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Pfizer की वैक्सीन की एक डोज भी देगी सुरक्षा, रिसर्च में हुआ ये बड़ा खुलासा

May 20, 2021


लंदन: ब्रिटेन में Pfizer या AstraZeneca वैक्सीन की एक खुराक के बाद 96% लोगों में ऐंटीबॉडी विकसित हुईं। ताजा डेटा में यह बात सामने आई है। ब्रिटेन और वेल्स में 8,517 लोगों में से 96.42% लोगों में पहली खुराक के बाद 28-34 दिन पर वायरस से लड़ने वाले प्रोटीन बनने लगते हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की रिसर्च में पता चला है कि दोनों वैक्सीन में से किसी की भी दूसरी खुराक के बाद 99% लोगों में 14 दिन के बाद ऐंटीबॉडी दिखने लगी।

इस स्टडी में औसतन 65 उम्र के लोगों से 13,232 ऐंटीबॉडी सैंपल का अनैलेसिस किया गया। इसमें शामिल हर केस में ऐंटीबॉडी दिखी। इसका मतलब है कि वायरस से कुछ हद तक सुरक्षा पैदा हुई। ऐंटीबॉडी पैदा होने की दर फाइजर में ज्यादा देखी गई लेकिन 4 हफ्ते बाद दोनों का असर बराबर दिखा। ब्रिटेन के SAGE अडवाइजर स्टीवन राइली के मुताबिक भारतीय वेरियंट के कारण दूसरी वेव को रोका जा सकता है अगर लोग अभी वैक्सिनेट हो जाएं तो।



ज्यादा अंतराल से ज्यादा असरदार
पिछले हफ्ते एक स्टडी में पाया गया था कि फाइजर की वैक्सीन (Pfizer’s Vaccine) की दूसरी खुराक 12 हफ्ते बाद लगने से बुजुर्गों में ऐंटीबॉडी 3.5 गुना ज्यादा रहीं। दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए भारत में AstraZeneca (Covishield) की वैक्सीन की दोनों खुराक के बीच समय 12-16 हफ्ते कर दिया गया, जबकि ब्रिटेन में इसे घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया। तेजी से फैल रहे मामलों के मद्देनजर यह फैसला किया गया।

पिछले हफ्ते ICMR और कोविड-19 पर बनी नैशनल टास्‍क फोर्स की एक मीटिंग हुई। इसमें सभी सदस्‍यों ने प्‍लाज्‍मा थेरेपी को अप्रभावी बताते हुए इसे गाइडलाइंस (Guidelines) से हटाने को कहा। कुछ वैज्ञानिकों और डॉक्‍टर्स ने प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजयराघवन को एक चिट्ठी भी लिखी। उसमें कहा गया कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी के ‘तर्कहीन और अवैज्ञानिक इस्‍तेमाल’ को बंद कर देना चाहिए। यह चिट्ठी ICMR प्रमुख बलराम भार्गव और एम्‍स के निदेशक रणदीप गुलेरिया को भी भेजी गई थी।

हेल्‍थ प्रफेशनल्‍स ने अपनी चिट्ठी में कहा कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी से जुड़ी गाइडलाइंस उपलब्‍ध सबूतों पर आधारित नहीं हैं। कुछ शुरुआती सबूत भी सामने रखे गए जिसके मुताबिक, बेहद कम इम्‍युनिटी वाले लोगों को प्‍लाज्‍मा थेरेपी देने पर न्‍यूट्रलाइजिंग ऐंटीबॉडीज कम बनती हैं और वेरिएंट्स सामने आ सकते हैं। यह चिट्ठी भेजने वालों में मशहूर वायरलॉजिस्‍ट गगनदीप कांग, सर्जन प्रमेश सीएस और अन्‍य शामिल थे। चिट्ठी के मुताबिक, प्‍लाज्‍मा थेरेपी के तर्कहीन इस्‍तेमाल से और संक्रामक स्‍ट्रेन्‍स डिवेलप (Infectious strain development) होने की संभावना बढ़ जाती है।

ब्रिटेन में 11,000 लोगों पर हुई एक रिसर्च में पता चला कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी कोई चमत्‍कार नहीं करती। अर्जेंटीना में चली रिसर्च में भी यही बात सामने आई। वहां के डॉक्‍टर्स ने भी प्‍लाज्‍मा थेरेपी को असरदार नहीं माना। पिछले साल ICMR ने भी एक रिसर्च की थी जिसमें यही पता चला था कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी मृत्‍यु-दर कम करने और कोविड के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर नहीं है।

दो खुराकें मिलाने से फायदा
दूसरी ओर, स्पेन में की गई एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को पहली खुराक AstraZeneca की लगी हो, उन्हें दूसरी खुराक Pfizer देने पर सुरक्षित और असरदार पाई गई। इस स्टडी को 670 लोगों पर किया गया था। इनमें से 1.7% लोगों में सिर और मांसपेशियों में दर्द जैसे साइड इफेक्ट (side effect) देखे गए। गौरतलब है कि स्पेन में AstraZeneca की वैक्सीन दिए जाने के बाद खून के थक्के जमने के मामलों को गंभीरता से लिया गया है। इसके मद्देनजर कई विकल्प तलाश किए जा रहे हैं।

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