नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) बिल 2025 (Wakf (Amendment) Bill 2025) को लेकर लोकसभा और राज्यसभा ( Lok Sabha and Rajya Sabha) में तीखी बहस (Heated debate) देखने को मिली। दोनों सदनों में 12-12 घंटे से ज्यादा समय तक हुई चर्चा के बाद आखिरकार यह विधेयक संसद से पारित (Bill passed by Parliament) हो चुका है। विधेयक पर बहस के दौरान केरल के एक छोटे से गांव मुनंबम की 400 एकड़ जमीन का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बार-बार उठाया। बीजेपी ने इस जमीन विवाद को वक्फ बिल के समर्थन में अपनी दलीलों का आधार बनाया। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर एक छोटे से गांव का कौन सा जमीन विवाद है जिसे केंद्र सरकार बार-बार उठा रही है?
मुनंबम जमीन विवाद क्या है?
मुनंबम, केरल के एर्नाकुलम जिले का एक तटीय गांव है, जहां लगभग 600 परिवार पीढ़ियों से रहते आए हैं। इनमें ज्यादातर ईसाई समुदाय से हैं। इस जमीन का स्वामित्व मूल रूप से त्रावणकोर शाही परिवार के पास था, जिसे 1902 में अब्दुल सथार मूसा सैत नामक एक व्यापारी को पट्टे पर दिया गया था। 1950 में, उनके उत्तराधिकारी मोहम्मद सिद्दीक सैत ने इस जमीन को कोझिकोड के फारूक कॉलेज को दान कर दिया, जिसके बाद इसे वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया। इस इलाके में बड़ी संख्या में मछुआरे पीढ़ियों से रह रहे थे। 1987 से 1993 के बीच, फारूक कॉलेज प्रबंधन ने इन निवासियों से पैसे लेकर उन्हें भूमि के टाइटल डीड सौंप दिए। लेकिन 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होने के बाद मामला जटिल हो गया।
2008 में, उस समय की CPI(M) सरकार ने केरल राज्य वक्फ बोर्ड के कामकाज और वक्फ संपत्तियों के हस्तांतरण की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया। इस आयोग ने पाया कि मुनंबम की जमीन वक्फ संपत्ति है और उचित कार्रवाई की सिफारिश की। लेकिन फारूक कॉलेज प्रबंधन ने अपनी जमीन को वक्फ बोर्ड में पंजीकृत नहीं किया।
विवाद तब शुरू हुआ जब 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने इस जमीन को अपने स्वामित्व में घोषित कर दिया और राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह मौजूदा मालिकों से जमीन कर स्वीकार न करे। इसके जवाब में, 2022 में राज्य सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए वक्फ बोर्ड के निर्देश को दरकिनार कर राजस्व विभाग को कर वसूलने की अनुमति दी। इससे निवासियों को अपनी जमीन पर अधिकार जताने और बैंक से ऋण लेने की सुविधा मिली। इसके बाद इस सरकारी फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। अदालत ने फिलहाल सरकार के भूमि कर स्वीकार करने के फैसले पर रोक लगा दी है। अब इन लोगों को डर है कि वक्फ की वजह से उनकी जमीन से उनका मालिकाना हक न छिन जाए।
विवाद के राजनीतिक मायने और भाजपा का रुख
पिछले साल नवंबर से, भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है। यह विवाद तब और गरमाया जब केरल विधानसभा ने केंद्र सरकार के वक्फ विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। भाजपा ने वक्फ बोर्ड से अपनी 400 एकड़ जमीन के दावे को छोड़ने की मांग की है और इसके खिलाफ ‘भूमि सुरक्षा समिति’ के बैनर तले प्रदर्शन भी किए हैं। केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल ने भी निवासियों के “उजाड़े जाने के खतरे” का विरोध किया और संसद की संयुक्त समिति को इस पर याचिका दी।
भाजपा के इस मुद्दे में कूदने के बाद, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने विभिन्न मुस्लिम संगठनों की बैठक बुलाई। IUML के नेता थंगल ने कहा, “मुन्नंबम के निवासियों को किसी भी तरह से निकाला नहीं जाना चाहिए। वे इस संकट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं और उन्हें अपने जमीन के दस्तावेज मिलने चाहिए। सरकार को समय रहते हस्तक्षेप करना चाहिए था ताकि यह विवाद सांप्रदायिक मुद्दा न बने।”
