नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की शाम जब भारतीय सेना के जवान चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के हमले का जवाब दे रहे थे, तो गलवान नदी का तापमान शून्य (और कुछ स्थानों पर नीचे) के करीब था। इस हिंसक झड़प में बड़ी संख्या में दोनों तरफ के सैनिक हाइपोक्सिया का शिकार हो गए। यानी ऊंचाई के कारण उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया। साथ ही चोट लगने और हाइपोथर्मिया यानी अत्यधिक ठंड की वजह से ज्यादातर जवान शहीद हुए। ऐसे में अगले महीने से यहां दोनों देशों के सैनिकों के लिए ड्यूटी करना बेहद मुश्किल होने वाला है। इस वजह से LAC पर हालात बदल सकते हैं।
भारतीय सैन्य कमांडरों के अनुसार यह जानकारी प्रासंगिक है, क्योंकि सितंबर से पूर्वी लद्दाख में मौसम में तेजी से बदलाव आता है। हिंसक झड़प में बचे लोगों ने बताया कि जब दोनों सेनाओं के बीच झड़प शुरू हुई, तब बड़ी संख्या में चीनी सैनिक ऊपर आए, लेकिन 16000 फीट पर ऑक्सीजन की कमी के कारण जल्द ही नीचे जाने लगे, जो ऑक्सीजन की कमी से बच गए वह जमी हुई गलवान नदी की चपेट में आ गए।
सर्दियों के मौसम में लद्दाख में तापमान – 40 डिग्री तक नीचे लुढ़क जाता है। ऐसे में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इतनी ज्यादा ऊंचाई और ठंड में खड़े रहना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा गतिरोध सितबंर-अक्टूबर तक खिंच सकता है और चीन ने तो पहले से ही अपने सैनिकों के लिए स्पेशल टेंट का इंतजाम कर लिया है।
भारत के सैनिक ऐसी भीषण ठंड से बचने के लिए सियाचिन पर पहले से ही स्पेशल टेंट में रहते हैं। लेकिन इस बार सीमा पर सेना की संख्या ज्यादा होने के चलते ज्यादा टेंट्स की जरूरत पड़ सकती है। लिहाजा सेना ये टेंट अपने देश या फिर यूरोप से मंगा सकती है। पीएम मोदी ने पहले ही सेना को हथियार और सामान खरीदने के लिए 500 करोड़ रुपये दिए हैं। उधर, चीन ने भी सर्दी से होने वाली चुनौतियों का सामना करने की तैयारियां शुरू कर दी है। चीनी पीएलए सेना एक बख्तरबंद वाहनों से साजोसामान नीचे लेकर जा रही है, क्योंकि जल्द ही 16000 फीट पर ऑक्सीजन की कमी के कारण सैनिकों का रहना मुश्किल हो जाएगा।
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