कोरोना का कहर… खाली खजाना… फिर भी दयालू होकर खजाना लुटाना… मध्यप्रदेश की सरकार ने घरेलू अत्याचारों की शिकार महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता के द्वार खोलकर उस दर्द को साझा करने की कोशिश की, जिसके चलते लुटती-पिटती, जख्म खाती, आंसू बहाती महिलाएं केवल छत और रोटी की मजबूरी में शोषण का शिकार हो रही हैं… खामोश रह रही हैं… यातनाएं सह रही हैं… सहारे की आस आंसुओं में बह रही है… जाएगी तो कहां जाएगी… कैसे रह पाएगी… न मायका साथ देता है न नाते-रिश्ते हाथ बढ़ाते हंै… इसीलिए ससुराल वाले एक महिला पर जोर आजमाते हैं… यह नजारे शहरों में कम नजर आते हैं, लेकिन गांवों की रूढिय़ों में दबी महिलाएं कभी लोक-लाज के डर से तो कभी अपने-परायों के बीच विवशता की यातनाएं सहती रहती हैं… उसकी चाहत केवल दो वक्त की रोटी रहती है… कपड़ों के नाम पर चिथड़ों में लिपटी महिलाओं पर घरेलू यातनाएं इस इंतहा पर पहुंच जाती हैं कि शरीर क्षीण हो जाता है… मन टूट जाता है… दिल आंसुओं से भर जाता है, फिर भी कोई सहारा नहीं मिल पाता है… कानून यदि साथ देता भी है और अत्याचारी परिवार सजा पा भी जाता है तो महिला के खान-पान और रहने-बसने की विवशता का इंतजाम नहीं हो पाता है… देश में मध्यप्रदेश ऐसा पहला प्रदेश रहा, जिसके मुखिया शिवराजसिंह चौहान ने खाली झोली में दया का खजाना भरकर उन महिलाओं के लिए सहारे का हाथ बढ़ाया, जो इन विवशताओं में उलझकर कानून की शरण में जाने से डरती रही हैं… सरकार का यह फैसला उन महिलाओं के लिए मुक्ति का मार्ग बनेगा, जो घरेलू हिंसा का शिकार होकर अपना जीवन तबाह कर रही हैं… सुरक्षा और संरक्षण की यह भावना यदि मुखर हो जाएगी तो न केवल यातनाओं में कमी आएगी, बल्कि बगावत के खिलाफ उठने वाली महिलाओं की आवाज से अत्याचारी परिवार पर भी लगाम लगेगी और टूटते घरों की तादाद भी घटेगी… अब जरूरत है कि सरकार अपनी इस योजना को गांव-गांव तक पहुंचाए… महिलाओं को जागरूक बनाए… उन्हें जिंदगी में मिल रही यातनाओं से पीछा छुड़ाने का हौसला बढ़ाए… सरकार के लिए चुनौती भी और संग्राम भी… शहरी क्षेत्र में जहां जागरूकता है वहां महिलाएं वैसे भी स्वावलंबी हैं… लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अज्ञानता और जागरूकता की कमी के चलते महिलाएं यातनाएं सह रही हैं… क्योंकि वे अपने घर-परिवार पर ही निर्भर हैं… और यह निर्भरता ही उनकी विवशता है… ऐसी महिलाओं को सहायता के अधिकार की जानकारी देना और जागरूक करना भी आवश्यक है…
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