अब बीजेपी ने मुनंबम के इस विवाद को वक्फ बोर्ड की “अनियंत्रित शक्तियों” के उदाहरण के रूप में पेश किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, जैसे केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी और राज्य उपाध्यक्ष के.एस. राधाकृष्णन, ने इसे “भूमि जिहाद” करार देते हुए दावा किया कि वक्फ बोर्ड ऐसी संपत्तियों पर दावा कर रहा है, जिन पर लोग पीढ़ियों से रह रहे हैं। बीजेपी ने इस मुद्दे को केरल में ईसाई समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के अवसर के रूप में भी देखा, खासकर तब जब केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) ने मुनंबम निवासियों के “निष्कासन के खतरे” के खिलाफ आवाज उठाई और वक्फ बिल में संशोधन की मांग की।
लोकसभा में बहस के दौरान, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “मुनंबम का मामला दिखाता है कि वक्फ बोर्ड की शक्तियों को विनियमित करने की जरूरत है। यह बिल गरीब मुसलमानों और आम लोगों के हित में है।” बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और इसे वक्फ संशोधन बिल की आवश्यकता का प्रमाण बताया।
विपक्ष का जवाब, केरल सरकार की स्थिति
केरल सरकार ने आधिकारिक रूप से कहा है कि वह मुनंबम के निवासियों के साथ है। नवंबर में कानून मंत्री पी. राजीव ने कहा था, “यह मामला बहुत जटिल है और अदालत में विचाराधीन है। जो लोग इस जमीन को खरीदकर यहां रह रहे हैं, वे लंबे समय से यहां बसे हुए हैं।” अब सभी की निगाहें अदालत के फैसले और सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं, क्योंकि यह विवाद केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा भी बन चुका है।
कांग्रेस और उसकी सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने बीजेपी पर धार्मिक आधार पर लोगों को बांटने का आरोप लगाया। केरल के विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने कहा, “किरेन रिजिजू ने खुद स्वीकार किया कि इस बिल का कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होगा, तो मुनंबम के लोगों को यह कैसे लाभ देगा? बीजेपी इस मुद्दे को गलत तरीके से जोड़ रही है।” कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ सीपीआई(एम) ने इस मुद्दे को लंबित रखकर ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया, जिससे बीजेपी को फायदा हुआ।
चर्च की भूमिका और राजनीतिक प्रभाव
केरल में चर्च, खासकर सायरो-मालाबार कैथोलिक चर्च और केसीबीसी, ने मुनंबम के निवासियों के समर्थन में खुलकर आवाज उठाई और संसद के संयुक्त समिति को पत्र लिखकर वक्फ अधिनियम 1995 में बदलाव की मांग की। इस समर्थन ने बीजेपी को ईसाई समुदाय के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दिया, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस और वाम दलों का समर्थक रहा है।
हालांकि, मुस्लिम संगठनों, जैसे समस्त केरल जामियतुल उलमा, ने बिल को “मुस्लिम विरोधी” करार दिया और इसे संविधान के सेक्युलर मूल्यों के खिलाफ बताया। संगठन के अध्यक्ष सैयद जिफरी मुथुकोया थंगल ने कहा, “यह बिल धार्मिक सौहार्द को नष्ट करने की साजिश है।”
आगे की राह
वक्फ (संशोधन) बिल 2025 अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। इस बीच, मुनंबम का मुद्दा केरल की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है, खासकर 2025 के स्थानीय निकाय चुनाव और 2026 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए। बीजेपी इसे एक अवसर के रूप में देख रही है, जबकि कांग्रेस और वाम दल इसे धार्मिक ध्रुवीकरण के खिलाफ अपनी लड़ाई का हिस्सा मान रहे हैं। मुनंबम के निवासियों के लिए, जो पिछले 173 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं, यह सिर्फ जमीन का सवाल नहीं, बल्कि उनके घर और आजीविका की लड़ाई है।
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