राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की राजनीति शायद फिर पटरी पर लौट सकती है। खासतौर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ताज़ा बयान से ऐसी संभावना बन रही है। गहलोत का कहना है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यदि सचिन पायलट-गुट को क्षमा कर दे तो वे उसे फिर स्वीकार कर लेंगे।
ऐसा कहकर गहलोत ने एक तीर से तीन शिकार कर लिए। पहला, उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को सर्वोच्च महत्व दे दिया। उनकी गिरती हुई छवि में टेका लगा दिया। दूसरा, उन्होंने सचिन पायलट को जो निकम्मा और नाकारा कहा था, उन कठोर शब्दों पर पोंछा लगा दिया और अपनी छवि एक उदार और बुजुर्ग नेता की बना ली। तीसरा, जो उन्होंने कहा है, वह यदि हो जाए तो उनकी सरकार तो बची-बचाई ही है। उन्हें अपने विधायकों को जैसलमेर में छिपाकर रखने की जरूरत नहीं होगी। वे सब जयपुर लौट सकते हैं और सरकार की तीन हफ्तों से बंद दुकान फिर खुल पड़ेगी।
विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी जरूरत नहीं होगी। सभी पार्टियों के विधायक मिलकर कोरोना से युद्ध लड़ेंगे और लड़खड़ाती अर्थ-व्यवस्था को सम्हालेंगे। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है और सचिन-गुट अपनी टेक पर अड़ा रहता है तो अगले 10-12 दिन राजस्थान की राजनीति के लिए काफी उलझन भरे हो सकते हैं। विरोधी पक्ष तो कोशिश करेगा ही कि गहलोत विरोधी विधायकों की संख्या सरकार गिराने लायक हो जाए। वह सचिन-गुट को उकसाएगा ही, ताकि वे अन्य कांग्रेसी विधायकों को भी तोड़ने की पूरी कोशिश करें। गहलोत ने आरोप लगाया है कि दल-बदल करने का मेहनताना आजकल पहले से भी बढ़ गया है। आरोप है कि कांग्रेसी विधायकों को दल-बदल के लिए अब 25-30 करोड़ रु. तक देने का प्रस्ताव है। इसी डर के मारे उन्हें जैसलमेर के दड़बे में बंद किया गया है।
इस बीच सचिन पायलट ने राजस्थान के नए कांग्रेस अध्यक्ष को बधाई दी है। सचिन ने अपनी कुर्सी पर बैठने वाले नए अध्यक्ष का स्वागत किया है। इसका अर्थ क्या है? सचिन में परिपक्वता आ रही है और वह कांग्रेस में टिके रहना चाहते हैं। राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष को उनके जन्मदिन पर भी सचिन ने बधाई दी है। ये सब संकेत हैं, कांग्रेस में उनके टिके रहने के। इसके बावजूद यदि राजस्थान की सरकार गिरेगी तो वह प्रदेश में नई अस्थिरता को जन्म देगी और भारतीय लोकतंत्र के पन्नों पर एक और काला अध्याय जुड़ जाएगा।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)
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