नई दिल्ली। कहते हैं प्रतिभा को छिपाया नहीं जा सकता। वह एक न एक दिन दुनिया के सामने आ ही जाती है। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ (Kishtwar, Jammu and Kashmir) के लोइधर गांव की तीरंदाज शीतल देवी ने इसे साबित कर दिखाया है। उनकी उम्र महज 16 साल है। खेल की शासी निकाय विश्व तीरंदाजी के अनुसार, वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा (compete at international level) करने वाली बिना हाथों वाली पहली महिला तीरंदाज हैं। इस सप्ताह उन्होंने हांग्जो में एशियाई पैरा खेलों में दो पदक जीते।
वह कैसे तीर छोड़ती हैं, यह बेहद दिलचस्प है। वह अपने दाहिने पैर से 27.5 किलोग्राम के धनुष को पकड़ती हैं, इसके बाद इसे बैलेंस करती हैं, फिर अपने दाहिने कंधे से जुड़े एक मैनुअल रिलीजर का उपयोग करके स्ट्रिंग को पीछे खींचती हैं। इसके बाद अपने मुंह में रखे ट्रिगर नामक उपकरण का उपयोग करके तीर को 50 मीटर दूर लक्ष्य पर साधती हैं। खास बात यह है कि पूरे समय वह अपने बाएं पैर के बल सीट पर खुद को सीधा रखती हैं।
शीतल का जन्म फोकोमेलिया बीमारी के साथ हुआ था। यह एक दुर्लभ जन्मजात विकार है जिसके कारण अंग अविकसित रहते हैं। शीतल ने गुरुवार को द इंडियन एक्सप्रेस को बताया- “जब मैंने शुरुआत की, तो धनुष को ठीक से उठा भी नहीं पाती थी, लेकिन कुछ महीनों की प्रैक्टि्स के बाद यह आसान हो गया।”
उन्होंने आगे कहा- “मेरे माता-पिता को हमेशा मुझ पर भरोसा था, केवल एक चीज जो मुझे पसंद नहीं आई वह थी लोगों के चेहरों पर वह भाव जब उन्हें एहसास हुआ कि मेरे पास आर्म्स नहीं हैं। ये पदक सिर्फ मेरे नहीं हैं, बल्कि पूरे देश के हैं।” हांग्जो में शीतल ने सरिता के साथ जोड़ी बनाते हुए महिला टीम में रजत पदक जीता, जबकि राकेश कुमार के साथ मिश्रित टीम में स्वर्ण पदक जीता। यह किसी ऐसे शख्स के लिए शानदार उपलब्धि है, जिसने सिर्फ दो साल पहले ही धनुष-बाण के साथ ट्रेनिंग शुरू की थी।
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