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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • July 13, 2020


    गुड्डू के सारथी हो गए सत्तू
    राजनीति में कौन कब पलटी मार जाए, पता नहीं चलता। सत्तू पटेल कशमकश में थे कि वे इधर ही रहें या उधर (सिंधिया के साथ) चले जाए? आखिर उन्होंने अपने दिल की सुनी और पिता के साथ कांग्रेस में ही रहे। सांवेर चुनाव को लेकर सत्तू की सक्रियता बता रही है कि वे अपने भविष्य के रूप में कांग्रेस में कुछ बड़ा देख रहे हैं। सांवेर उपचुनाव में वे गुड््डू के सारथी के रूप में भी नजर आ रहे हैं। अपने स्कूल में भी कांग्रेसियों को इकट्ठा कर बैठकें भी कर चुके हैं। सिलावट के खिलाफ बोलते जरूर हैं, लेकिन महाराज का नाम आते ही उनके सुर बदल जाते हैं। ऐसा न हो कि महाराज का इशारा आ जाए और…
    विरोध के पीछे किसका मैनेजमेंट?
    तुलसी सिलावट से प्रश्न पूछने के मामले में कांग्रेसी (अब भाजपाई) कार्यकर्ताओं द्वारा ट्रोल की गई युवती ने एफआईआर करवा दी और मामला ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो मामले को उपचुनाव तक गर्म रखना चाहते हैं, ताकि इसका फायदा कांग्रेस को मिले। जिस तरह कांग्रेस तुलसी सिलावट की घेराबंदी कर रही है, उसमें तुलसी के साथ दूसरे मंत्रियों और विधायकों को गद््दार साबित कर चुनाव जितने की तैयारी है।प् बाकायदा इसके पीछे कांग्रेस के एक बड़े नेता का इवेंट मैनेजमेंट बताया जा रहा है, जिसकी कमान उनके पुत्र और पुत्री ने संभाल रखी है।
    ठोकर खाकर ठाकुर बने उमेश
    भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा को हर चुनाव में आगे कर दिया जाता है। नगर अध्यक्ष पद से चंद कदमों की दूरी पर रहे उमेश को ठोकर लगी और बाजी गौरव मार ले गए। दौड़ में दूसरे भी थे, लेकिन उमेश को लगी ठोकर उनके दिल तक पहुंच गई, जिसका प्रमाण सोशल मीडिया है, जहां उन्होंने अपना दर्द बयां किया था। दर्दीला समय बीतने के बाद उमेश फिर से दीनदयाल भवन में नजर आने लगे हैं और सांवेर उपचुनाव के जनसंपर्क प्रभारी बनाए गए हैं। वे फिर से दयालु के आगे-पीछे हैं और इशारा हो गया है कि पार्टी ने उनके लिए कुछ अच्छा सोचा है।
    मेहमान इतने आ गए मेजबान कहां जाए
    भाजपा के एक नगर पदाधिकारी ने अपना दर्द सोशल मीडिया पर बयां कर लिख डाला कि जब घर में मेजबान से ज्यादा मेहमान हो जाएं तो क्या करना चाहिए? अब उन्होंने ऐसा क्यों लिखा ये समझ से परे है। माना जा रहा है कि कांग्रेसियों की इतनी भीड़ भाजपा में हो गई है कि पुरानों को अब पूछा नहीं जा रहा है। इसे ही समय कहते हैं नेताजी और फिर ये तो पॉलिटिक्स है, जहां सबका समय एक जैसा नहीं रहता।
    जिला कांग्रेस अध्यक्ष राजेश सोनकर
    तुलसी सिलावट सधे और वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन अपनी जुबान पर उनका कंट्रोल बहुत कम देखने को मिलता है। इसे लेकर वे कई बार सफाई भी दे चुके हैं। अपने धुर विरोधी रहे (अब साथी) भाजपा के जिलाध्यक्ष राजेश सोनकर को कभी-कभी बैठक में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष कहकर संबोधित कर देते हैं और ठहाका लग जाता है। गलती होना भी वाजिब है, जिस पार्टी में जवानी बीती, वह इतनी आसानी से कैसे भूली जा सकती है और फिर पहलवान की स्टाइल ही अलग है।
    साथ लेकर चलते हैं सांसद अपना मीडिया
    सांसद शंकर लालवानी जहां भी जाते हैं, अपना ‘मीडियाÓ खुद ले जाते हैं और फिर यही मीडिया असल मीडिया को खबर और फुटेज देकर उनका काम आसान कर देती है। दरअसल ये उपज लालवानी पुत्र और मीडिया के ही कुछ लोगों की है। लालवानी की मीडिया सरकारी बैठकों में भी पहुंच जाती है, जहां असल मीडिया नहीं जा पाती। वैसे बता दें कि चुनाव में भी लालवानी पुत्र ने इवेंट टीम हायर की थी और लालवानी की रिकार्ड जीत का श्रेय भी उन्हें गया।
    कुछ भी हो पटवारी तो बोलेंगे ही
    मंत्री पद जाने के बाद जब से जीतू पटवारी मीडिया विभाग के प्रदेश प्रभारी व कार्यकारी अध्यक्ष बने हैं, तब से प्रदेश सरकार व भाजपा की घेराबंदी कर रहे हैं। वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते, जिसमें उन्हें बोलना जरूरी हो या न हो, वे बोलकर ही मानते हैं। कभी साइकिल चलाते वीडियो रिकार्ड करवाते हैं तो कभी-कभी एक्सरसाइज करते-करते पसीने से लथपथ होकर बयान दे देते हैं। वे बता रहे हैं कि कांग्रेस में वे ही हैं जो विरोध का झंडा बुलंद किए हैं। वैसे सज्जनसिंह वर्मा के बयान अब कम सुनने को मिल रहे हैं, इसलिए तो जीतू बोलने का मौका नहीं छोड़ रहे हंै।
    अखबार में दिखना भी जरूरी
    पूरा शहर कल लॉकडाउन था, पर भाजपा महिला मोर्चे को कल ही पत्रकार वार्ता करना थी। समझाने वालों ने समझाया, पर वे नहीं मानीं और पत्रकारों को भाजपा कार्यालय बुलाया गया। इन मोहतरमा को किसने कफ्र्यू पास जारी किया, जिससे वे अपने घरों से भाजपा कार्यालय तक पहुंचीं।
    भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के नए सुसज्जित कार्यालय को देखकर जिलाध्यक्ष राजेश सोनकर भी अपने कार्यालय के जीर्णोद्धार का मन बना रहे हैं। वैसे यहां जो भी अध्यक्ष आया, कार्यकाल पूरा होने तक बैठा और चला गया। अशोक सोमानी ने जरूर अपने लिए अलग कक्ष बना लिया था, पर कार्यालय वैसा ही रहा। अब देखते हैं सोनकर क्या नया करते हैं? वैसे जो होना है, अब उपचुनाव के बाद ही होना है।

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