतिथि बनना
गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि बनना किसी भी देश के लिए खास होता है। यह निमंत्रण भारत सरकार के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। समारोह में मुख्य अतिथि की अहम भूमिका होती है। वह असंख्य औपचारिक गतिविधियों में सबसे आगे और केंद्र में होता है। राष्ट्रपति भवन में, मुख्य अतिथि को औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। इसके अलावा, भारत के राष्ट्रपति शाम को मुख्य अतिथि के लिए एक स्वागत समारोह भी आयोजित करते हैं। नई दिल्ली गणतंत्र दिवस के लिए अपना मुख्य अतिथि तय करने के पीछे कई पहलुओं पर ध्यान देती है। हर साल मुख्य अतिथि का चुनाव – रणनीतिक और कूटनीतिक, व्यावसायिक हित और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति कारणों को देखते हुए होता है।
कैसे चुना जाता है गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि?
गणतंत्र दिवस परेड के लिए मुख्य अतिथि का चयन कई फैक्टर्स (कारकों) को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। यह प्रक्रिया मुख्य कार्यक्रम के लगभग छह महीने पहले ही शुरू हो जाती है। निमंत्रण देने से पहले विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा सभी कारकों पर ध्यान में रखा जाता है। सबसे मुख्य पहलू भारत और संबंधित देश के बीच संबंधों से जुड़ा होता है। विदेश मंत्रालय देखता है कि दोनों देशों के बीच संबंध किस प्रकार हैं। गणतंत्र दिवस परेड का मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण भारत और आमंत्रित देश के बीच मित्रता का सबसे बड़ा संकेत माना जाता है। मुख्य अतिथि को लेकर फैसला लेने के पीछे भारत के राजनीतिक, वाणिज्यिक, सैन्य और आर्थिक हित जुड़े होते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय विदेश मंत्रालय इस अवसर का इस्तेमाल आमंत्रित देश के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने के लिए करता है।
पुराने संबंधों को दी जाती है तरजीह!
मुख्य अतिथि की पसंद में ऐतिहासिक रूप से भूमिका निभाने वाले फैक्टर्स भी शामिल होते हैं। जैसे, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के साथ जुड़ाव। यह आंदोलन 1950 के दशक के अंत में, 1960 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था। NAM उन देशों का एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन था जो लगभग उसी समय उपनिवेशवाद की जंजीरों से आजाद हुए थे। ये देश शीत युद्ध के झगड़ों से खुद को अलग रखते हुए राष्ट्र-निर्माण यात्राओं में एक-दूसरे का समर्थन करते थे। 1950 में परेड के पहले मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे, जो NAM के पांच संस्थापक सदस्यों में से एक थे। इन सदस्यों में अन्य लोग नासिर (मिस्र), नक्रमा (घाना), टीटो (यूगोस्लाविया) और नेहरू (भारत) शामिल थे। गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में अल-सिसी का भारत आगमन NAM के इतिहास और भारत और मिस्र के 75 वर्षों के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है।
निमंत्रण भेजने के लिए पूरी प्रक्रिया से गुजरना होता है
सभी पहलुओं को ध्यान में रखने के बाद, जब भारत का विदेश मंत्रालय निमंत्रण के लिए नाम तय कर लेता है तो वह इसे मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजता है। अगर विदेश मंत्रालय को आगे बढ़ने की मंजूरी मिल जाती है, तो वह काम करना शुरू कर देता है। संबंधित देश में भारतीय राजदूत संभावित मुख्य अतिथि की उपलब्धता का सावधानीपूर्वक पता लगाने की कोशिश करते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है क्योंकि किसी भी देश के प्रमुख का बिजी शेड्यूल से समय निकालना काफी कठिन होता है। यह भी एक कारण है कि विदेश मंत्रालय सिर्फ एक विकल्प नहीं बल्कि संभावित उम्मीदवारों की एक सूची बनाता है। हालांकि जब आमंत्रित देश अपनी मंजूरी दे देता है तो विदेश मंत्रालय फिर पूरा प्रोटोकॉल तय करता है।
ये रहे अब तक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि
1950- राष्ट्रपति सुकर्णो, इंडोनेशिया
1951- राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह, नेपाल
1952 और 1953- कोई मुख्य अतिथि नहीं
1954 – राजा जिग्मे दोरजी वांगचुक, भूटान
1955 – गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद, पाकिस्तान
1956 – राजकोष के चांसलर रब बटलर, यूनाइटेड किंगडम; मुख्य न्यायाधीश कोतारो तनाका, जापान
1957 – रक्षा मंत्री जार्ज झूकोव, सोवियत संघ
1958 – मार्शल ये जियानयिंग, चीन
1959 – ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग प्रिंस फिलिप, यूनाइटेड किंगडम
1960 – अध्यक्ष क्लेमेंट वोरोशिलोव, सोवियत संघ
