पन्ना। आज परंपरागत तरीके से पन्ना की एतिहासिक रथयात्रा (Historical Rath Yatra of Panna) धूमधाम के साथ निकाली गई। पिछले दो वर्ष से वैश्विक महामारी कोरोना काल के चलते लोग हिस्सा नहीं ले पा रहे थे, लेकिन इस बार भारी संख्या में लोगों ने भाग लिया, हालांकि चुनावी व्यस्तता (election engagement) के चलते जनप्रतिनिधि एवं प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित नहीं हो सके।
बता दें कि पन्ना की एतिहासिक परंपरा अनुसार रथयात्रा (According to the historical tradition of Panna, the Rath Yatra) में राजपरिवार की ओर से महाराजा राघवेंद्र सिंह उपस्थित रहे। उन्होंने पूजा अर्चना की एवं भगवान की रथयात्रा को रवाना किया। प्रशासन की ओर से अपर कलेक्टर, तहसीलदार पन्ना सहित पुलिस अधिकारी एवं गणमान्य नागरिक तथा भारी संख्या में श्रृद्धालु उपस्थित रहे।
ज्ञात हो कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना शहर में हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा की परम्परा अनूठी है देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है। ओडिशा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां आयोजित होने वाले इस भव्य धार्मिक समारोह में राजशी ठाठ बाट और वैभव की झलक देखने को मिलती है।
रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रृद्धालु यहां पहुंचते हैं। पन्ना जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह के दरम्यान यहां की अद्भुत और निराली छटा देखते ही बनती है।
आपको बता दें कि हीरा नगरी पन्ना की यह ऐतिहासिक रथयात्रा 168 वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह द्वारा शुरू कराई गई थी, जो परम्परानुसार अनवरत जारी है। इस वर्ष रथयात्रा 1 जुलाई को शाम 6:30 बजे पूरे विधि विधान के साथ जगन्नाथ स्वामी मंदिर से निकली।
उल्लेखनीय है कि दो वर्ष से कोरोना के चलते मात्र औपचारिकता के तौर पर बिना किसी विशेष भीड के निकली दो वर्ष बाद पन्ना जिले के प्राचीन व ऐतिहासिक महोत्सव की भव्यता व गरिमा प्रदान करने के लिये इस वर्ष विशेष तैयारियां की गई थी।
जानकारों का कहना है कि पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह ने जब यहां रथयात्रा महोत्सव की शुरूआत की थी, इस समय वे पुरी से भगवान जगन्नाथ स्वामी जी की मूर्ति लेकर आये थे और पन्ना में भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। पुरी में चूंकि समुद्र है इसलिए पन्ना के जगन्नाथ मंदिर के सामने सुंदर सरोवर का निर्माण कराया गया था। तभी से यहां पुरी की ही तर्ज पर रथयात्रा का आयोजन होता है। जिसमें लाखों लोग पूरे भक्ति भाव और श्रृद्धा के साथ शामिल होते हैं। ऐसी किवंदती है कि जिस वर्ष यहां मंदिर का निर्माण हुआ तो यहां पर अटका चढ़ाया गया।
महाराजा किशोर सिंह को स्वप्न आया कि पन्ना में अटका न चढ़ाया जाये अन्यथा पुरी का महत्व कम हो जायेगा। इसलिये यहां भगवान जगन्नाथ स्वामी को अंकुरित मूंग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। आज भी यहां पर अंकुरित मूंग व मिश्री का प्रसाद चढ़ता है शहर के पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा बडे ही शान शौकत व वैभव के साथ निकलती थी। इस रथयात्रा में सैंकड़ों हांथी, घुड़सवार, सेना के जवान, राजे महाराजे व जागीरदार सब शामिल होते थे। रुस्तम गज हांथी की कहानी भी यहां काफी प्रचलित है। बताते हैं कि तत्कालीन महाराज का यह प्रिय हाथी रथयात्रा में अपनी सूड से चांदी का चंवर हिलाते हुये चलता था।
हिंदू पंचाग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीय तिथि को यहां पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह हर साल रथयात्रा निकलती है। रथयात्रा के दौरान बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मंदिर से बाहर सैर के लिये निकलते हैं। यह अनूठी रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर तीसरे दिन जनकपुर पहुंचती है। तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा जनकपुर में भी भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। रथयात्रा के जनकपुर पर पहुंचने पर यहां के मंदिर को बडे ही आकर्षक ढंग से सजाया जाता है तथा यहां पर मेला भी लगता है।
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