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    शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने के मामले में कोर्ट से नहीं मिली आरोपी को राहत, लोहे की रॉड बनी वजह

  • September 30, 2024

    मुंबई । सिंधुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की प्रतिमा (statue) गिरने को लेकर कोर्ट (Court) ने कहा है कि मूर्ति में स्टेनलेस स्टील की जगह लोहे की रॉड (Iron Rod) का इस्तेमाल किया गया था। कोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तार किए गए संरचनात्मक सलाहकार की जमानत याचिका खारिज कर दी। रायगढ़ किले में लगी शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने के बाद चेतन पाटिल को गिरफ्तार किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि जब प्रतिमा में स्टेनलेस स्टील की जगह लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया गया था तभी इसके क्षतिग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ गई थीं। समंदर के किनारे लोहे पर जंग लगने के चांस और ज्यादा होते हैं। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोपी की गलती की वजह से यह घटना हुई। 19 सितंबर को सिंधुदुर्ग सेशन कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए चेतन पाटिल को जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    शिवाजी महाराज की इस प्रतिमा का अनावरण 4 दिसंबर 2023 को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों किया गया था। वहीं प्रतिमा 26 अगस्त को धराशायी हो गई। इस मामले में पाटिल के साथ शिल्पकार जयदीप आप्टे को भी गिरफ्तार किया गया था। पाटिल का कहना है कि वह असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम करते हैं और इस अपराध से उनका कोई लेना-देना नही है। उन्होंने कहा कि एक दोस्त के आग्रह करने पर उन्होंने वॉट्सऐप पर केवल स्टैबिलिटी रिपोर्ट दी थी। यह रिपोर्ट भी प्रतिमा के प्लैटफॉर्म को लेकर थी ना कि प्रतिमा को लेकर।


    पाटिल ने कहा कि कोी भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं है जिससे पता चले कि उन्हें कोई काम दिया गया था या फिर कोई भुगतान किया गया था। इसके अलावा इस बात के भी सबूत नहीं हैं कि प्रतिमा का प्लैटफॉर्म गलत बना था या फिर उसे कमजोर बनाया गया था।

    जमानत याचिका का विरोध करते हुए पुलिस ने कोर्ट में कहा कि यह निर्माण बहुत ही खराब क्वालिटी का हुआ था और इसी वजह से प्रतिमा गिर गई। पुलिस ने कहा कि आरोपियों ने इस बात को नजरअंदाज किया कि प्रतिमा ऐसी जगह है जहां जंग लगने का खतरा ज्यादा रहता है। पुलिस का कहना है कि लोहे में जंग लगने की वजह से ही प्रतिमा कमजोर पड़ गई और इस मामले की जांच अभी जारी है।

    कोर्ट ने कहा कि आरोपी का यह कहना कि उसे सलाहकार के तौर पर नियुक्त नहीं किया गया था, इस स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अगर उसकी नियुक्ति नहीं हुई थी तो उसे रिपोर्ट तैयार करने की जरूरत भी नहीं थी। बिना ठेकेदार के सहमति के कोई भी स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट रिपोर्ट तैयार नहीं करता है।

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