– राकेश दुबे
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान के माध्यम से सभी भारतीयों के लिए सुरक्षित, स्वस्थ और पोषक भोजन सुनिश्चित करने के लिए देश की खाद्य प्रणाली को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास शुरू किया है। खाने-पीने के शौकीन अथवा महानगरों में नौकरी आदि के चलते कम मूल्य लागत वाला भोजन तलाशने वाले भारतीयों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि स्वाद एवं सस्ते के चक्कर में न पड़कर स्वच्छता मानकों एवं साफ-सफाई को अपनी सेहत के दृष्टिगत स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन को अपनी प्राथमिकता में रखें।
भारत में बढ़ती आबादी के कारण और मांग एवं आपूर्ति में अंतर के चलते प्राय: खाद्य वस्तुओं की किल्लत और दामों में बढ़ोत्तरी होती ही रहती है और इसी किल्लत का फायदा जमाखोरों की टोलियां उठाने से नहीं चूकती हैं, तो वहीं घटिया एवं मिलावटी चीजें बेचने वालों की पौ-बारह हो जाती है। भारत में इन दोनों तिरुमला तिरुपति देवस्थानम द्वारा श्रद्धालुओं को दिए जाने वाले लड्डुओं को मिलावटी देसी घी से बनाने से भक्तों की धार्मिक आस्था आहत होने का मुद्दा चर्चा में है। देवस्थानम को देसी घी की आपूर्तिकर्ता कंपनी एआर डेयरी फूड प्राइवेट लिमिटेड से खाद्य नियामक ने पूछा है कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियमन 2011 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उसका केंद्रीय लाइसेंस निलंबित क्यों न कर दिया जाए?
आज भारत में मिलावट का कारोबार उस स्तर को पार कर चुका है जहां खाद्य उत्पादों में सस्ते और घटिया पदार्थ मिलाकर बेईमान व्यापारी व विक्रेता सामान की मात्रा को बढ़ा देते हैं और भारतीयों की जान की कीमत पर भारी मुनाफा कमाते हैं। ऐसा अनुमान है कि 60 करोड़ लोग अर्थात विश्व में लगभग 10 में से 1 व्यक्ति हर वर्ष दूषित भोजन खाने के कारण बीमार पड़ते हैं तथा 420000 लोग मरते हैं।
भारत में दूध और डेयरी उत्पाद, वसा और तेल, फल और सब्जियां, अनाज, कॉफी, चाय, शहद और मसाले सहित लगभग हर खाद्य सामग्री में मिलावट का प्रतिशत अत्यधिक बढ़ गया है और स्वच्छता मानकों की बुरी तरह से अनदेखी हो रही है। इतना ही नहीं, भारत के कई क्षेत्रों से ऐसे भी वीडियो की सोशल मीडिया में भरमार है जिसमें समोसे, चाट, ब्रेड, कुल्फी, प्लास्टिक के चावल और गुलाब जामुन से भरी कड़ाही में पेशाब करते युवक और गोलगप्पे वाले जलजीरा पानी से ही हाथ मुंह धोने, गंदे हाथ व पैरों से आलू और आटा गूंथने जैसे कृत्यों द्वारा गंदगी से परिपूर्ण खाद्य सामग्री आम लोगों को परोसी जा रही है। ऐसे कृत्य न केवल निंदनीय हैं अपितु दोषी लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग भी करते हैं।
सवाल उठता है कि आखिर ऐसी गतिविधियों में संलिप्त लोगों को तत्काल जेल की सलाखों के पीछे क्यों नहीं डाला जाता है? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों से युक्त असुरक्षित भोजन 200 से अधिक बीमारियों का कारण बनता है जिसमें डायरिया से लेकर कैंसर तक शामिल हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित भोजन के कारण चिकित्सा व्यय में हर साल 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक डा. कू डोंग्यू के अनुसार, ‘हमें अपने भोजन की पहचान, गुणवत्ता और सुरक्षा पर एक आम समझ की जरूरत है। लेकिन भारत में दूध में पानी मिलाने, नकली दूध, घी में केमिकल, दाल में सिंथेटिक रंग और वैक्स कोटिंग, सब्जियों में हॉर्मोन के इंजेक्शन तथा सिंथेटिक रंग, हर्बल उत्पादों में एलोपैथिक दवाइयां तथा केमिकल्स, सौंदर्य प्रसाधनों में और देसी घी बनाने में पशुओं की चर्बी होने की जानकारी किसी से छुपी हुई नहीं है। खाद्य अपमिश्रण से आखों की रोशनी जाना, हृदय संबंधित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसे असाध्य रोग हो सकते हैं।
मिलावटी और बासी खाद्य पदार्थों से निपटने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से 37 लाख रुपे की मोबाइल फूड सेफ्टी वैन भी मिली है। खाद्य अपमिश्रण के परीक्षण के लिए मैसूर, पुणे, गाजियाबाद एवं कोलकाता में भारत सरकार द्वारा चार केन्द्रीय प्रयोगशालाएं व्यवस्थित रूप से स्थापित की गई हैं। खाद्य अपमिश्रण एवं रेहड़ी फड़ी वालों द्वारा लोगों को गंदा और घटिया खाने-पीने की वस्तुएं बेचने से आगाह करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा ‘ईट राइट इंडिया मूवमेंट’ की पहल की गई है।
ईट राइट मूवमेंट अभियान तीन प्रमुख विषयों पर आधारित है- सुरक्षित खाएं, व्यक्तिगत और आसपास की स्वच्छता सुनिश्चित करें, स्वस्थ खाएं, आहार विविधता और संतुलित आहार को बढ़ावा दें एवं स्थानीय और मौसमी सब्जियों/भोजन को बढ़ावा दें, भोजन के नुकसान को रोकें। खाने-पीने के शौकीन अथवा महानगरों में नौकरी आदि के चलते कम मूल्य लागत वाला भोजन तलाशने वाले भारतीयों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि स्वाद एवं सस्ते के चक्कर में न पड़कर स्वच्छता मानकों एवं साफ-सफाई को अपनी सेहत के दृष्टिगत स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन को अपनी प्राथमिकता में रखें। केवल अतिरिक्त सतर्कता और जागरूकता का पालन करने से ही हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित बना सकते हैं और अपमिश्रित एवं गंदी खाद्य सामग्री बेचने वालों के कुत्सित इरादों को परास्त कर सकते हैं।
(लेखक स्तम्भकार हैं।)
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