नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के एक विवादित फैसले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई (Hearing) तय कर दी है। जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच इस मामले पर 26 मार्च यानी बुधवार को सुनवाई करेगी। यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज में 11 साल की नाबालिग बच्ची के साथ कथित यौन शोषण से जुड़ा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में कहा था कि किसी नाबालिग बच्ची के ब्रेस्ट (सीने) को पकड़ना और उसकी पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार या बलात्कार की कोशिश नहीं, बल्कि गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।”
क्या है पूरा मामला?
आरोपियों पवन और आकाश पर आरोप है कि उन्होंने 11 साल की बच्ची के साथ गलत हरकत की, उसके कपड़े फाड़ने की कोशिश की और उसे पुल के नीचे ले जाने का प्रयास किया। लेकिन एक राहगीर के आने से आरोपी मौके से फरार हो गए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा कि यह अपराध पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) और आईपीसी की धारा 354-बी (किसी महिला को जबरदस्ती निर्वस्त्र करने का प्रयास) के तहत आता है, लेकिन इसे बलात्कार या बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया संज्ञान?
इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी, राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल और कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि वह इस फैसले से पूरी तरह असहमत हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले का संज्ञान लेने का आह्वान किया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई करने का फैसला किया है।
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