कलकत्ता हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन और इंटरकास्ट मैरिज को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। कलकत्ता हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ के अनुसार एक वयस्क इंसान अपनी पसंद के अनुसार शादी कर सकता है, इसमें किसी भी प्रकार से कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। आगे बोलते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि एक वयस्क अपने धर्म को परिवर्तित करने और अपने माता-पिता के घर वापस लौटने से इनकार करने के लिए भी स्वतंत्र है। हाई कोर्ट ने एक पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा है।
पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के दुर्गापुर गांव के एक 44 वर्षीय किसान पिता ने बताया कि उनकी बेटी 15 सितंबर को घर से चली गई थी और अगले दिन उसे पता चला कि उसने धर्म परिवर्तन कर उसने एक मुस्लिम नाम लिया और शादी कर ली। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बेटी को या तो ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया या लालच दिया गया। पिता ने न्याय के लिए हाई कोर्ट में अपील की, जिस पर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है।
हाई कोर्ट में पिता की वकील सुस्मिता साहा दत्ता ने कहा, “जब उनकी बेटी घर से यह कहकर निकली कि वह बैंक जा रही है और वापस नहीं लौटी, तो उसने मुरूतिया पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसका अपहरण कर लिया गया था।” अपनी याचिका में, पिता ने दावा किया कि उसे संदेह नहीं था कि उसकी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत औपचारिक रूप से हुई थी, जो इंटरकास्ट मेरिज का प्रावधान देती है।
पुलिस को लड़की का पता लगाने के बाद, उसने न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है और अपना धर्म परिवर्तन किया है। हालांकि, पिता ने यह कहते हुए हाईकोर्ट से आग्रह किया कि उनका बयान ”उस माहौल में दर्ज नहीं किया जा सकता, जहां वह सहज महसूस करती थीं।” अपनी आशंकाओं को दूर करने के लिए हाईकोर्ट ने लड़की को तेहत में वरिष्ठतम जिला जज से मिलने का निर्देश दिया। जहां अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पर्याप्त सावधानी बरत कर और बिना किसी जबरदस्ती या दबाव के लड़की का बयान दर्ज किया जाए, फिलहाल लड़की ने अपना बयान नहीं बजला है, जिससे पिता अभी भी संतुष्ट नहीं हैं।
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