भोपाल। प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर सियासी जंग छिड़ गई है। तीन दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर 15 महीने सरकार में रहते ओबीसी आरक्षण पर कोर्ट में पक्ष नहीं रखने के आरोप लगाए थे। शिवराज के आरोपों पर पलटवार करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा, पूर्व महापौर एवं प्रदेश प्रवक्ता श्रीमती विभा पटेल एवं ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने संयुक्त बयान में कहा है कि भाजपा चाहती ही नहीं है कि मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण मिले। यदि ऐसा होता तो भाजपा 15 साल तक सरकार में रही, लेकिन ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में शासन का पक्ष भी नहीं रखा। संयुक्त बयान में कहा कि दिग्विजयसिंहजी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 17 साल पहले 30 जून 2003 को मप्र में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके बाद दिसंबर 2003 में भाजपा की सरकार आ गई और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का मामला जबलपुर हाईकोर्ट में गया। इसके बाद भाजपा सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए अधिवक्ता तक नियुक्त नहीं किया था। खास बात यह है कि भाजपा के तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद उन्होंने ओबीसी आरक्षण पर पक्ष नहीं रखा। यही वजह रही कि 13 अक्टूबर 2014 को जबलपुर हाईकोर्ट में ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण खारिज कर 14 फीसदी ही रखने का फैसला किया था। इसके बाद कमलनाथ सरकार ने 8 मार्च 2019 को ओबसी को शासकीय सेवाओं में 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला कर दिया। यह मामला भी कोर्ट में है। पिछले महीने सुनवाई के दौरान शासन ने कोई पक्ष नहीं रखा था। जिसको लेकर पूर्व मुख्यमत्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा था। जवाब में शिवराज ने दो दिन पहले कमलनाथ को पत्र लिखकर कहा कि 15 महीने सरकार में रहे तब कोर्ट में पक्ष क्यों नहीं रखा। यहां बता दें कि ओबीसी आरक्षण पर कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है।
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