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    अजित के एक पोस्टर ने साफ कर दी महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर, बगावत के पीछे ये है असली वजह

  • July 05, 2023

    नई दिल्ली। महाराष्ट्र में अजित पवार के एक खेल ने एनसीपी में दो फाड़ कर दी है। शक्ति प्रदर्शन वाले दिन जिस तरह से 30 से ज्यादा विधायकों का समर्थन मिलता भी दिख रहा है, इसने भी अजित खेमे के हौसले बुलंद कर दिए हैं। अब मीडिया के कैमरों ने अजित के साथ नंबर गेम देखा, एनसीपी में दो फाड़ होती देखी और वरिष्ठ नेता शरद पवार की खिसकती सियासी जमीन को भी समझा। लेकिन बुधवार को हुई अजित खेमे की बैठक ने साफ कर दिया कि बगावत की असल वजह शरद पवार नहीं, बल्कि कुछ और है।

    10 जून की तारीख में छिपी बगावत की कहानी
    ये असल वजह समझने के लिए 10 जून, 2023 वाली तारीख पर फिर वापस चलने की जरूरत है। एनसीपी अपना 25वां स्थापना दिवस मना रही थी। उम्मीद की जा रही कि कुछ बड़े बदलाव किए जा सकते हैं, इस बात की उम्मीद भी लगी थी कि शरद पवार अपने उत्तराधिकारी को लेकर कोई बड़ा संकेत देंगे। अब जैसी उम्मीद की गई, वैसा हुआ भी। शरद पवार ने ऐलान कर दिया कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले और नेता प्रफुल पटेल एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष रहेंगे। इसके अलावा सुप्रिया को चुनावी मौसम में महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों का जिम्मा भी सौंप दिया गया।

    सुप्रिया को आगे करने की होड़, पिछड़ गए अजित
    कुछ इसी अंदाज में प्रफुल पटेल को भी जिम्मेदारियां सौंप दी गईं, लेकिन खाली हाथ रह गए अजित पवार। वो अजित पवार जो किसी जमाने में शरद पवार के उत्तराधिकारी माने जा रहे थे। लेकिन कुछ खट्टे अनुभव और बीच-बीच में भतीजे के बगावती तेवर ने जमीन पर समीकरण बदल दिए और शरद पवार ने अपने उत्तराधिकारी के लिए अजित से बेहतर ‘कोई’ दूसरा विकल्प समझा। ये दूसरा विकल्प कोई और नहीं सुप्रिया सुले ही हैं जिन्हें लंबे समय से पवार राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय करने की कोशिश कर रहे हैं।

    ये पोस्टर बहुत सियासी है!
    अब वर्तमान स्थिति पर आते हैं जहां पर अजित पवार ने बगावत की है, 30 से ज्यादा विधायकों को अपने पाले में किया है। एनसीपी और उसके चुनाव चिन्ह पर भी उन्होंने अपना दावा ठोक दिया है। लेकिन बुधवार को हुई पहली अजित खेमे की बैठक ने साफ कर दिया कि शरद पवार से नाराजगी हो सकती है, लेकिन बिना उनके चेहरे के एनसीपी की नैया पार लगना मुश्किल है। असल में अजित की बैठक में मंच पर एक बड़ा पोस्टर लगाया गया। सियासी कार्यक्रम है, ऐसे में ये पोस्टर भी मायने रखते हैं, जिसे जगह मिले और जिसे जगह ना मिले, हर तरह से ये एक पोस्टर कई संदेश देता है।


    पोस्टर में शरद IN सुप्रिया OUT
    ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ। अजित पवार की बैठक में जिस पोस्टर को मंच पर लगाया गया उसमें शरद पवार की सबसे बड़ी तस्वीर रखी गई। अजित पवार भी साथ दिखें, प्रफुल पटेल भी जगह दी गई, कुछ दूसरे नेताओं को भी रखा गया, लेकिन सुप्रिया सुले गायब रहीं। कहने को ये एक छोटी बात थी, लेकिन राजनीतिक चश्मे से समझा जाए तो मतलब साफ है- अजित की नाराजगी शरद पवार से ज्यादा सुप्रिया सुले से है, इस बात से है कि उन्हें मौका ना देकर सुले को आगे किया गया।

    शरद पवार से दूरी, जरूरत भी पूरी
    एनसीपी में कुर्सी की लड़ाई तो लंबे समय से चल रही है, अब उसमें शरद पवार ने क्योंकि सुप्रिया सुले को आगे कर दिया, ऐसे में अजित नाराज हो गए। लेकिन उनकी वो नाराजगी इतनी ज्यादा नहीं कि वे शरद पवार के चेहरे की अहमियत को भूल जाएं। इसी वजह से वर्तमान सियासत को समझते हुए, शरद पवार का चेहरा अच्छी तरह इस्तेमाल किया गया है। उनकी बैठक में आए सभी कार्यकर्ताओं के बयान भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि शरद पवार को साथ लेकर चलना है।

    अब इस एक दांव के भी कई कारण हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीति और उनके महत्व को कोई भी नहीं ठुकरा सकता है। जिस नेता ने एक समय में इंदिरा गांधी को क्लीन बोल्ड किया हो, जिस नेता ने सोनिया गांधी को पीएम बनने से रोक दिया हो। उनकी सियासत पर पकड़ को समझना कोई मुश्किल बात नहीं। ऐसे में अब जब अजित पवार एक ई सियासी पारी की शुरुआत करना चाहते हैं, उन्हें शरद पवार का सिर्फ चेहरा चाहिए। उनके बयान ने भी इस बात को साफ कर दिया है।

    बुधवार को हुई बैठक में अजित पवार ने कहा कि शरद पवार को अब आशीर्वाद देना चाहिए, 80 से ज्यादा उम्र हो गई है, रिटायर क्यों नहीं हो जाते। अब इस बयान से ये बात साफ हो जाती है, अजित को शरद पवार के आशीर्वाद की जरूरत है। लेकिन ये आशीर्वाद सिर्फ उनके चेहरे तक सीमित है, वे उन्हें सक्रिय राजनीति में नहीं देखना चाहते। इसी तरह अजित जनता के सामने भी ये संदेश देना चाहते हैं कि वे शरद पवार का आदर करते हैं, उन्हें साथ लेकर चल रहे हैं। ये वो दांव है जो पिछले साल एकनाथ शिंदे ने भी बखूबी इस्तेमाल किया था।

    उन्हें इस बात का अहसास था कि बालासाहेब ठाकरे के नाम का इस्तेमाल करे बिना वे खुद को असली शिवसेना नहीं बता पाएंगे। ऐसे में उन्होंने बालासाहेब के नाम का इस्तेमाल कर ही बागी विधायकों को अपने साथ किया, शिवसेना पर हक जमाया और उद्धव की सियासत को भी करारी चोट पहुंचाई। अब उसी राह पर अजित पवार चल दिए हैं, कितने सफल रहते हैं, ये आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।

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