डेस्क: शेयर बाजार की उठापटक ने भले ही सारी सुर्खियां बटोरी हों, लेकिन वित्तीय बाजार के एक और कोने में एक और गंभीर संकट पनप रहा है. निवेशक अमेरिकी सरकारी बॉन्ड (Treasury Bonds) को तेजी से बेच रहे हैं. आम तौर पर जब भी आर्थिक संकट की आहट होती है, निवेशक अमेरिकी ट्रेजरी में पैसा लगाते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा. यहां तक कि ज्यादा ब्याज रिटर्न का लालच भी निवेशकों को बॉन्ड खरीदने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहा.
यह असामान्य स्थिति विशेषज्ञों को चिंता में डाल रही है. उनका मानना है कि बड़े बैंक, फंड्स और ट्रेडर्स अब अमेरिका को एक भरोसेमंद निवेश गंतव्य के रूप में नहीं देख रहे हैं. पेन म्यूचुअल एसेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर जॉर्ज सिपोलोनी कहते हैं, डर है कि अमेरिका अपनी सेफ हेवन की छवि खो रहा है. हमारा बॉन्ड बाजार दुनिया का सबसे बड़ा और स्थिर है, लेकिन अगर इसमें अस्थिरता आती है, तो नुकसान हो सकता है.
ट्रेजरी यील्ड में तेजी का सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है. इससे होम लोन, कार लोन और अन्य लोन की ब्याज दरें बढ़ेंगी. वेल्स फारगो इन्वेस्टमेंट इंस्टीट्यूट के ब्रायन रेह्लिंग के मुताबिक, जैसे ही यील्ड ऊपर जाती है, आपकी उधारी महंगी होती जाती है. कंपनियां भी इन उधार दरों से प्रभावित होंगी और लागत बचाने के लिए या तो कीमतें बढ़ाएंगी या नौकरियां कम करेंगी.
ट्रेजरी बॉन्ड्स असल में अमेरिकी सरकार की IOU (I Owe You) रसीदें होती हैं, जिनके ज़रिए सरकार अपने खर्च चलाती है. पिछले हफ्ते 10-वर्षीय ट्रेजरी की यील्ड 4.01% थी, जो शुक्रवार को बढ़कर 4.58% तक पहुंच गई और फिर थोड़ा घटकर 4.50% पर आई. आमतौर पर शेयर बाजार में गिरावट के समय बॉन्ड बाजार राहत देता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा.
विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ और अनिश्चित नीतियों ने अमेरिका की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. निवेशक अब अमेरिका को उतना भरोसेमंद नहीं मान रहे. इनवेस्टमेंट बैंक एवरकोर ISI की विश्लेषक सारा बिआंकी लिखती हैं, अगर मामला अमेरिका में विश्वास की व्यापक कमी का है, तो केवल ट्रेड से पीछे हटना भी यील्ड को कम नहीं कर पाएगा.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन, जो अमेरिकी बॉन्ड्स का एक बड़ा धारक है, अब इन्हें बेच रहा है. हालांकि, इससे चीन की मुद्रा मजबूत हो जाएगी और उसका निर्यात महंगा पड़ेगा, इसलिए यह संभावना कम मानी जा रही है. एक अन्य वजह बेसिस ट्रेड नामक हेज फंड रणनीति की विफलता भी हो सकती है, जिसमें अधिक उधारी के चलते अब नकदी जुटाने के लिए बॉन्ड बेचे जा रहे हैं.
वेल्स फारगो के रेह्लिंग कहते हैं, अगर ट्रेजरी अब वह जगह नहीं रही जहां आप अपनी नकदी रख सकें, तो फिर विकल्प क्या है? क्या कोई ऐसा बॉन्ड है जो इससे अधिक लिक्विड हो? मुझे नहीं लगता. इस बार 2009 की तरह प्राकृतिक संतुलन भी काम नहीं कर रहा, जब अमेरिकी बॉन्ड्स में पैसा डालने से ब्याज दरें कम हुईं और उपभोक्ताओं को राहत मिली. इस बार बॉन्ड की बिकवाली निवेशकों को भ्रमित कर रही है, और बाजार में अस्थिरता को और बढ़ा सकती है.
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