1961 – महारानी एलिजाबेथ द्वितीय, यूनाइटेड किंगडम
1962 – प्रधान मंत्री विगो कैंपमैन, डेनमार्क
1963 – राजा नोरोडोम सिहानोक, कंबोडिया
1964 – चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, यूनाइटेड किंगडम
1965 – पाकिस्तान के खाद्य एवं कृषि मंत्री राणा अब्दुल हमीद
1966 – कोई मुख्य अतिथि नहीं
1967 – किंग मोहम्मद जहीर शाह, अफगानिस्तान
1968 – अध्यक्ष एलेक्सी कोश्यिन, सोवियत संघ; राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टीटो, यूगोस्लाविया
1969 – प्रधान मंत्री टोडर झिवकोव, बुल्गारिया
1970 – राजा बौदौइन, बेल्जियम
1971 – राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे, तंजानिया
1972 – प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम, मॉरीशस
1973 – राष्ट्रपति मोबुतु सेसे सेको, ज़ैरे
1974 – राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टीटो, यूगोस्लाविया; प्रधान मंत्री सिरीमावो भंडारनायके, श्रीलंका
1975 – राष्ट्रपति केनेथ कौंडा, जाम्बिया
1976 – प्रधानमंत्री जैक्स शिराक, फ्रांस
1977 – प्रथम सचिव एडवर्ड गियरेक, पोलैंड
1978 – राष्ट्रपति पैट्रिक हिलेरी, आयरलैंड
1979 – प्रधानमंत्री मैल्कम फ्रेजर, ऑस्ट्रेलिया
1980 – राष्ट्रपति वालेरी गिस्कार्ड डी एस्टाइंग, फ्रांस
1981 – राष्ट्रपति जोस लोपेज़ पोर्टिलो, मेक्सिको
1982 – राजा जुआन कार्लोस प्रथम, स्पेन
1983 – राष्ट्रपति शेहू शगारी, नाइजीरिया
1984 – राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक, भूटान
1985 – राष्ट्रपति राउल अल्फोंसिन, अर्जेंटीना
1986 – प्रधान मंत्री एंड्रियास पापांड्रेउ, ग्रीस
1987 – राष्ट्रपति एलन गार्सिया, पेरू
1988 – राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने, श्रीलंका
1989 – महासचिव गुयेन वान लिन्ह, वियतनाम
1990 – प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ, मॉरीशस
1991 – राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम, मालदीव
1992 – राष्ट्रपति मारियो सोरेस, पुर्तगाल
1993 – प्रधानमंत्री जॉन मेजर, यूनाइटेड किंगडम
1994 – प्रधानमंत्री गोह चोक टोंग, सिंगापुर
1995 – राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, दक्षिण अफ्रीका
1996 – राष्ट्रपति फर्नांडो हेनरिक कार्डसो, ब्राजील
1997 – प्रधानमंत्री बासदेव पांडे, त्रिनिदाद और टोबैगो
1998 – राष्ट्रपति जैक्स शिराक, फ्रांस
1999 – राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह, नेपाल
2000 – राष्ट्रपति ओलुसेगुन ओबसांजो, नाइजीरिया
2001 – राष्ट्रपति अब्देलअजीज बुउटफ्लिका, अल्जीरिया
2002 – राष्ट्रपति कसम उटीम, मॉरीशस
2003 – राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी, ईरान
2004 – राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा, ब्राजील
2005 – राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक, भूटान
2006 – किंग अब्दुल्ला बिन अब्दुलअज़ीज़ अल-सऊद, सऊदी अरब
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2007 – राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, रूस
2008 – राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, फ्रांस
2009 – राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव, कजाकिस्तान
2010 – राष्ट्रपति ली म्युंग बाक, दक्षिण कोरिया
2011 – राष्ट्रपति सुसिलो बंबांग युधोयोनो, इंडोनेशिया
2012 – प्रधानमंत्री यिंगलक शिनावात्रा, थाईलैंड
2013 – राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, भूटान
2014 – प्रधानमंत्री शिंजो आबे, जापान
2015 – राष्ट्रपति बराक ओबामा, संयुक्त राज्य अमेरिका
2016 – राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, फ्रांस
2017 – क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान, संयुक्त अरब अमीरात
2018 – सुल्तान हसनल बोल्कैया (ब्रुनेई), प्रधानमंत्री हुन सेन (कंबोडिया), राष्ट्रपति जोको विडोडो (इंडोनेशिया), प्रधानमंत्री थोंगलून सिसोलिथ (लाओस), प्रधानमंत्री नजीब रजाक (मलेशिया), स्टेट काउंसलर आंग सान सू की (म्यांमार), राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते (फिलीपींस), प्रधानमंत्री ली सियन लूंग (सिंगापुर), प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा (थाईलैंड), प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक (वियतनाम)
2019 – राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, दक्षिण अफ्रीका
2020 – राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो, ब्राजील
2023 – राष्ट्रपति अब्देह फतह अल-सिसी
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