– योगेश कुमार सोनी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली व आसपास के इलाकों में लगातार अपहरण की घटनाएं हो रही हैं। पिछले कुछ समय से हो रही कई घटनाओं से लोगों में एक दहशत का माहौल बना हुआ है। बीते बृहस्पतिवार दो अपरणकर्ताओं ने सार्वजनिक शौचालय से लौट रही नाबालिग छात्रा का अपहरण कर लिया था। देरी होने पर जब परिवार के सदस्य बच्ची को ढूंढने निकले तो पिता को जंगल के पास वह घायल अवस्था में मिली। पुलिस के अनुसार दो लोगों ने जंगल में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया। इसके अलावा पिछले कुछ दिन पहले एक परिवार स्कूटी पर जिसपर दो छोटी बच्चियां व पति-पत्नी नजफगड़ से झंडे वाले मंदिर के लिए निकले, वे मंदिर नहीं पहुंचे और पुलिस भी अबतक कुछ पता नहीं लगा पाई। इससे पहले नोएडा स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत तीस वर्षीय युवक के साथ भी ऐसा ही हुआ। लगभग हर दूसरे दिन ऐसी खबरों का आना जारी है। हालांकि घटना से जुड़ा मामला अलग होता है लेकिन यह बताता है कि ऐसे तत्वों का हौसला किस कदर बुलंद है।
आश्चर्य इस बात का है कि आज सीसीटीवी का जमाना है। अपनी सुरक्षा के चलते अधिकतर लोगों ने कैमरे लगवा रखे हैं जिससे देखकर पता लगाया जा सकता है कि कौन कहां जा रहा है। इसके बावजूद अपराधियों को ढूंढ़ा नहीं जा पा रहा है। इसके अलावा मोबाइल ट्रेस करके अपराधियों को पकड़ने में मदद मिलती है। ऐसी घटनाओं को लेकर पुलिस की कार्यशैली पर भी तमाम तरह के सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। कुछ मामलों में तो पुलिस को सफलता मिल जाती है लेकिन अधितकर में नहीं। कुछ केसों में तो यह भी नहीं पता चलता कि व्यक्ति जिंदा है या मारा जा चुका। ऐसे मामलों से सबसे बड़ी तकलीफ का कारण यह बनता है कि जिस भी परिवार के सदस्य नहीं मिल पाते वे जिंदगी भर कुंठित रहते हैं। स्वभाविक बात है कि यदि किसी दुर्घटना में किसी की जान चली जाए या यह पता चल जाए कि जिसको हम ढूंढ रहे हैं वो वह अब नहीं आने वाला तो परिजनों के लिए दिलासे का कारण होता है लेकिन जब खोया हुआ इंसान न मिले तो जिदंगी भर उस अपने के लिए निगाहें तरसती रहती हैं।
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 2017 में पुरुषों से जुड़े करीब चौबीस हजार अपहरण के मामले सामने दर्ज हुए थे वहीं महिलाओं के अपहरण के लगभग सत्तर हजार मामले सामने आए। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 2018 में पैंसठ पजार व 2019 में अरसठ हजार एफआईआर दर्ज हुई। इस हिसाब से देशभर में रोजाना औसतन दो सौ महिलाओं का अपहरण होता है। ऐसी घटनाओं में नब्बे प्रतिशत अपहरण करने वाले का जानकार या रिश्तेदार ही होता है। महिलाओं के मामले में सिरफिरे या दुष्कर्म करने के उद्देश्य से या लूटपाट के उद्देश्य से ऐसा करते हैं। पुरुष के अपहरण केस में दुश्मनी व लूटपाट के मामले सामने आते हैं। राजधानी दिल्ली के आकड़ों पर चर्चा करें तो पिछले 6 सालों में करीब सात हजार केस आए हैं।
बहरहाल, मानव जीवन को हानि पहुंचाने वाले वारदात के सौदागरों के हौसले को तोड़ने की जरूरत है। अपहरण जैसे मामले आज के दौर हैरान करते हैं। यदि उत्तर प्रदेश के परिवेश में बात करें तो योगी सरकार ने माफियाओं पर शिकंजा कसने का निर्णय लिया, जिसको साहसिक तरह से निभाया भी। पूर्व में हुई विकास दुबे की घटना ने प्रदेश ही नहीं पूरे देश को हिलाकर रख दिया था लेकिन शासन-प्रशासन ने विकास व उससे जुड़े सभी लोगों को ढेर कर दिया। एकबार फिर प्रदेश में बचा-कुचा माफिया गायब हो चुका है। इसी तरह अपहरणकर्ताओं के लिए भी कोई ठोस नीति बनाने की जरूरत है। दिल्ली से सटे नोएडा में भी आए दिन ऐसी खबरों से पीजी में रहे विधार्थी व काम करने वाले लोग गहरी चिंता में हैं। वही दूसरे छोर हरियाणा के गुरुग्राम में भी ऐसे मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे। कभी यहां से किसी बड़े व्यापारी के गायब होने की खबर तो कभी नव-दंपत्ति के गायब होने के मामले से लोगों में भय का माहौल है। ऐसे मामलों पर शासन-प्रशासन को कड़े एक्शन की जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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