वॉशिंगटन । अमेरिका ने मॉडेर्ना की ओर से बनाई जा रही वैक्सीन में अपना निवेश बढ़ाकर एक बिलियन डॉलर यानि कि 74 अरब रुपये, लगभग पहले से दोगुना कर दिया है। मॉडेर्ना ने सोमवार को अपनी वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम चरण की शुरुआत कर दी है।
मॉडेर्ना बायोटेक्नोलॉजी ने बताया कि अमेरिकी सरकार 35 अरब खर्च करने जा रही है। मॉडेर्ना ने बताया कि सरकार की ओर से एलान की गई राशि से संतुष्टि है, इससे 30,000 मरीजों के क्लिनिकल ट्रायल करने में मदद मिलेगी। मॉडेर्ना के शुरुआती ट्रायल में वैक्सीने ने कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाई थी।
वैक्सीन के ट्रायल में 30,000 मरीजों में से आधे मरीज को 100 माइक्रोग्राम वैक्सीन की डोज देना शुरू कर दिया है जबकि बाकी मरीजों को प्लेसबो दी जा रही है । अमेरिका में अब तक कोरोना वायरस से 1,46,000 लोगों की मौत हो चुकी है, और रोजाना बढ़ने वाले मामलों में तेजी आ रही है।
अमेरिका ने वैक्सीन को बनाने में बड़ा निवेश करने का एलान किया है ताकि अगले महीने की शुरुआत में लाखों अमेरिकी लोगों को वैक्सीन मिल सके। बुधवार को अमेरिकी-जर्मन कंपनी बायोएनटेक फार्मास्युटिकल ने बताया कि अमेरिका ने 1.95 बिलियन डॉलर देने का एलान किया है।
बतादें कि दुनिया की कई प्रयोगशालाओं में वैक्सीन जल्द बनाने को लेकर होड़ चल रही है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन सबसे पहले मॉडेर्ना कंपनी ला सकती है क्योंकि ये कंपनी अपना अंतिम क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर चुकी है।
ये मॉडेर्ना का आखिरी चरण होगा जिसमें वैक्सीन के असरदार और सुरक्षित होने के बारे में पता चलेगा। मॉडेर्ना, अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रही है। मॉडेर्ना का कहना है कि हर साल कोरोना वैक्सीन की 50 करोड़ डोज तैयार कर सकती है।
इधर चीनी बायोटेक कंपनी सिनोवाक ने छह जुलाई को कहा था कि वो भी अपना क्लिनिकल ट्रायल इस महीने शुरू कर सकती है। सिनोवाक ब्राजील की बुटानटन बायोलॉजिक रिसर्च सेंटर के साथ मिलकर काम कर रही है। इसके अलावा एस्ट्राजेनेका प्रयोगशाला के साथ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन भी अच्छे परिणाम दे रही है।
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