डेस्क: दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ की संगम नगरी प्रयागराज में शुरुआत हो चुकी है. इस महाकुंभ में भाग लेने के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से नागा साधु और अघोरी साधु भी पहुंचे हैं. अक्सर नागा और अघोरी साधु को एक ही मान लिया जाता है. लेकिन आज हम आपको इनके बीच का वो फर्क बताएंगे जिसके बारे में आपको शायद ही पता हो.
सनातन धर्म की अखाड़ा व्यवस्था में नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है. जबकि अघोरी साधु अपनी अद्भुत और रहस्यमयी प्रथाओं के लिए जाने जाते हैं. हालांकि, इन दोनों के तप करने के तरीके, जीवनशैली, ध्यान और आहार में भिन्नता होती है. लेकिन यह सत्य है कि दोनों ही शिव की आराधना में संलग्न रहते हैं.
12 वर्षों की कठोर तपस्या नागा साधुओं और अघोरी बाबाओं को अत्यंत कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है. साधु बनने के लिए इन्हें लगभग 12 वर्षों की कठोर तपस्या करनी होती है. अघोरी बाबा श्मशान में साधना करते हैं और उन्हें वर्षों तक वहीं समय बिताना पड़ता है.
धर्म के रक्षक नागा साधु नागा शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संस्कृत के नागा से आया है. इसका अर्थ पहाड़ होता है. नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होना है. वे अखाड़ों से जुड़े हुए होते हैं और समाज की सेवा करते हैं साथ ही धर्म का प्रचार करते हैं. ये साधू अपनी कठोर तपस्या और शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं. नागा साधु अपने शरीर पर हवन की भभूत लगाते हैं. नागा साधु धर्म और समाज के लिए काम करते हैं.
नागा साधु जिस भभूत को शरीर पर लगाते हैं, वो लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होती है. हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म करते हैं. उसके बाद जाकर वो भभूत तैयार होती है.
मानव खोपड़ी अघोरी साधुओं की खास निशानी अघोरी शब्द का अर्थ संस्कृत में उजाले की ओर होता है. अघोरी साधुओं को भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है. वह हमेशा अपने साथ एक मानव खोपड़ी रखते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है. भगवान दत्तात्रेय को अघोरी संतों का गुरु माना जाता है, जिन्हें शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है. ये साधु दुनिया की आम परंपराओं से दूर रहकर जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझने में लगे रहते हैं. अघोरी साधु अपने ध्यान में लीन रहते हैं और केवल भगवान शिव की पूजा करते हैं. इन्हें नागा साधुओं की तरह समाज से कुछ ज्यादा लेना देना नहीं होता.
नागा साधु और अघोरी, भगवान शिव के उपासक होते हैं, लेकिन अघोरी की साधना का तरीका थोड़ा अलग और डरावना होता है. ये श्मशान भूमि में रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख लगाते हैं. अघोरी बाबा जानवरों की खाल या किसी साधारण कपड़े से शरीर का निचला हिस्सा ढकते हैं.
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved