नई दिल्ली (New Delhi)। हीरालाल सामरिया (Hiralal Samaria) देश के मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त हुए हैं और वह दलित समुदाय से आने वाले पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें यह अहम पद मिला है। लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है।
सूचना आयुक्त की नियुक्ति करने वाली समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को खत लिखकर कहा है कि उन्हें इस नियुक्ति को लेकर पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। अधीर रंजन चौधरी पीएम की अध्यक्षता वाली उस समिति का हिस्सा हैं, जो मुख्य सूचना आयुक्त का चयन करती है। उन्होंने कहा कि इस नियुक्ति के बारे में सरकार ने उन्हें न तो कुछ बताया और न ही सलाह ली गई।
इसके बाद अधीर रंजन चौधरी कोलकाता चले गए और जब वह वापस लौटे तो पचा चला कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति हो चुकी है। इस बारे में उन्हें बताया भी नहीं गया। सूचना का अधिकार कानून के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा समिति की सिफारिश पर की जाती है। इस समिति के मुखिया पीएम होते हैं और उसमें सदस्य के तौर पर एक केंद्रीय मंत्री एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता को शामिल किया जाता है। अधीर रंजन ने अपने पत्र में दावा किया है कि कार्मिक विभाग ने उनसे अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में संपर्क किया था।
इस दौरान उनसे पूछा गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त को लेकर कमेटी की मीटिंग होनी है, आप कब उपलब्ध होंगे। चौधरी ने कहा कि मैंने बताया कि 2 नवंबर तक दिल्ली में रहूंगा और उसके बाद 3 तारीख को कोलकाता में एक कार्यक्रम में शामिल होना है। इस पर उन्हें जानकारी मिली कि अब 3 नवंबर को शाम 6 बजे मीटिंग होगी। अधीर रंजन ने कहा कि मैंने कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह से अपील की थी कि मीटिंग को रिशेड्यूल कर दिया जाए। हालांकि उन्हें बाद में यही पता चला कि हीरालाल समारिया को मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया गया है।
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