– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
कोरोना से बचाव के उपाय के प्रति हम कितने गंभीर हैं, उसे इसी से समझा जा सकता है कि झारखण्ड सरकार को मास्क नहीं लगाने पर अब एक लाख रु. तक के जुर्माने और दो साल तक की सजा का प्रावधान करना पड़ा है। पिछले दिनों एक प्रदेश के मंत्री का मास्क नहीं लगाने पर जुर्माने का समाचार आम है तो देशभर में मास्क नहीं लगाने और सोशल डिस्टेंस सहित सुरक्षा मानकों की पालना नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में चालान और जुर्माना वसूली हमारी लापरवाही को दर्शाते हैं।
कोरोना संक्रमण के प्रति हम कितने गंभीर हैं, इसी से समझा जा सकता है कि अनलॉक होते ही देशभर में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए किए गए सारे उपाय धता बताते दिखने लगे हैं। कोरोना से बचने के लिए जारी बचाव उपायों की पालना के प्रति आम आदमी गंभीर नहीं है। मास्क लगाना, सोशल डिस्टेसिंग का पालन, सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, सेनेटाइजर का उपयोग और हाथ धोने के प्रति लापरवाही साफ परिलक्षित हो रही है। मास्क नहीं पहनने सहित सुरक्षा मानकों की पालना नहीं करने के कारण होने वाले चालानों की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी देखी जा रही है। समूचे देश में राजस्थान पहला प्रदेश है जहां राजस्थान महामारी अध्यादेश जारी किया गया। यही कारण है कि राजस्थान में एक मोटे अनुमान के अनुसार जुलाई के पहले पखवाड़े के अंत तक दो लाख 87 हजार से अधिक चालान इस महामारी अध्यादेश के तहत हुए हैं और करीब साढ़े चार करोड़ रुपए की राशि जुर्माने के रूप में वसूल हुई है। करीब सवा लाख से अधिक चालान तो मास्क नहीं पहनने के ही हैं। बिना मास्क पहने दुकानों पर सामान की बिक्री के चालान भी यही कोई दस हजार के आसपास है। सोशल डिस्टेंसिंग की पालना नहीं करने के मामले तो रिकार्ड स्तर पर यानी सर्वाधिक एक लाख 55 हजार से अधिक सामने आए हैं। यह तो केवल और केवल सरकारी आधिकारिक आंकड़े हैं।
झारखण्ड ने जिस सख्त रुख को अपनाया है और जुर्माना राशि एक लाख तक की है तो इससे स्थिति की भयावहता साफ दिखाई देती है। इसमें भी राजस्थान, झारखण्ड सहित प्रदेशों की सरकार की गंभीरता झलक रही हैं। वहीं इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि समूचे देश को इसी पैरामीटर पर देखा जाए तो हमारी लापरवाही की स्थिति कितनी गंभीर स्तर पर है, साफ हो जाती है। यह साफतौर पर मानकर चलना होगा कि जितने सरकारी आंकड़ों में मामले सामने आ रहे हैं उनसे कई गुणा अधिक लापरवाही की वास्तविकता है। ऐसे में कोरोना पर काबू पाने की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या होगी?
देश के कई प्रदेशों में कम्युनिटी स्प्रेड की आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी है, वहीं प्रतिदिन कोरोना पोजिटिव सारे रिकार्ड तोड़ते दिखाई देने लगे हैं। कोरोना संक्रमण में अब हमारा देश तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। जब यह बात साफ हो गई है कि कोरोना से सुरक्षा मानकों की पालना ही बचाव है तो इसे समझना प्रत्येक नागरिक का दायित्व हो जाता है। पर लगता है लॉकडाउन हटते ही हमारी गंभीरता लगभग समाप्त हो गई है। दरअसल देखा जाए तो हम सभ्य नागरिक कहलाने का हक नहीं रखते। यदि हेल्थ एडवाइजरी की पालना सही तरीके से होती रहती है तो फिर कोरोना के नए प्रकरण इतनी अधिक संख्या में आने ही नही चाहिए। देशभर में 12 लाख के करीब कोरोना पोजिटिव मामले आ चुके हैं। महाराष्ट्र् में यह आंकड़ा तीन लाख को पार कर चुका है। देश-दुनिया में संक्रमितों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं अपितु देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगतार बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में दिन-प्रतिदिन स्थिति गंभीर होती जा रही है।
आखिर हमारी मानसिकता ऐसी क्यों हैं ? कई बार लगता है कि तुलसीदास जी ने सच ही कहा है कि भय बिन प्रीत न होय गोसाई। यदि हम मास्क लगाकर बाहर निकलेंगे, प्रोपर सेनेटाइज करेंगे, कार्यस्थल पर मास्क का उपयोग करेंगे, बार-बार हाथ धोएंगे, बाहर से आने पर हाथ धोने-सेनेटाइज करने आदि सुरक्षा मानकों का पालन करने से हम हमारा बचाव तो करेंगे ही दूसरों को भी संक्रमित होने से बचा सकेंगे। कोरोना संक्रमण की गंभीरता तो अब सारी दुनिया समझ ही चुकी है। ऐसे मेें सुरक्षा मानकों के पालन की प्रति हमें गंभीर होना ही होगा। हमें सबकुछ सरकार पर ही छोड़ने, सरकार की आलोचना करने, कमियां निकालने की मानसिकता से बाहर आकर अपने दायित्वों के प्रति सजग होना होगा। ऐसे में सामाजिक संगठनों का दायित्व भी अधिक हो जाता है।
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि सुरक्षा उपायों को अब दुनिया का हर आदमी जानता है और समझता है। ले देकर करना भी तो यही है कि मास्क का प्रयोग करें, सोशल डिस्टेंस की पालना करें और बार-बार हाथ धोएं। यह सामान्य-सी प्रक्रिया है। हमारी आदत में आ ही जानी चाहिए। आखिर कब तक लॉकडाउन के चंगुल में हम आना चाहेंगे। कंटेनमेंट जोन या कर्फ्यू वाली स्थिति भी क्यों आएं। हमारी थोड़ी सी सजगता जब इस कोरोना महामारी से बचा सकती है तो सबकुछ ठप्प करने के हालात ही क्यों हो? आखिर हमारा भी दुनिया, देश और समाज के प्रति कोई दायित्व हो जाता है। हमें समझना होगा कि हमारी जरा-सी लापरवाही का खामियाजा समूचे देश व समाज को क्यों भुगतना पड़े। क्यों सरकार को बार-बार लॉकडाउन लगाने के लिए सोचना पड़े।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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