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    संतोषी प्राणी ही आध्यात्मिक प्राणी होता है

  • September 18, 2022

    जबलपुर। भगवान को जब अनन्त ज्ञान प्रकट होता है तो केवलज्ञान के दस आतिशय भी होते है। इन अतिशयों के कारण चारो ओर सुभीक्षिता आ जाती है उनकी विशुद्ध वर्गणाओ से व्यक्ति संतुष्ट, सुखी, स्वस्थ्य हो जाता हैं सभी जीवों में संतोष के भाव आ जाते है। वर्तमान में तीर्थंकर तो नही है पंरतु जिनालयों में जाकर उनकी स्तुति आदि करके हम उस आत्मबल को जाग्रत कर सकते है। भक्त की भक्ति ही पाषाण को भगवान बना देती है जितनी अधिक भक्ति करेंगे उतने ही अधिक हमारे जीवन में अतिशय होगे। भक्ति करने से व्यक्ति मानसिक स्वस्थ होता है जिससे वह नीरोगी हो सकता है। भगवान अपने प्रभाव से प्रकृति, पर्यावरण और समाज में परिवर्तन लाते है जिससे एक स्वस्थ्य और सकारात्मक समाज का निर्माण होता है।

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