भोपाल। क्राइम ब्रांच परिसर में चाकू के हमले में घायल हुए ट्रैफिक पुलिस के सब इंस्पेक्टर श्रीराम दुबे की 12 दिन बाद इलाज के दौरान जान चली गई। वहीं डीआईजी इरशाद वली ने बताया कि इस मामले में हत्या की धारा बढ़ा दी गई है। श्रीराम दुबे के पहले दिन से अब तक के इलाज का भी पूरा ब्यौरा देखा जा रहा है। उपचार में लापरवाही साबित होने पर कानूनी प्रकिया के तहत डाक्टर्स के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि नापतौल इंस्पेक्टर के इंजीनियर बेटे हर्ष मीणा ने ये हमला 600 रुपए का चालान बनने की नाराजगी में किया था। मौत पर परिवार ने इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया है।
वहीं मृतक के बेटे ने कहा कि हमले के बाद पापा को जेपी अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर ने पेट पर टांके लगाकर पट्टी की और कुछ देर बाद ही उन्हें घर भेज दिया। दो दिन बाद पता चला कि चाकू के वार से पापा की इंटेस्टाइन डैमेज हो गई थी। दो दिन में ये इन्फेक्शन इतना बढ़ गया कि उनका ऑपरेशन करना पड़ा। यदि पहले दिन ही उनका गंभीरता से इलाज किया गया होता तो शायद मेरे पापा आज जिंदा होते। कोलार निवासी हर्ष ने ये हमला बीती 7 अगस्त की दोपहर क्राइम ब्रांच परिसर में किया था। क्रेन स्टाफ के साथ एसआई दुबे हर्ष की बाइक ज्योति टॉकीज से यहां लाए थे। बाइक तलाशते हुए वह क्राइम ब्रांच परिसर पहुंचा तो एसआई ने उसे 600 रुपए चालान भरने के लिए कहा। घर जाकर वह पैसे के साथ चाकू भी ले आया और चालान भरने के बाद एसआई के पेट में हमला कर दिया। एमपी नगर पुलिस ने तब उसके खिलाफ शासकीय कर्मचारी पर जानलेवा हमले का केस दर्ज किया था। टीआई सुधीर अरजरिया ने बताया कि एसआई दुबे की मौत के बाद पुलिस ने हत्या की धारा बढ़ा दी है। हर्ष फि लहाल वारदात के बाद हुई गिरफ्तारी के बाद से ही जेल में है।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले श्रीराम दुबे का आज सुबह नरसिंहपुर के बगदरी गांव में अंतिम संस्कार किया गया। दुबे के अंतिम संस्कार से पूर्व उन्हें राजकीय सम्मान दिया गया। उनके परिजन कल शाम को दुबे की बॉडी लेकर अपने पुष्तैनी गांव के लिए रवाना हुए थे।
सब इंस्पेक्टर श्रीराम की मौत पूरे समाज और सिस्टम की मौत है : डीएसपी समर
दुबे की मौत के बाद डीएसपी चौधरी मदन मोहन समर ने लिखा कि ड्यूटी कर रहा यह पुलिस अधिकारी शिकार हुए है। एक दुर्दांत मानसिकता का जो इंजीनियरिंग कर रहे छात्र को समाज से मिल रही है। मां बाप उनके शैशव में संस्कार और सभ्यता का नाम के सुंगंधित पौधे रोपित करने में अक्षम हुये हैं। क्योंकि वे स्वयं नुकेले शूलों से लदे हुए विषवृक्ष ही तो रहे हैं। यह मानसिकता कदम-कदम पर सिर उठा रही तालिबानी संस्कृति नहीं तो क्या है? अपनी ट्रैफि क ड्यूटी पर मुस्तैद श्रीराम दुबे ने अपराध ही तो रोका था। हर्ष मीणा नाम के इस इंजीनियर तालिबान का चालान काटा तो इसने सीधा छुरा घोंप दिया, और सब इंस्पेक्टर की हत्या कर दी। क्या यह तालिबानी आचरण से कम है क्या? आप स्थापित व्यवस्था का उल्लंघन करें फि र कानून आपको रोके तो आप कानून को रक्तरंजित कर नष्ट कर दें तो फिर राज्य नामक इकाई कैसे संचालित होगी? प्रश्न साधारण नहीं है। अब आप इस घटना का पोस्ट मार्टम करते रहिए, मृतक के शरीर के पोस्टमार्टम की तरह। बताते रहिए समाज की श्वास नलियां अवरुद्ध हैं, कहते रहिए इस सोसायटी का हृदय संकुचित हो गया है, अफसोस जताएं आज लोगों के मस्तिष्क में अनियंत्रण के क्लॉडस जम गए हैं वगैरह वगैरह। लेकिन चिकित्सक के रूप में स्थापित पारिवारिक इकाई क्या ड्यूटी कर रही है? वह उपचार के स्थान पर अपने ही रोगी को कौन सी औषधि दे रही है? पिता, मां, बहन, भाभी, भाई, बुआ, ताऊ, और दादा जैसे सुपर स्पेशलिस्ट किस चैंबर में प्रिस्क्रिप्शन दे रहे हैं? शायद हम अनुत्तरित हैं। हर्ष मीणा उन इंजीनियरिंग कॉलेजों में उगा तालिबान है जो शिक्षा के नाम पर सिर्फ डिग्रियां बेच रहे हैं। उन्हें यह भी नहीं पता उनकी इस फैक्ट्री का प्रोडक्ट इन्फेक्टेड हो रहा है। यह बाजार में जाकर आपके लेबल की भद्द पिटवायेगा। दुबे जी की यह मौत केवल भोपाल में घटित एक घटना मात्र नहीं है, पूरे समाज के मस्तिष्क के लिए प्रश्न है। क्योंकि कभी किसी भी उत्तरदायित्व के समय आप श्रीराम दुबे हो सकते हैं , व कभी भी कहीं भी हर्ष मीणा की जगह आपका ही बेटा भी हो सकता है।
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