इंदौर। थैलेसीमिया से पीडि़त 1500 बच्चों को खून की कमी न आने पाए, उनके परिजनों को ब्लड के लिए परेशान न होना पड़े, इसके लिए शहर में 50 युवाओं की टीम पिछले तीन साल से रक्तदान का अभियान चला रही है। इन युवाओं की टीम ने पिछले 3 सालों में 10 हजार यूनिट ब्लड रक्तदान के जरिये संग्रहित कर थैलेसीमिया पीडि़तों के लिए एमवाय हॉस्पिटल के ब्लड बैंक व रेडक्रॉस सोसायटी के जरिये दिलवा चुकी है।
जिस उम्र में अधिकांश युवा अक्सर अपना अधिकांश समय मौज-मस्ती में खपा देते हैं, मगर शहर में कई युवा ऐसे भी हैं, जो दूसरों की नि:स्वार्थ सहायता व मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। शहर में 18 साल से लेकर 25 साल के लगभग युवाओं की टीम मानवता की पहचान नाम से संस्था बनाकर 1500 थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों के लिए ब्लड की व्यवस्था में जुटी रहती है। थैलेसीमिया या अन्य कारणों से ब्लड की जरूरत पर एक फोन या एक मैसेज आने पर यह टीम सक्रिय हो जाती है। मानवता की पहचान संस्था के संस्थापक 24 वर्षीय अनुराग सचदेव बताते हैं कि एक दिन उनके पास मोबाइल पर मैसेज आया कि एक मरीज को अर्जेंट में ब्लड चाहिए। उन्होंने तत्काल जरूरतमन्द परिजनों से सम्पर्क किया और ब्लड डोनेट कर दिया।
इसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक ब्लड डोनर ग्रुप बनाया। धीरे-धीरे अन्य युवा भी इस ग्रुप से जुड़ते चले गए। अब तीन सालों में यह ग्रुप मानवता की पहचान संस्था बन चुका है। 50 युवाओं की टीम न सिर्फ सोशल मीडिया के जरिये, बल्कि स्कूल, कॉलेज, आर्मी, पुलिस फोर्स सेंटर पर जाकर लोगों को ब्लड डोनेट यानी रक्तदान के लिए वीडियो के जरिये प्रजेन्टेशन देकर उन्हें जागरूक करती है। पिछले तीन सालों में उनकी टीम 10 हजार यूनिट ब्लड रक्तदान के जरिए एमवाय ब्लड बैंक व रेडक्रॉस सोसायटी सहित अन्य जरूरतमन्द के लिए मुहैया कराती रही है। थैलेसीमिया पीडि़तों के लिए रक्तदान शिविर का आयोजन करती है।
एक साल में 12 से 20 यूनिट ब्लड लगता है
एमवाय ब्लड बैंक के प्रमुख डॉक्टर अशोक यादव के अनुसार 1 थैलेसीमिया पीडि़त को उसकी हाइट व हीमोग्लोबिन के हिसाब से हर महीने ब्लड की जरूरत पड़ती है। इस तरह 1 मरीज को सालभर में 12 यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ता है। कभी-कभी इंफेक्शन सम्बन्धित समस्या के चलते 18 से 20 यूनिट ब्लड भी चढ़ाना पड़ता है।
26 साल पहले रक्तदान को मिली थी मान्यता
एमवाय के ब्लड बैंक प्रमुख डॉक्टर अशोक यादव ने बताया कि ड्रग एन्ड कास्मेटिक एक्ट में साल 1996 में ब्लड बैंक को शामिल किया गया था। इसके बाद ब्लड बैंक का वजूद अस्तित्व में आया। यानी रक्तदान के जरिये ब्लड संग्रहित करने की मान्यता 26 साल पहले मिली। तब से ही रक्तदान का सिलसिला शुरू हुआ। शिक्षा व जागरूकता के अभाव के चलते शुरुआत में 4 से 5 यूनिट ही ब्लड रक्तदान के जरिये मिल पाता था। मगर अब सालभर शहरभर में सरकारी व निजी संस्थाओं के जरिये जरूरतमन्दों को लगभग 50 हजार यूनिट ब्लड रक्तदान के जरिये मिल जाता है। अभी हाल ही वल्र्ड थैलेसीमिया डे पर 8 मई को गांधी हाल में 12 घण्टे में 951 यूनिट ब्लड रक्तदान के जरिये जुटाकर इंदौर को प्रदेश में नम्बर वन बनाने का रिकार्ड बनाया है।
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