नई दिल्ली । पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल(Former Chief Minister Arvind Kejriwal) ने जैसे ही यूपी-बिहार(UP-Bihar) के लोगों पर बयान(Statements on people) दिया, भाजपा(BJP) ने इसे तुरंत मुद्दा बना दिया। दरअसल, दिल्ली की सत्ता में लगातार पूर्वांचलियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। यहां 22 फीसदी के करीब पूर्वांचली मतदाता हैं जो 27 विधानसभा सीटों पर हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि पूर्वांचलियों के सम्मान पर सियासत तेज हो गई है।
कई ऐसी सीटें भी हैं जहां इनकी संख्या 25 से 38 फीसदी तक है। सभी राजनीतिक दलों ने पूर्वांचल समाज के लोगों को पार्टी में महत्वपूर्ण पदों के साथ-साथ टिकट देने में तवज्जो दी है। आम आदमी पार्टी की ओर से 2020 के चुनाव में पूर्वांचल के लोगों को 12 सीटों पर टिकट दिए थे। पार्टी ने इस बार भी करीब 12 पूर्वांचली चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है।
वर्ष 2013 से पहले कांग्रेस ने भी पूर्वांचली मतदाताओं, ब्राह्मण और मुस्लिमों की सोशल इंजीनियरिंग के जरिए 15 साल दिल्ली की सत्ता पर राज किया। अब 2025 में हो रहे विधानसभा चुनाव में भी इनपर सभी दलों की नजरें हैं। इसी हिसाब से सभी दल अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं और टिकट वितरण में इसका खास ध्यान रख रहे हैं।
सीवर, सड़क और पानी प्रमुख मुद्दा
पूर्वांचली मतदाता अधिकांश कच्ची कॉलोनियों में रहते हैं। वहां पर कई समस्याओं का सामना निवासियों को करना पड़ रहा है। इन कॉलोनियों में खासकर पानी की आपूर्ति, सीवर नेटवर्क, सड़कों की प्रमुख समस्या है। साथ ही कई जगह डिस्पेंसरी भी नहीं है। इनके अलावा रोजगार इनका प्रमुख मुद्दा है।
एलएनजेपी, जदयू ने चुनाव में उतारे थे प्रत्याशी
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के इन प्रवासी लोगों के भरोसे ही वर्ष 2020 में जदयू, आरजेडी और लोजपा ने भी दिल्ली में उम्मीदवार उतारे थे। लोजपा और जेडीयू ने एनडीए गठबंधन में तो आरजेडी ने कांग्रेस से गठबंधन कर चार सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, इन्हें दिल्ली चुनाव में मतदाताओं ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। पिछले चुनाव में आप और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला था।
भाजपा ने मनोज तिवारी को उतारा था
राजधानी दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली मतदाताओं का स्थान काफी अहम है। चुनाव में ये मतदाता जिस ओर जाएंगे, उस राजनीतिक दल का पलड़ा सबसे भारी नजर आएगा। ऐसे में पूर्वांचली मतदाताओं की बड़ी संख्या की वजह से ही भाजपा ने भोजपुरी गायक मनोज तिवारी को दिल्ली में स्थापित किया और लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया। यहां के मतदाताओं ने भी मनोज तिवारी को अपना आशीर्वाद दिया और तीनों बार बड़े अंतर से जीत दिलाई। वर्ष 2016 में भाजपा ने मनोज तिवारी को दिल्ली भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और उनके नेतृत्व में 2017 में दिल्ली नगर निगम का चुनाव लड़ा। इन्हीं पूर्वांचली मतदाताओं के सहारे भाजपा ने चुनाव में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया और दिल्ली नगर निगम में काबिज हुई। इन चुनाव में भाजपा के 181 पार्षद, आप के 49 और कांग्रेस के 31 पार्षद जीतकर नगर निगम में पहुंचे थे। मनोज तिवारी को पूर्वांचल का चेहरा बनाने से भाजपा को चुनाव में काफी फायदा हुआ।
इन सीटों पर सबसे ज्यादा पूर्वांचली
बुराड़ी – 27 प्रतिशत
बादली – 26 प्रतिशत
मादीपुर – 24 प्रतिशत
नांगलोई जाट – 32 प्रतिशत
किराड़ी – 29 प्रतिशत
विकास पुरी – 28 प्रतिशत
करावल नगर – 20 प्रतिशत
मुस्तफाबाद – 22 प्रतिशत
घोंडा – 29 प्रतिशत
सीलमपुर – 20 प्रतिशत
रोहताश नगर – 22 प्रतिशत
सीमापुरी – 22 प्रतिशत
शाहदरा – 20 प्रतिशत
विश्वास नगर – 20 प्रतिशत
कोंडली – 21 प्रतिशत
त्रिलोकपुरी – 38 प्रतिशत
पटपड़गंज – 23 प्रतिशत
लक्ष्मी नगर – 31 प्रतिशत
कृष्णा नगर – 28 प्रतिशत
नजफगढ़ – 21 प्रतिशत
मटियाला- 20 प्रतिशत
उत्तम नगर – 30 प्रतिशत
द्वारका – 23 प्रतिशत
नोट मतदाताओं के आंकड़ों के स्रोत राजनीतिक दल
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर व विश्लेषक डा. चंद्रचूड़ सिंह ने कहा, ‘दिल्ली के चुनाव में पूर्वांचली मतदाताओं की भूमिका बढ़ रही है। तकरीबन 27 सीटें ऐसी हैं जिनमें पूर्वाचली मतदाताओं का प्रभाव ज्यादा है और वे निर्णायक भूमिका में हैं। करीब डेढ़-दो दशक पहले ऐसा नहीं था। कुछ राजनेताओं ने पहले सांस्कृतिक रूप से और फिर राजनीतिक रूप से उन्हें संगठित किया है। ये मतदाता वोट किसे देंगे ये तो नहीं पता लेकिन इसी संगठन की वजह से राजनीतिक दलों ने उन्हें तवज्जो देना शुरू कर दिया है।’
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