– अनिल निगम
कोरोना वायरस फैलाने का जिम्मेदार चीन, भारत को हर तरह से घेरने की फिराक में है। वह कूटनीतिक तरीके से पड़ोसी देशों को भारत के खिलाफ भड़काने और उकसाने में जुटा है। वह इसके लिए साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाकर भारत को कमजोर करने की साजिश कर रहा है। इसी का परिणाम है कि कुछ पड़ोसी देशों के भारत के खिलाफ सुर बदलने लगे हैं।
ड्रैगन की साम्राज्यवादी नीति से संपूर्ण विश्व परिचित है। पहले उसने पाकिस्तान और श्रीलंका को ऋण और विकास का लालच देकर अपने जाल में फंसाया और फिर भारत के खिलाफ भड़काया। अब यही काम उसने भारत के पुराने मित्र नेपाल पर डोरे डालकर किया है। नेपाल ड्रैगन के ही इशारे पर भारत के खिलाफ लगातार विषवमन कर रहा है। गलवान घाटी में मुंह की खाने के बाद अब चीन बांग्लादेश और भूटान को भी भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश कर रहा है। सवाल यह है कि आखिर ड्रैगन भारत के पड़ोसी देशों को क्यों भड़का रहा है? भारत के पड़ोसी देशों का हितैषी बनने का दंभ भरने वाले चीन का असली चरित्र क्या है? वह भारत से सीधी वार्ता या युद्ध करने की जगह भारत को घेरने की रणनीति क्यों अपना रहा है?
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का चीन के प्रति झुकाव सर्वविदित है। केपी ओली ने कवि भानुभक्त के जन्मदिन पर यह बयान देकर कि असली अयोध्या नेपाल के बीरगंज के पास एक गांव है, जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था, सभी को भौंचक्का कर दिया। उन्होंने कहा कि कवि भानुभक्त ने नेपाली भाषा में रामायण लिखी थी। साथ ही यह भी दावा किया कि हमें सांस्कृतिक रूप से दबाया गया है। हालांकि नेपाल और भारत की जनता के आक्रोश को देखते हुए बाद में उन्होंने अपने बयान पर लीपापोती कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी की।
यह सर्वविदित है कि ड्रैगन अनेक प्रलोभन देकर पाकिस्तान और श्रीलंका की हालत पहले ही खराब कर चुका है। दोनों देशों को ऋण देने का लालच देकर फंसाया। अब वह बांग्लादेश को ऐसे ही जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है। चीन ने बांग्लादेश को कर छूट का लालच दिया है। उसने कहा है कि 5,161 सामान जिनका चीन और बांग्लादेश व्यापार करते हैं, उसमें 97 फीसदी तक कर की छूट दी जाएगी।
इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि भारत ने आजादी के बाद चीन की तरफ लगातार दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन चीन ने भारत को हमेशा धोखा दिया। भारत ने 1954 में दोनों देशों के बीच परस्पर रिश्ते मजबूत करने के उद्देश्य से चीन के साथ पंचशील संधि की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा भी दिया लेकिन चीन ने इस प्रेम और विश्वास को धूल में मिलाते हुए 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया था। इसी तरह से चीन आतंकवाद के मसले पर हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आया। चीन बार-बार भारत को यह भरोसा दिलाता रहा कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान करेगा परंतु उसने ऐसा नहीं किया बल्कि 2017 में डोकलाम में चीन की घुसपैठ उसकी चालबाजी का एक और उदाहरण है।
हाल ही में गलवान घाटी में चीन ने एलएसी का उल्लंघन करते हुए भारतीय सीमा में घुसपैठ की, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। लेकिन भारत के आक्रामक तेवरों और वैश्विक माहौल के कारण थोड़ा ठिठक गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने ड्रैगन की घुसपैठ का जवाब कई तरह से दिया है। उसने चीन के 59 एैप्स पर भारत में रोक लगा दी। भारत के निर्माण एवं विकास कार्यों में चीनी कंपनियों के अनेक ठेकों को रद्द कर दिया। इसके अलावा संपूर्ण देश में चीन के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया और व्यापारियों, उद्यमियों और आम जनता ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी।
प्रधानमंत्री ने सीमा पर जाकर सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया और कहा कि अगर चीन हमला करता है तो भारत उसका मुंहतोड़ जवाब देगा। चीन के रुख को देखते हुए अमेरिका ने उसकी चारों ओर से सैन्य घेराबंदी कर दी। भारत के तीखे तेवरों और वैश्विक महाशक्तियों के रवैया के चलते चीन की चूलें हिल गईं हैं। साम्यवादी चीन यह अच्छी तरह जानता है कि वह भारत से सीधे-सीधे युद्ध नहीं कर सकता। इसलिए वह पड़ोसी देशों को लालच का चारा डालकर भारत के खिलाफ उन्हें भड़का रहा है।
भारतीय उप महाद्वीप में बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल और भूटान भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण देश हैं और इन देशों से भारत के पारस्परिक संबंध दोस्तानापूर्ण रहे हैं। इसलिए पड़ोसी राज्यों को प्रलोभन देकर भारत के खिलाफ माहौल तैयार करने की चीन की कूटनीति का भारत को पर्दाफाश करना ही होगा, साथ ही पड़ोसी देशों में यह विश्वास भी जगाना होगा कि उनका असली हितैषी चीन नहीं बल्कि भारत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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