इन्दौर। हुकमचंद मिल और शहर में अंतिम सांसें गिन रही हरियाली को बचाने के लिए शहर में जनआंदोलन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस आंदोलन की शुरुआत कल रीगल तिराहे पर विशाल मानव शृंखला से होने जा रही है। यह शृंखला 13 अप्रैल रविवार को शाम 5 बजे बनाई जाएगी। पर्यावरणप्रेमी संस्थाओं का कहना है कि शहर को हरा-भरा रखने वाले यह पेड़ सिर्फ पेड़ नहीं हैं, बल्कि यह शहर के फेफड़े हैं। इनकी बदौलत ही हम सब साफ-स्वच्छ सांसें ले पाते हैं। शहर में सिर्फ 9 प्रतिशत हरियाली बची है, मगर किसी न किसी बहाने इसे खत्म किया जा रहा है। शहर के प्रबुद्ध जागरूक नागरिकों का कहना है कि सरकार विकास के बहाने शहरवासियों की सांसों का व्यापार बंद करे।
कल विशाल मानव शृंखला से जनआंदोलन की शुरुआत करने वाली पर्यावरणप्रेमी संस्था का कहना है यह जनआंदोलन किसी एक संगठन, एक संस्था या किसी पार्टी का नहीं, बल्कि हर घर, हर परिवार, हर शहरवासी का है। जनआंदोलन की शुरुआत करने वालों ने इससे संबंधित पोस्टर बनाए हैं, जिसमें जनप्रतिनिधि सहित जनता से कुछ सवाल किए हैं।
यह जनआंदोलन हर घर, हर परिवार, हर शहरवासी से जुड़ा है
मां अहिल्या की नगरी इंदौर में मां की विरासत प्राणवायु के भंडारों को बचाए रखने के बजाय क्या हम मां की संतानें शहर के मध्य बची आखिरी हरियाली या अंतिम जंगल पर भी कुल्हाड़ी चलते देखते रहेंगे।
क्या अंतिम सांसें गिन रही शहर की 9 प्रतिशत हरियाली को भी नष्ट कर देंगे या इसे खत्म होते यूं ही देखते रहेंगे।
हरियाली को खत्म कर क्या हम शहरवासी अनगिनत पक्षियों व जीव-जंतुओं को बलि चढऩे देंगे।
क्या हम बढ़ती आबादी और बढ़ते वाहनों के साथ घुट-घुटकर स्वस्थ रह पाएंगे।
क्या जमीन के अंदर सूखते पानी और बाहर बढ़ते तापमान के अलावा वायु प्रदूषण के बढ़ते दुष्प्रभावों से इंदौरियों के जीवन की दुर्दशा देखते रहेंगे।
आखिर हम अब भी हम चुप क्यों हैं? क्या कारण है? क्या वजह है कि हमें कोई चिंता नहीं है।
इस शहर ने हमें सब कुछ दिया है, क्या हम इसकी हरियाली, यानी फेफड़े नहीं बचा सकते।
यदि आप शहर की हरियाली बचाना चाहते हैं, यदि हम अहिल्या नगरी का कर्ज चुकाना चाहते हैं तो कल शाम को 5 बजे रीगल तिराहे पर आकर एकजुटता दिखाइए। अपने साथ अपने अड़ोसी-पड़ोसी और साथियों को भी लाइए।
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