रायसेन । मध्यप्रदेश के रायसेन किला (Raisen Fort of Madhya Pradesh) का शानदार इतिहास कुछ अलग रही रहा है। बताते हैं कि यहां कई राजाओं (Raja) ने अपनी हुकूमत (ruling) कर राज किया है, जिनमें से एक शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) भी था। बताया जाता है कि इस किले को जीतने के लिए 15वीं सदी में शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवा कर तोपें बनवाई थी। मालवा की पूर्वी सीमा पर स्थित इस किले को जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था।
उस समय इस किले पर राजा पूरनमल का शासन था। उन्हें जैसे ही ये पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था। कहते हैं कि यहां के राजा राजसेन के पास पारस पत्थर था, जो लोहे को भी सोना बना सकता था। इस रहस्यमय पत्थर के लिए कई युद्ध भी हुए थे, लेकिन जब राजा राजसेन हार गए, तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया।
कहा जाता है कि कई राजाओं ने इस किले को खुदवाकर पारस पत्थर को खोजने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। आज भी लोग यहां रात के समय पारस पत्थर की तलाश में तांत्रिकों को अपने साथ लेकर जाते हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। इसको लेकर ये कहानी भी प्रचलित है कि यहां पत्थर को ढूंढ़ने आने वाले कई लोग अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं, क्योंकि पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है। पुरातत्व विभाग को अब तक ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे पता चले कि पारस पत्थर इसी किले में मौजूद है, लेकिन कही-सुनी कहानियों की वजह से लोग चोरी-छिपे पारस पत्थर की तलाश में इस किले में पहुंचते हैं।
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