नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सेवाओं में कमी के लिए (For deficiency in Services) अधिवक्ताओं (Advocates) को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत (Under the Consumer Protection Act) जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता (Cannot be held Accountable) ।
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का उद्देश्य और विषय केवल उपभोक्ताओं को अनुचित प्रथाओं एवं अनैतिक व्यावसायिक प्रथाओं से सुरक्षा प्रदान करना है। विधायिका का इरादा कभी भी व्यवसाय या इसके पेशेवरों को क़ानून के तहत शामिल करने का नहीं था।
पीठ ने कहा कि हमने ‘पेशे’ को ‘व्यवसाय’ और ‘व्यापार’ से अलग किया है। हमने कहा है कि किसी पेशे के लिए एजुकेशन या साइंस की किसी ब्रांच में एडवांस एजुकेशन और ट्रेनिंग की जरूरत होगी। काम की प्रकृति अलग है, जिसमें शरीर के बजाय दिमाग पर ज्यादा जोर पड़ता है। किसी पेशेवर के साथ किसी व्यवसायी या व्यापारी की तरह समान व्यवहार नहीं किया जा सकता।” हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक वकील पर साधारणतया लापरवाही के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।
इससे पहले 2007 में, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने फैसला सुनाया था कि अधिवक्ताओं द्वारा प्रदान की गई सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आती हैं। अपील पर, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2009 में पारित एक अंतरिम आदेश में, अपील के लंबित रहने के दौरान एनसीडीआरसी के फैसले के लागू होने पर रोक लगा दी थी।
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