नई दिल्ली । केंद्र सरकार (Central government)और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (Dravida Munnetra Kazhagam)यानी डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Government)के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy), 2020 में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है। इस फॉर्मूले को लागू करने से मुख्यमंत्री एमके स्टालिन कतरा रहे हैं, जबकि एनईपी 2020 का रुख तीसरी भाषा के चयन को लेकर लचीला है। इसके तहत राज्यों पर हिंदी या कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती।
दरअसल, नई शिक्षा नीति बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में तीन-भाषा फॉर्मूले को जल्द लागू करने की सिफारिश करती है। इसमें कहा गया है कि तीन-भाषा फॉर्मूले को संवैधानिक प्रावधानों, लोगों, क्षेत्रों और संघ की आकांक्षाओं और बहुभाषिकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की जरूरत को ध्यान रखते हुए लागू किया जाना जारी रहेगा। हालांकि, एनईपी 2020 यह भी कहता है कि राज्य, क्षेत्र और छात्र खुद भाषाओं का चुनाव कर सकते हैं। राज्यों पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी, जब तक कि उनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषा हों।
छात्र विदेशी भाषाए़ं भी सीख सकते हैं
एनईपी 2020 के तहत भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के अलावा, माध्यमिक स्तर के छात्र अन्य विदेशी भाषाओं के अलावा कोरियन, जापानी, फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश जैसी विदेशी भाषाएं भी सीख सकते हैं।
यह है त्रि-भाषा फॉर्मूला
एनईपी, 2020 में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला छात्रों को तीन भाषा सीखाने का सुझाव देता है। इनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए। यह फॉर्मूला सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर लागू होता है। हालांकि, इसमें राज्यों को बगैर किसी दबाव के भाषाओं का चुनाव करने की आजादी दी गई।
पहली बार डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में पेश हुआ था प्रस्ताव
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने 1948 में पहली बार त्रिभाषा फॉर्मूले का प्रस्ताव दिया था। इसमें कहा गया था कि छात्रों को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी भी सीखनी चाहिए। आधिकारिक तौर पर कोठारी आयोग के नाम से जाने जाने वाले राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने (1964-1966) इस फॉर्मूले को स्वीकार किया। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार की तरफ से 1968 में लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे अपनाया गया।
तमिलनाडु में 1937 में भी हुआ था विरोध
तमिलनाडु आजादी के पहले से ही त्रिभाषा फार्मूले का विरोध करता आ रहा है। सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाली तत्कालीन मद्रास प्रांत की सरकार के 1937 में स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने पर जस्टिस पार्टी और पेरियार जैसे नेताओं ने खासा विरोध किया था। नतीजतन, राज्य में 1940 में इस नीति को रद्द कर दिया गया। केंद्र सरकार के 1968 में त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का भी तमिलनाडु ने जमकर विरोध किया।
अब है इस बात पर रार
तमिलनाडु सरकार ने एनईपी व त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने से मना कर दिया है। इसके चलते केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत मिलने वाली 573 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता रोक दी है। एसएसए फंडिंग पाने के लिए राज्यों को एनईपी के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है। फंड रोके जाने से सीएम स्टालिन बिफरे हुए हैं। उन्होंने दक्षिणी राज्यों में हिंदी थोपने का आरोप लगाया है। केंद्र के अनुसार शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है व त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी है।
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