ग्वालियर चंबल में विकास पर जातियां हावी
ग्वालियर, रवीन्द्र जैन। ग्वालियर-चंबल संभाग के इतिहास में पहली बार एक साथ 16 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में विकास का मुद्दा पूरी तरह गायब है। दोनों दलों ने चुनाव को पूरी तरह जातिवादी बना दिया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही नेता बाहरी तौर पर बेशक सभी सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि मतदान से कुछ घंटे पहले तक दोनों दलों की सांसें फूली हुई हैं। अंदर से कोई भी किसी भी सीट के प्रति आश्वस्त नहीं है। दोनों संभाग के लोधी और तोमर वोटों को साधने के लिए भाजपा ने नरेन्द्रसिंह तोमर और उमा भारती की सभाएं बढ़ा दी हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने भिंड और शिवपुरी की चारों सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है।
उपचुनाव बेशक ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण हो रहे हैं, लेकिन मतदाताओं के मूड को देखते हुए भाजपा ने सिंधिया को चुनावी चेहरा बनाने से परहेज कर दिया है। भाजपा के बड़े नेता सिंधिया के साथ मंच साझा करने से कतरा रहे हैं। सिंधिया का ग्लैमर तेजी से कम हुआ है। दोनों संभागों में शिवराजसिंह चौहान और नरेन्द्रसिंह तोमर की मांग बढ़ी है। पूरे क्षेत्र में सबसे अधिक अपील और सक्रियता इन दोनों नेताओं की ही दिखाई दे रही है। कांग्रेस ने ग्वालियर जिले में पूरे चुनाव को सिंधिया की जमीनों से जोड़ दिया है। शासकीय जमीनों पर सिंधिया के कथित कब्जों को बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया गया है। पिछली बार गुना लोकसभा में जिस तरह भाजपा ने सिंधिया को भू-माफिया सिद्ध करने का प्रयास किया था, जिसका नुकसान भी सिंधिया को उठाना पड़ा था, ठीक उसी तरह इस चुनाव में ग्वालियर में कांग्रेस ने सिंधिया को भू-माफिया सिद्ध करने का अभियान सुनियोजित तरीके से चला रखा है।
ग्वालियर-चंबल की हर सीट की स्थिति
जौरा-जौरा में चुनाव ब्राह्मण और ठाकुर के बीच केन्द्रित हो गया है। कांग्रेस को पंकज उपाध्याय की जीत का भरोसा है। भाजपा के सूबेदार सिंह सिकरवार कड़े मुकाबले में हैं।
सुमावली-भाजपा के एंदलसिंह कंसाना पहले जीत के प्रति आश्वस्त थे, लेकिन अब अजबसिंह कुशवाह कड़े मुकाबले में आ गए हैं। यहां चुनाव गुर्जर बनाम अन्य जाति हो गया है।
मुरैना-इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा के रघुराज सिंह कंसाना और कांग्रेस के राकेश मावई दोनों अपना मुकाबला बसपा से बता रहे हैं। वैश्य समुदाय यहां फैसला करेगा।
ग्वालियर-चंबल से मिलेगी सरकार को स्थिरता, दोनों दल जुटे
दिमनी-कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र सिंह तोमर के भाई की पुलिस की पिटाई का मामला भाजपा प्रत्याशी गिरिराज दंडोतिया को भारी पड़ गया है। अधिकारियों के तबादलों से दंडोतिया की चुनावी जमावट लडख़ड़ा गई है। नाराज तोमर वोटों को मनाने के लिए केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
अंबाह-कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सखवार दुर्घटना में घायल होने के बाद पैर में प्लास्टर चढ़वाकर लंगड़ाते-लंगड़ाते लोगों से वोट मांग रहे हैं। भाजपा के कमलेश जाटव पर गद्दारी का आरोप बड़ा मुद्दा बन गया है। सपा का प्रत्याशी भाजपा के पक्ष में बैठ गया है, लेकिन निर्दलीय रूप से खड़े युवा नेता मोंटी छारी ने भाजपा और कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए हैं।
मेहगांव-भाजपा के ओपीएस भदौरिया पर रेत माफिया को संरक्षण देने के आरोप हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के हेमंत कटारे को बाहरी उम्मीदवार बताया जा रहा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि कटारे की भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से निकट रिश्तेदारी का लाभ उसे मिलेगा। लेकिन बुधवार को उमा भारती की फ्लॉप सभा ने सबकी सांसें फूला दी है।
गोहद-शुरुआती दौर में भाजपा के रणवीर जाटव का पलड़ा भारी था। लेकिन क्षेत्र में गद्दारी का मुद्दा भी असर दिखा रहा है। कांग्रेस ने गोहद को डॉ. गोविंद सिंह के भरोसे छोड़ा है।
ग्वालियर-सरलता और सहजता में भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर का कोई मुकाबला नहीं है। पूरे क्षेत्र में घर-घर में उनकी पहुंच है। लेकिन जातिगत समीकरण से तोमर भी थोड़े घबराए हुए हैं। दोनों संभागों में भाजपा इस सीट को सबसे सुरक्षित मान रही है। कुकड़ेश्वर में कमलनाथ की सभा के बाद कांग्रेस के सुनील शर्मा के हौंसले भी बढ़े हुए हैं।
ग्वालियर पूर्व-भाजपा के मुन्नाालाल गोयल का संभवत: यह अंतिम चुनाव है। यही कारण है कि कांग्रेस से आने के बाद भी भाजपा के पुराने नेता उनके समर्थन में दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस के सतीश सिकरवार के साथ युवाओं की फौज है। लंबे समय भाजपा में रहने के कारण सतीश को बूथ मैनेजमेंट का अनुभव है। इस सीट पर कोई भी दल निश्चित जीत का दावा नहीं कर पा रहा है।
डबरा-भाजपा की इमरती देवी कितना भी जीत का दावा करे लेकिन अंदर से घबराई हुई हैं। कमलनाथ के बयान क्षेत्र में असर दिखा सकता है।
भांडेर-राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी फूलसिंह बरैया कांग्रेस की और से मैदान में है। भाजपा में गुटबाजी दिख रही है जबकि महेन्द्र बौद्ध के बसपा में जाने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो गयी है।
करैरा-कांग्रेस पूरे क्षेत्र में इस सीट को सबसे अधिक सुरक्षित मान रही है। प्रागीलाल जाटव के प्रति मतदाताओं में सहानुभूति साफ दिखाई दे रही है।
पोहरी-कांग्रेस ने दल बदल करने के लिए कुख्यात हरिवल्लभ शुक्ला को टिकट देकर शायद गलती कर दी है। भाजपा के सुरेश धाकड़ कमजोर प्रत्याशी थे लेकिन हरिवल्लभ शुक्ला उन्हें टक्कर नहीं दे पा रहे।
बामौरी-कांग्रेस के कन्हैयालाल अग्रवाल पुराने भाजपाई और संघी रहे हैं। वे अपने पुराने संबंधों को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के महेन्द्र सिसौदिया को बूथ मैनेजमेंट पर भरोसा है। लेकिन दोनों दलों में भितरघात का खतरा बना हुआ है।
अशोकनगर-भाजपा के जसपाल सिंह जज्जी अभी तक पुराने भाजपाईयों को मनाने में असफल रहे हैं। यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। कांग्रेस की आशा दोहरे ने जैन युवक से शादी की है इसलिए उसे जैन वोटों का भरोसा है। मुंगावली-भाजपा से बृजेन्द्र यादव की उम्मीदवारी के बाद से ही भाजपा का बड़ा तबका रूठा हुआ है। कांग्रेस फिलहाल एकजुट है।
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