कुलपति की सौदेबाजी
आनंदीबेन पटेल के मध्यप्रदेश के कार्यवाहक राज्यपाल की भूमिका में आने के बाद कुलपति पद के कुछ दावेदार बल्ले-बल्ले हो रहे हैं। इनमें से एक-दो तो यह मानकर चल रहे हैं कि अब तो वे कुलपति बन ही जाएंगे। उनके ऐसा भ्रम पालने का कारण पिछली बार कुलपति पद के लिए हुआ डॉक्टर नरेंद्र धाकड़ का चयन माना जा रहा है। जिस रास्ते डॉक्टर धाकड़ ने यह पद हासिल किया था वह रास्ता इस बार के कुछ दावेदार भी अपनाने का सोच रहे हैं, क्योंकि सफलता की सीढ़ी यही है। यह रास्ता क्या है यह तो आनंदीबेन पटेल ही बता सकती हैं। हां, इससे प्रोफेसर आशुतोष मिश्रा जैसे मजबूत दावेदारों की परेशानी बढ़ सकती है।
पल्लू पकडक़र पहुंचे इंदौर
सीएसपी हरीश मोटवानी को वापस इंदौर लाने में तो सांसद शंकर लालवानी मददगार बने, लेकिन जयंत राठौर की इंदौर वापसी में मंत्री उषा ठाकुर की अहम भूमिका रही। कांग्रेस सरकार के दौर में जब राठौर को बदनावर से इंदौर भेजा गया था, तब तत्कालीन गृहमंत्री बाला बच्चन ने यह कहते हुए आदेश निरस्त करवा दिया था कि मैं गृहमंत्री के साथ इंदौर का प्रभारी मंत्री हूं और मेरी जानकारी के बिना ही यह आदेश कैसे जारी हो गया। राठौर तब तो चुपचाप बैठ गए, लेकिन इस बार उनका दांव खाली नहीं गया। पर मोटवानी हों या राठौर दोनों ही विजयनगर सीएसपी तो बन नहीं पाएंगे, क्योंकि यहां गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के प्रिय पात्र राकेश गुप्ता मोर्चा संभाल चुके हैं।
वक्त का सितम
जस्टिस वीएस कोकजे और हुकुमचंद सावला जैसे विश्व हिंदू परिषद के दिग्गज तो कोरोना संक्रमण के चलते उम्र की अधिकता के कारण राम मंदिर के भूमिपूजन समारोह में शामिल नहीं हो पाए, लेकिन धार जिले के मनावर निवासी बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक सोहन सोलंकी को जरूर इस कार्यक्रम में मालवा-निमाड़ का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल गया। सोलंकी संघ में अनेक महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन करने के बाद इन दिनों बजरंग दल के शीर्ष पद पर हैं।
वफादारी की वजनदारी
नगर निगम में देवेंद्रसिंह का वजन लगातार बढ़ रहा है। वे फिर उसी स्थिति में आ गए हैं जिस स्थिति में मनीष सिंह के निगमायुक्त रहते समय थे। और इस वजनदारी का कारण भी कलेक्टर ही हो सकते हैं, क्योंकि वे उनके परखे हुए अधिकारी रहे हैं और ऐसे में नई निगमायुक्त को ज्ञान देकर वजन बढ़वाना आसान है। अब इसे वफादारी की वजनदारी कहा जा सकता है, क्योंकि देवेन्द्रसिंह ने मनीष सिंह के निगमायुक्त रहते हुए बेखौफ होकर कई काम किए थे।
बदला वक्त नसीब से
अजय देव शर्मा कलेक्टोरेट में पुरानी भूमिका में आ गए। पिछले कुछ समय में उनकी पोस्टिंग में बदलाव हुआ, लेकिन आखिरकार एडीएम बन ही गए। लेकिन कोरोना काल में रात-दिन एक करने वाले बीबीएस तोमर क्यों कलेक्टर की वक्रदृष्टि का शिकार हुए यह कोई समझ नहीं पा रहा है। कलेक्टोरेट के गलियारों में भी यह बदलाव चर्चा में रहा। इधर तोमर को एडीएम जैसा अहम पद खोने के बावजूद खुशी इस बात की है कि इंदौर में तो बने रह पाए। तोमर की दिली इच्छा है कि रिटायरमेंट इंदौर से ही हो। इसके लिए कलेक्टर की कृपादृष्टि जरूरी है।
और अंत में
सूर्य अस्त टीआई मस्त…इन्दौर के पूर्वी क्षेत्र के एक थाना प्रभारी रात 9 बजे नशे में मस्त हो जाते हैं, इसकी चर्चा उनके क्षेत्र में आम हो गई है। लेकिन आला अफसर शायद इससे बेखबर से हैं, क्योंकि मामला सार्वजनिक हो जाने के बाद भी अफसरों ने इन साहब की सुध नहीं ली है। खैर! आप ही पता लगाइए ये कौन अधिकारी हैं कि सूर्य अस्त होते ही मस्त हो जाते हैं।
अरविंद तिवारी
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