नई दिल्ली। जो पिछले 300 सालों में नहीं हुआ था, अब हुआ साल 2020 में… वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में गले के ऊपरी हिस्से में लार ग्रंथियों का एक सेट खोजा है। माना जा रहा है कि पिछली तीन सदियों में मानव शरीर संरचना से जुड़ा यह सबसे बड़ा और अहम अनुसंधान है, जिससे जीवन और चिकित्सा विज्ञान को और बेहतर किए जाने में काफी मदद मिलेगी। खास तौर से गले और सिर के कैंसर के उन मरीज़ों के इलाज में, जिन्हें रेडिएशन थेरेपी से गुज़रना होता है।
ग्रंथियों का यह नया सेट नाक के पीछे और गले के कुछ ऊपर के हिस्से में मिला है, जो करीब 1.5 इंच का है। एम्सटरडम स्थित नीदरलैंड्स कैंसर इंस्टिट्यूट के रिसर्चरों ने कहा कि इस खोज से रेडियोथेरेपी की वो तकनीकें विकसित करने और समझने में मदद मिलेगी, जिनसे कैंसर के मरीज़ों को लार और निगलने में होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकेगा।
क्या रखा गया इन ग्लैंड्स का नाम?
रेडियोथेरेपी एंड ओंकोलॉजी नाम पत्र में प्रकाशित हुए शोध में शोधकर्ताओं ने लिखा कि मानव शरीर में ये माइक्रोस्कोपिक सलाइवरी ग्लैंड लोकेशन चिकित्सा विज्ञान के लिहाज़ से काफी अहम है, जिसे अब तक जाना ही नहीं गया था। रिसर्चरों ने इन ग्लैंड्स का नाम ‘ट्यूबेरियल ग्लैंड्स’ प्रस्तावित किया। इसकी वजह यह है कि ये ग्लैंड्स टोरस ट्यूबेरियस नाम के कार्टिलेज के एक हिस्से पर स्थित हैं।
हालांकि कहा गया है कि इस बारे में और गहन रिसर्च की ज़रूरत है ताकि इन ग्लैंड्स को लेकर बारीक से बारीक बात कन्फर्म हो सके। अगर आने वाली रिसर्चों में इन ग्लैंड्स की मौजूदगी और इससे जुड़ी कुछ और जिज्ञासाओं का समाधान हो जाता है तो पिछले 300 सालों में नये सलाइवरी ग्लैंड्स की यह पहली अहम खोज मानी जाएगी।
क्या इत्तेफाक से हो गई खोज?
जी हां, रिसर्चर वास्तव में, प्रोस्टेट कैंसर को लेकर स्टडी कर रहे थे और इसी दौरान संयोग से उन्हें इन ग्लैंड्स के बारे में पता चला। संकेत मिलने पर इस दिशा में और रिसर्च की गई। रिसर्चरों ने कहा कि मानव शरीर में सलाइवरी ग्लैंड्स के तीन बड़े सेट हैं, लेकिन जहां नई ग्लैंड्स मिली हैं, वहां नहीं। रिसर्चरों ने खुद माना कि इन ग्लैंड्स के बारे में पता चलना उनके लिए भी किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
भारत के लिए बड़ी राहत?
मेडिकल रिसर्च संबंधी भारतीय परिषद की कैंसर इकाई के मुताबिक भारत में गर्दन और और सिर का कैंसर बड़ी संख्या में होता है। साथ ही, ओरल कैविटी के कैंसर के केस भी काफी हैं। भारत में रेडिएशन ओंकोलॉजी के विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस खोज से कैंसर मरीज़ों के रेडियोथेरेपी इलाज में काफी मदद मिलेगी।
कैसे मिलेगी इलाज में मदद?
कैंसर के इलाज में रेडिएशन का साइड इफेक्ट ये होता है मुंह में लार संबंधी ग्रंथियां डैमेज हो जाती हैं, जिससे मुंह सूखा रहता है यानी मरीज़ को खाने और बोलने में लंबे समय की तकलीफ़ हो जाती है। अब जो नई ग्लैंड्स की खोज हुई है, उनसे सलाइवरी ग्लैंड्स का एक और जोड़ा मिलता है। एम्स दिल्ली में रेडिएशन ओंकोलॉजी के विशेषज्ञ रहे डॉ. पीके जुल्का के हवाले से एक रिपोर्ट कहती है कि माना जा रहा है कि ये ग्लैंड्स चूंकि ऊपरी हिस्से में है इसलिए रेडिएशन के दायरे से बाहर रहेगी इसलिए बेहतर इलाज संभव होगा।
क्या कोविड से कोई कनेक्शन है?
यह समझना चाहिए कि सलाइवा यानी लार वो द्रव है, जिसमें कोरोना वायरस के रहने के सबूत मिल चुके हैं। कोविड 19 केसों में सलाइवा टेस्ट को काफी तवज्जो दी जा चुकी है। ओरल कैविटी में वायरस की एंट्री से लेकर सलाइवरी डक्ट के ज़रिये वारयस के पार्टिकल रिलीज़ होने तक के बारे में शोध हो चुके हैं। चूंकि कोविड की बीमारी, परीक्षण और इलाज तीनों ही लार ग्रंथियों से लेकर श्वास ग्रंथियों से जुड़े हैं, इसलिए ऐसे में नाक और गले के बीच में नई सलाइवरी ग्लैंड्स की खोज कोरोना के नज़रिये से भी खासी अहम हो सकती है। हालांकि इस बारे में अभी शोध होने बाकी हैं।
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