काबुल। अफगानिस्तान में चल रही पाकिस्तान और चीन की नापाक साजिशों के बीच भारत ने भी रणनीतिक रूप से बेहद अहम इस देश में अपने हितों की रक्षा के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम के साथ वार्ता की। गैर पश्तून नेता और तालिबान से लोहा लेने वाले दोस्तम से भारत ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने की ऐतिहासिक पहल सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
अफगानिस्तान के प्रभावशाली उज्बेक नेता दोस्तम की भारत यात्रा ऐसे समय में हुई हैं जब यहां 19 साल से जारी युद्ध को समाप्त करने के लिये हाल ही में तालिबान और अफगान सरकार के बीच पहली बार सीधी वार्ता हुई है। वर्षो से जारी संषर्घ में अफगानिस्तान के विभिन्न इलाकों में कई हजार लोग मारे गए हैं। इस अहम बैठक के बाद जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘भारत अफगान नीत, अफगान नियंत्रित और अफगानिस्तान के स्वामित्व वाली शंति प्रक्रिया को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। ’
मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम से मिलकर प्रसन्न हूं: जयशंकर
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ‘मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम से मिलकर प्रसन्न हूं । अफगानिस्तान और क्षेत्र से जुड़े घटनाक्रमों पर विचारों का आदान प्रदान किया । उनका व्यापक अनुभव और गहरी सोच प्रकट हुई । ’ उधर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि दोस्तम ने विदेश सचिव हर्ष वर्द्धन श्रृंगला से भी मुलाकात की जिसमें अफगानिस्तान के समाज के सभी वर्गो के संवैधानिक अधिकार और व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
श्रीवास्तव ने ट्वीट किया, ‘विदेश सचिव हर्ष वर्द्धन श्रृंगला ने मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम से मुलाकात की और अफगान शांति वार्ता और उभरती स्थिति को लेकर उनके विचार को जाना। अफगानिस्तान के समाज के सभी वर्गो के संवैधनिक अधिकार और व्यवस्था के बारे में भी चर्चा हुई। भारत ने अफगानिस्तान के प्रति दीर्घकालीन प्रतिबद्धता को दोहराया । ’ भारत अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता में एक महत्वपूर्ण पक्षकार है।
40 साल से दोस्तम उज्बेकों के नेता, तालिबान के दुश्मन
भारत ने अफगानिस्तान में सहायता एवं पुनर्निर्माण कार्यो में 2 अरब डालर से अधिक निवेश किया है। 12 सितंबर को दोहा में अंतर अफगान वार्ता के उद्घाटन समारोह में भारतीय शिष्टमंडल ने हिस्सा लिया था और जयशंकर इसमें वीडियो कांफ्रेंस के जरिये शामिल हुए थे। अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीतिक स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए है।
दोस्तम एक उज्बेक सिपहसालार हैं और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी तथा उनके विरोधी अब्दुल्ला अब्दुला के बीच सत्ता के बंटवारे के समझौते में दोस्तम को मार्शल की उपाधि दी गई है। दोस्तम का इतिहास काफी विवादों से भरा रहा है लेकिन वह अभी भी अफगानिस्तान में काफी प्रभावशाली माने जाते हैं। पिछले करीब 40 साल से दोस्तम अफगानिस्तान में उज्बेकों के नेता हैं। दोस्तम तालिबान और आईएसआईएस की हिट लिस्ट में और दोनों गुटों के आतंकी कई बार उन्हें निशाना बनाने का असफल प्रयास कर चुके हैं।
तालिबान की मदद से कश्मीर में हिंसा भड़काना चाहता है पाक
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के लिए पाकिस्तान ने अपना पूरा जोर लगा दिया है। पाकिस्तान तालिबान की मदद से कश्मीर में हिंसा भड़काने और काबुल भारत को बाहर करने का ख्वाब देख रहा है। यही नहीं पाकिस्तान के आका चीन की नजर अफगानिस्तान के विशाल खनिज संसाधनों पर है। अफगानिस्तान में सिखों पर इन दिनों आतंकवादियों के हमले बढ़ गए हैं। इन सबसे भारत चिंतित है। पाकिस्तान चाहता है कि तालिबान शासन आने के बाद कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को यहां फिर से प्रशिक्षण दिया जा सकेगा। पाकिस्तान की इसी चाल को विफल करने के लिए भारत एक ऐसी राष्ट्रीय शांति और मेल-मिलाप प्रक्रिया का समर्थन कर रहा है जो अफगान लोगों के द्वारा, अफगान लोगों के नियंत्रण वाली हो।
भारतीय नेताओं ने पाकिस्तान और तालिबान को कड़ा संदेश दिया
अमेरिका और तालिबान के बीच डील के बाद वॉशिंगटन काबुल से अपने सैनिकों को 18 साल बाद निकालना चाह रहा है। उधर, भारत भी इस पूरे मामले में जोर दे रहा है कि अमेरिका के जाने से अफगानिस्तान में ऐसे ‘गैरशासित स्थान’ न पैदा हो जाएं जहां पर आतंकवादी और उनके समर्थक फिर से अपनी जगह तलाश लें। इसी वजह से भारत सिर्फ तालिबान ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान के अन्य राजनीतिक गुटों को अल्पसंख्यकों समेत देश की जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक साथ आने की अपील कर रहा है। माना जा रहा है कि तालिबान के दुश्मन और उत्तरी अफगानिस्तान में काफी प्रभाव रखने वाले दोस्तम से मुलाकात करके भारतीय नेताओं ने पाकिस्तान और तालिबान को कड़ा संदेश दिया है।
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