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    तीन विश्वविद्यालयों के कुलसचिव का विज्ञापन विवादों में

  • March 29, 2022

    • आरोप-अपनों को प्रशासनिक पद पर सेट करने के लिए नियम विरुद्ध निर्णय

    भोपाल। शासन के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के तीन विश्वविद्यालयों के लिए निकाले गए कुल सचिव पद पर प्रतिनियुक्ति के विज्ञापन के बाद अब एक बात साफ हो गई है कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में शासन प्राध्यापकों के भरोसे ही प्रशासनिक व्यवस्थाएं संचालित करवाएगा। मप्र राज्य विश्वविद्यालय सेवा के माध्यम से आए अधिकारियों को शायद अब कुलसचिव बनने का अवसर नहीं मिले। शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने हाल ही में प्रदेश के 3 शासकीय विश्वविद्यालयों में कुलसचिव के रिक्त पद पर प्रतिनियुक्ति के लिए महाविद्यालय के प्राध्यापक, सह प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक से आवेदन आमंत्रित किए हैं। इससे साफ है की सरकार की मंशा महाविद्यालय के प्राध्यापक, सह प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक को कुल सचिव के पद पर बैठाने की है। आवेदन के आमंत्रित करते ही कई अधिकारी इसे नियम विरूद्ध बता रहे है। इस विषय पर सेवा निवृत वरिष्ठ उप कलसचिव व प्रान्तीय महासचिव राज्य विश्व विद्यालय संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. बी भारती ने कहा की ये निर्णय सिर्फ अपनों को रेवड़ी बाटने के लिए लिया गया है, जबकि 1983 में आये नए नियम के अनुसार एसिस्टेंट प्रोफेसर तो कुलसचिव बन ही नहीं सकते है। नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है।


    नियम सिर्फ 25 प्रतिशत का
    शासन द्वारा जारी विज्ञापन में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट सतना के लिए आवेदन 25 अप्रैल तक मांगे गए हैं। ऐसे में जानकारों का कहना हैं कि मध्य प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय सेवा 1983 के नियम अनुसार मध्य प्रदेश के शासकीय विश्वविद्यालयों में 14 पद कुलसचिव के हैं जिनमें से केवल 25 प्रतिशत पद पर ही महाविद्यालय सेवा के प्राध्यापकों को प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया जा सकता है। 25 प्रतिशत पदों को देखा जाए तो कुल 3 पद होते हैं। जबकि शासन द्वारा वर्तमान में विक्रम उज्जैन, रीवा, जबलपुर, शहडोल, महर्षि पाणिनि उज्जैन, सतना, चित्रकूट, छिंदवाड़ा, छतरपुर विश्वविद्यालय में शासकीय महाविद्यालय के शिक्षक कुलसचिव के पद पर पदस्थ हैं। जबकि नियमानुसार शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापकों को ही 25 प्रतिशत की सीमा तक कुलसचिव पद के लिए प्रतिनियुक्ति पर लिया जा सकता है।

    कई विश्व विद्यालयों में प्राध्यापक है कुलसचिव
    जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में विश्वविद्यालय सेवा के ही सहायक प्राध्यापक सुशील मंडेरिया को (जिनकी सेवा अवधि केवल 9 वर्ष की हुई है) कुलसचिव पद पर प्रतिनियुक्ति पर लिया गया है। ऐसे में शासन द्वारा स्वयं के बनाएं नियमों का ही उल्लंघन किया गया है। हाल ही में शासन ने जो तीन विश्वविद्यालयों में कुलसचिव के पद पर प्रतिनियुक्ति के लिए महाविद्यालय प्राध्यापकों से आवेदन मांगे हैं, उससे अब उन अधिकारियों के सामने संकट खड़ा हो गया है। जो कई वर्षों की सेवा के बाद भी कुलसचिव पद पर पदोन्नति की राह देख रहे है। ऐसे में स्पष्ट है कि राज्य विश्वविद्यालय सेवा के कैडर के अधिकारी उप कुलसचिव के अधिकारों पर कुठाराघात किया है।

    नई शिक्षा नीति का कैसे होगा क्रियान्वयन
    मध्य प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग नई शिक्षा नीति लागू करने में पहला राज्य बना है, लेकिन विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों को प्रतिनियुक्ति के माध्यम से शैक्षणिक कार्य के अलावा प्रशासनिक कार्यों में लगाया जा रहा है। इससे सवाल यह उठ रहे हैं कि ऐसी स्थिति में नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन किस तरह होगा। कारण है कि नई शिक्षा नीति को क्रियान्वित करने के लिए पूरा दायित्व शिक्षकों पर निर्भर है। पहले से ही प्राध्यापको की कमी है इसके बावजूद नियम विरूद्ध इस तरह के निर्णय क्यों लिए जा रहे है।

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