इंदौर। एक वक्त था, वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री अभय छजलानी की तुती बोलती थी…शहर के पत्रकार उन्हें अपना आदर्श मानते थे और उनसे शिक्षा लेने जाते थे। उन्होंने न केवल युवा पत्रकारों की पौध को तैयार किया, बल्कि वरिष्ठ पत्रकारों को पूरी तरह सम्मान देते हुए उनकी परंपरा को बढ़ाया। नई दुनिया और अभय जी एक-दूसरे के पर्याय ही थे। हालांकि जब नई दुनिया बिक गया तो उसकी कसक और पीड़ा अब्बू जी निरंतर महसूस करते रहे। दरअसल इंदौर की पत्रकारिता के वे ना सिर्फ शिखर पुरुष रहे, बल्कि शहर से जुड़े तमाम मुद्दों और समस्याओं को बेबाकी से उठाते भी रहे। हालांकि उस वक्त नई दुनिया की तूती बोलती थी और अभय जी का भी अलग ही जलवा रहा, जो आज किसी भी पत्रकार के लिए संभव नहीं है।
बीते लगभग डेढ़ वर्ष से वे बीमार ही थे और याददाश्त भी खो चुके थे। जबकि इंदौर से लेकर प्रदेश की राजनीति और तमाम मुद्दों से संबंधित जानकारी अभय जी को कंठस्थ रहती थी और कई कार्यक्रमों में उनको सुनना भी एक अलग अनुभव रहता था। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी अभय जी के निधन पर शोक संवेदना प्रकट करते हुए ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने अभय जी के निधन को पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय क्षति बताया है उनके पुत्र विनय छजलानी ने बताया कि अंतिम यात्रा निवासी स्थान बाबू लाभचंद छजलानी मार्ग से शाम 5 बजे निकलकर मुक्तिधाम पहुंचेगी।
इंदौर की आवाज थे अभयजी… सलाह पर चलती थी सरकार….
कस्बा था इंदौर…इसे शहर बनाना…प्रदेश में पहचान दिलाना…सरकार को शहर की जरूरतें समझाना…राजनीति में शहर को स्थान दिलाना…और इंदौर की आवाज को बुलंद करने का पूरा श्रेय शहर की पत्रकारिता के स्तंभ रहे अभय छजलानी को जाता है…वो एक युग था, जब पत्रकारिता का सम्मान शिखर पर हुआ करता था और उस शिखर को ज्ञान के गौरव से निखारना… अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाना…और जो लिखे उस पर तत्काल अमल हो जाना…यह खूबी थी अभयजी की…अभयजी को लोग दिल से शिरोधार्य करते थे…और उसका कारण यह था कि वे अपने शहर से प्यार करते थे…नईदुनिया ने पत्रकारिता की गरिमा को ही नहीं बनाया, बल्कि एक स्कूल की तरह पत्रकारों को भी कलम चलाना सिखाया…इस संस्थान की कई पौध विशाल वृक्ष बनकर पत्रकारिता की राह बनती चली गई…
नईदुनिया जैसे समाचार पत्र में देश के सर्वश्रेष्ठ संपादक रहे और उसके बाद इस दायित्व को बखूबी अभयजी ने संभाला और संवारा…एक वक्त था, जब मुख्यमंत्री इंदौर आते ही सबसे पहले नईदुनिया की ड्योढ़ी पर जाते थे…शहर की जरूरतों का वहां विस्तृत ज्ञान मिल जाता था…राजनीति और सरकार का सरोकार वहां से आगे बढ़ता था…तब मध्यप्रदेश कोई छोटा प्रदेश नहीं था, बल्कि छत्तीसगढ़ और आज के मध्यप्रदेश को मिलाकर एक बड़ा प्रदेश हुआ करता था…खास बात यह है कि अभयजी या नईदुनिया के रहते उस समय छत्तीसगढ़ की राजनीति भी इंदौर से चलती थी…अभयजी ने न केवल पत्रकारिता, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिकता से सरोकार रखते हुए इंदौर को सांस्कृतिक राजधानी भी बनाया… बढ़ती उम्र के चलते स्वास्थ्यगत कारणों से विमुख हुए अभयजी आज भी पत्रकारिता के लिए याद किए जाते हैं…उस युग के वे ऐसे इकलौते सफल पत्रकार थे, जो अखबार के मालिक भी थे…इस कारण उनकी कलम कभी बंदिशों में नहीं रही…आज उनके अवसान पर अग्निबाण परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि…
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