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अंगारों से गुजरे गांव के 1000 लोग, होली पर सालों से निभाई जा रही परंपरा

March 15, 2025

रायसेन: होली का त्योहार मान्यताओं और परंपराओं का समागम है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है.कहीं फूलों से होली खेली जाती है, तो कहीं पर लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसातें हुए होली खेलते हैं, लेकिन आपने कभी आग के जलते अंगारों पर चलकर होली खेले जाने के बारे में सुना है. मध्य प्रदेश के रायसेन की सिलवानी तहसील के दो गांवों और वेगामगंज के एक गांव में होली के दिन अंगारों पर चलने की परंपरा है.

इन गांवों के लोगों का मानना है कि इस परंपरा से गांव के लोग आपदा और बीमारियों से दूर रहते हैं. सिलवानी और बेगमगंज में आस्था और श्रद्धा के चलते ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर चलते हैं. ग्रामीणों की आस्था का आलम यह है कि नाबालिग बच्चों से लेकर महिलाएं, उम्रदराज बुजुर्ग तक अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं, लेकिन जलते हुए होलिका दहन के अंगारों पर चलने के बावजूद किसी भी ग्रामीण के पैर नहीं जलते.


होलिका दहन के बाद रात में सिलवानी तहसील से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत हथौड़ा के गांव महगवा और महज 4 किमी दूर बसे ग्राम पंचायत डुंगरिया कला में चंदपुरा गांव है. चंद्रपुरा के लोग पिछले 15 सालों से दहकते अंगारों पर चलते हैं. महगवा गांव में ग्रामीण करीब 500 सालों से आग पर चलते आ रहे हैं. महगवा में 300 से ज्यादा मकान हैं. इनमें रहने वाले लोगों की आबादी लगभग एक हजार है. यहां हर साल होलिका दहन के बाद रात में ही सभी ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर गुजरते आ रहे हैं.

वहीं बेगमगंज के गांव सेमरा में भी 150 सालों से लोग धधकते अंगारों से निकलते हैं. बच्चे और महिलाएं जलते हुए अंगारों पर ऐसे चलते हैं. जैसे फूलों पर चल रहे हो. वह बिना किसी हिचक एक-एक कर अंगारों पर चलते हैं. महगवा गांव के चौराहे पर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद ग्रामीणों के सहयोग से होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन को देखने के लिए आसपास के कई गावों के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं.

इसी तरह चंद्रपुरा गांव में भी लगभग 15 सालों से यह आयोजन हो रहा है. इस साल आसपास के कई जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए और प्रसाद चढ़ाया. साथ ही दहकते अंगारों पर बूढ़े बच्चे, और जवान और महिलाएं भी चलीं. गांव वालों के मन में प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त रहने का विश्वास रहता है. होलिका दहन के धधकते हुए अंगारों पर नंगे पैर चलने का सिलसिला करीब सेकड़ों सालों से चल रहा है.

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